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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 416 न घर के न घाट के । कहते हैं नः धोबी का गधा, न घर का न घाट का । वैसी दशा हो जाएगी, कच्चा कोई टूट जाएगा तो । तो मैं नहीं कहता कि तुम कच्चे लौट जाना । इसलिए मैं कहता हूं, अति से क्रांति होती है। तुम जी ही लो, तुम भरपूर जी लो। तुम्हें जितना भोजन में रस हो उसे पूरा कर लो; वमन की स्थिति आ जाने दो। तुम खुद ही अपने अनुभव से परिपक्व हो जाओ । संसार में कुछ बचे ही न – इसलिए नहीं कि शास्त्र कहते हैं— इसलिए कि तुमने जाना। इसलिए नहीं कि साधु-संन्यासी गुणगान करते हैं मोक्ष के आनंद का; उससे कुछ न होगा; उससे तुम लोभ में पड़ जाओगे। बहुत से लोभी उसमें फंस गए हैं। वह दुर्घटना है। तुम, परमात्मा को मिलने से परम आनंद होगा, इस लोभ में मत पड़ना। क्योंकि जो परमात्मा में आनंद की तलाश में जा रहा है, अभी उसकी सुख की भूख समाप्त नहीं हुई। तुम यह मत सोचना कि मोक्ष में अहर्निशं वर्षा हो रही है अमृत की। अमृत की आकांक्षा से अगर तुम जा रहे हो तो अभी मृत्यु का भय तुम्हारा समाप्त नहीं हुआ; अभी तुम मौत से डरे हुए हो। और यह मत सोचना कि स्वर्ग में अप्सराएं नाच रही हैं, जिनकी स्वर्ण-काया है, और जिनकी देह से पसीना और पसीने की बदबू कभी नहीं आती; सदा फूलों की बहार ! और जो सोलह साल से ज्यादा जिनकी उम्र कभी होती नहीं, रुक गई हैं सोलह साल पर, रिटार्डेड, वहां से आगे वे बढ़ती नहीं हैं, ऐसी अप्सराएं तुम्हारे आस-पास नाच रही हैं स्वर्ग में। बैठे हैं कल्पतरु के नीचे, जो भी इच्छा है फौरन पूरी हो जाती है। अगर इस वासना से तुम धर्म की तरफ गए हो तो दुर्घटना होगी। क्योंकि न तो ऐसा कहीं कोई स्वर्ग है - यह तो साधुओं द्वारा फेंका गया जाल है मछलियों को फांसने के लिए - न कहीं कोई ऐसी अप्सराएं हैं, कंचन - स्वर्ण की कोई देह नहीं हैं कहीं, और न ही कहीं कोई कल्पतरु हैं जिनके नीचे बैठ कर सब वासनाएं पूरी हो जाएं। तो फिर तुम अभी वासनाओं से भरे हो । संसार में जो नहीं पूरा कर पाए, वह कल्पतरु के नीचे पूरा करने की चेष्टा कर रहे हो। संसार की स्त्रियों से जो नहीं मिल सका, वह अप्सराओं से आशा बांधे हुए हो। मगर फंसे हो; अभी अनुभव नहीं हुआ । ज्ञानी तो कहेगा कि अगर स्वर्ग में भी अप्सराएं हैं तो फिर यहीं क्या बुरा? और अगर वहां भी वासनाएं ही तृप्त होंगी कल्पतरु के नीचे तो यहां क्या बुराई है ? मैंने तो एक उलटी ही कहानी सुनी है। मैंने तो सुना है कि एक फकीर रात सोया और उसने देखा कि वह कल्पतरु के नीचे बैठा है। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है : कल्पतरु । निऑन के अक्षरों में लिखा चमक रहा है। अरे, उसने कहा, आ गए स्वर्ग ! देखें शास्त्र में जो लिखा है, सच है या नहीं? उसने फौरन आज्ञा दी - कोई वहां दिखाई तो पड़ता नहीं—भोजन ! बड़े सुंदर थाल सजे आ गए। उसने कहा, निश्चित है । अप्सराएं ! अप्सराएं नाचने लगीं; वाद्य संगीत बजने लगे । ऐसा कुछ दिन चला। लेकिन कितनी देर चला सकते हो इसको ? इससे भी ऊब आने लगी। जब भोजन कहो तब भोजन आ जाए; जब बिस्तर लगवाओ, बिस्तर लग जाए; जब अप्सराएं कहो, अप्सराएं नाचने लगें; कितनी देर चलाओगे इसको ? आदमी थोड़ा बेचैन होने लगा। उसने कहा कि भई, कुछ काम भी करने को मिल सकता है कि नहीं ? आखिर बैठे-बैठे कब तक यह चलेगा; कुछ करना भी ! आवाज आई, यही तो तकलीफ है। यहां काम नहीं है। यहां तो तुम जो चाहो बिना काम के पूरा होता है। काम का कोई सवाल ही नहीं है। तो उसने कहा, इससे तो नरक में बेहतर । भीतर से आवाज आई, और तुम समझ क्या रहे हो कहां हो? यह नरक ही है!
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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