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ताओ उपनिषद भाग
नहीं; कठोर, यंत्रवत। डाक्टर आएंगे, इलाज कर देंगे, लेकिन इम्पर्सनल, अवैयक्तिक: व्यक्तिगत कोई संबंध बच्चों से नहीं बनाया जाएगा। न बच्चों को थपथपाया जाएगा, न उन्हें गले लगाया जाएगा। यह एक खंड; सारी वैज्ञानिक सुविधा दी जाएगी। और दूसरा खंड है, वहां भी उतनी ही सुविधा दी जाएगी, लेकिन बच्चों के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए जाएंगे। डाक्टर आएगा तो मुस्कुराएगा, बैठ कर दो बात करेगा, कभी बच्चे को गले लगा लेगा। नर्स आएगी तो थपथपाएगी, कभी बच्चे को उठा कर उछालेगी।
जो अनुभव हुआ तीन महीने के प्रयोग से वह यह हुआ कि पहले खंड के बच्चे सिकुड़ते गए। भोजन पूरा दिया जा रहा था, इलाज की पूरी व्यवस्था थी; लेकिन जीवनधारा सूखती गई। बच्चे तीन गुने ज्यादा बीमार पड़े पहले खंड में। करीब-करीब बच्चे बीमार रहे, स्वस्थ बच्चे धीरे-धीरे खो गए। दो सौ के दो सौ बच्चे धीरे-धीरे किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हो गए। दूसरे खंड के बच्चे धीरे-धीरे सभी बीमारियों के बाहर हो गए। और अगर बीमारी आती भी तो टिकती न। पहले खंड में बीमारी आ जाती तो हटती न। सब एक सा था, सिर्फ एक प्रेम के तत्व को हटा लिया था।
और प्रेम भी क्या, कोई खास प्रेम नहीं दिया जा रहा था; थोड़ा थपथपा दिया, थोड़ा बच्चे से बात कर ली। लेकिन ऐसा अनुभव हुआ कि इन बच्चों को दूसरे खंड में कुछ मिल रहा था, अदृश्य, जो पहले खंड में नहीं मिल रहा था।
अमरीका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में वे एक प्रयोग कर रहे थे बंदर के बच्चों के साथ। तो एक तरफ उन्होंने बंदरिया बनाई थी, जो बिलकुल तारों की बनी थी। उसके स्तन से बच्चा दूध पी सकता था, लेकिन सिर्फ तार ही तार थे, ठंडे तार, कि बच्चा जब दूध पीने आए तो मां से कोई ऊष्मा न मिले, कोई गर्मी न मिले; दूध पी ले। और एक दूसरी मां उन्होंने बनाई थी, जिसके तारों पर गर्म कंबल चढ़ा हुआ था और जिसके भीतर बिजली का एक छोटा सा बल्ब जलता था जिससे थोड़ी गर्मी बनी रहती थी। जो बच्चे उसके पास दूध पीते थे, वे तो स्वस्थ रहे। कोई प्रेम न था, लेकिन बच्चों को भ्रांति थी। भ्रांति तक भी कि मां ऊष्ण है। और जो बच्चे ठंडी मां के पास दूध पी रहे थे-दुध वही था लेकिन धीरे-धीरे सूखने लगे। फिर दोनों मां को एक जगह लाकर एक ही कमरे में रख दिया और सब . बच्चों को उसी कमरे में रख दिया। बच्चे दूध तो पी आते ठंडी मां के पास, लेकिन लिपट कर सोते-सारे बच्चे . लिपट कर सोते-कंबल वाली मां के पास। वहां थोड़ी ऊष्मा थी, वहां थोड़ा जीवन था, वहां थोड़ी गर्मी थी। और कंबल का स्पर्श थोड़ा सा मां की भ्रांति देता था। लेकिन यह भी कोई मां हुई?
हार्वर्ड में भी पाया गया कि बच्चे को अगर खयाल भी हो कि दूसरी तरफ से कुछ संवेदना है तो भी बच्चे को . जीवन मिलता है। मां दूध ही नहीं दे रही है बच्चों को, दूध के साथ कुछ और भी दे रही है। वह और अदृश्य है, और वह और जीवन का सूत्र है। वह प्रेम है।
तुम्हारे जीवन में जितना ज्यादा प्रेम होगा उतना ही तुम पाओगे कि तुम जीवंत हो; जितना प्रेम कम होगा उतना ही तुम पाओगे, दीन, जर्जर, मुाए हुए; किसी तरह चले जा रहे हो, कोई गति नहीं है; तुम ऐसी सरिता नहीं हो जो सागर तक पहुंच सके; तुम्हारे पैर ही नहीं उठ रहे हैं। तुम कहीं न कहीं किसी मरुस्थल में खो जाओगे।
इसलिए लाओत्से कहता है, जिन्होंने जीवन में प्रेम छोड़ दिया; और प्रेम छूटा कि अभय छूटा; और जिन्होंने मध्यमार्ग चलने की कला न सीखी, जो अतियों में डोलते रहे; और जिन्होंने महत्वाकांक्षा का जहर पी लिया; और जो पीछे रहने को राजी न रहे, और दौड़ कर आगे होने का पागलपन जिन पर सवार हो गया; उनका विनाश सुनिश्चित है।
'इफ वन फोरसेक्स लव एंड फियरलेसनेस, फोरसेक्स रेस्टेंट एंड रिजर्व पावर, फोरसेक्स फालोइंग बिहाइंड एंड रशेज इन फ्रंट, ही इज़ डूम्ड!'
उसे बचाने का कोई उपाय नहीं। उसका विनाश बिलकुल निश्चित है। क्योंकि प्रेम, जब आक्रमण हो तब तुम्हें बचाता है, आक्रमण की घड़ी में प्रेम ही तुम्हारी जीत बनेगा। जब कोई तुम पर हमला करे तो प्रेम तुम्हें बचाता है।
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