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________________ प्रेम और प्रेम में भेद है लाखों-करोड़ों लोगों को प्रेम के जीवन से खींच लिया लोगों ने। और उससे उन्हें कुछ मिला नहीं। हां, इतना जरूर हुआ कि नरक खो गया; लेकिन सीढ़ी भी खो गई जो स्वर्ग तक ले जा सकती थी। ___मैं चाहता हूं, तुम अपने जीवन को ठीक से पहचानो; यही जीवन सीढ़ी बनेगा स्वर्ग की। तुम जहां हो वहीं से मार्ग है। कहीं और भाग कर जाना नहीं है। नरक अभी है; वह तुम्हारे कारण है। जरा सी समझ, और नरक की हवाएं स्वर्ग की हवाओं में रूपांतरित हो जाती हैं, नरक की लपटें स्वर्ग की शीतलता में रूपांतरित हो जाती हैं। जरा सी समझ। जरा सा होश। होशपूर्वक प्रेम मंदिर बन जाता है; मूर्छापूर्वक प्रेम कारागृह बन जाता है। इसलिए अगर तुम प्रेम के साथ ध्यान को जोड़ सको-प्रेम + ध्यान-फिर सब ठीक है। प्रेम + मूर्छा-सब गलत है। प्रेम से नहीं बचना है; प्रेम में ध्यान और जोड़ देना है। ध्यानपूर्ण प्रेम का नाम ही प्रार्थना है। और तब तुम्हारा छोटा सा बच्चा जिसे तुम प्रेम करते हो तुम्हें छोटा बच्चा नहीं दिखाई पड़ेगा; तुम्हें छोटे से बालकृष्ण के दर्शन उसमें होने शुरू हो जाएंगे। तब उसके ठुमक-ठुमक कर चलने में तुम्हें सूरदास के पदों का अर्थ दिखाई पड़ने लगेगा; तब उसके नन्हे-नन्हे पैरों में बजती पैजनिया उस परम परमात्मा का संगीत हो जाएगा। जहां तुम हो, प्रेम से मत भागना, प्रेम में ध्यान को जोड़ लेना, इतनी ही मेरी शिक्षा है। और प्रेम मंदिर बन जाएगा। दूसरा प्रश्न : हम हैं झूठे लोग आँन लाओत्से हैं सहज और सरल। क्या ये विपरीत छोर कभी मिल पाएंगे? . विपरीत छोर सदा मिल सकते हैं; गहरे में मिले ही हुए होते हैं। क्योंकि विपरीत छोर एक ही चीज के दो छोर हैं; अलग हैं नहीं। इसलिए तुम मिलाने की कोशिश मत करना; मिलाने की कोशिश में मुश्किल होगी; तुम समझने की कोशिश करना कि मिले ही हुए हैं। जटिलता और सहजता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सत्य और झूठ भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। रात और दिन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मिले ही हुए हैं। तुम्हारे मिलाने की कोई जरूरत नहीं है। जागने की और जानने की जरूरत है कि मिले ही हुए हैं। और जैसे ही तुम जाग कर जानोगे कि मिले ही हुए हैं, तुम तत्क्षण सरल हो जाओगे। - लाओत्से होने के लिए तुम्हें अपनी जटिलता से संघर्ष नहीं करना है, नहीं तो छोर कभी न मिल पाएंगे। क्योंकि जटिलता से जितना संघर्ष करोगे, उतने और जटिल होते जाओगे। यह बड़े सोच लेने की जरूरत है कि जटिल आदमी जब जटिलता से लड़ता है तो और जटिल हो जाता है; जटिलता दुगनी हो जाती है। पहली जटिलता तो मौजूद ही होती है, अब एक लड़ाई की और जटिलता पैदा हो जाती है। और फिर अगर ऐसा ही तुम करते चले जाओ तो जिसको तर्क-शास्त्री कहते हैं इनफिनिट रिग्रेस, फिर तो तुम अनंतकाल तक करते चले जाओ, कुछ भी न होगा। एक झूठ से लड़ोगे; तुम्हें दूसरा झूठ खड़ा करना पड़ेगा। क्योंकि झूठ से लड़ना हो तो झूठ से ही लड़ा जा सकता है। मुल्ला नसरुद्दीन एक ट्रेन में बैठ कर घर आ रहा है। उसने ऊपर की सीट पर एक टोकरी रखी है, जिस टोकरी के ऊपर कई छेद बने हैं। एक आदमी उस टोकरी में उत्सुक हो गया खास कर छेद क्यों हैं। उसने पूछा कि माफ करें, ऐसी टोकरी मैंने कभी देखी नहीं; इसमें इतने छेद क्यों बने हुए हैं? नसरुद्दीन ने कहा कि इस टोकरी में एक नेवला है, उसको हवा लेने के लिए सांस की जरूरत है न। वह आदमी और हैरान हो गया। उसने कहा, नेवला किसलिए है? कहां ले जा रहे हो? 411
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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