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ताओ उपनिषद भाग ६
मानाहा
जो तृप्त है वह कहीं नहीं जाता; अतृप्त भटकता है। जो तृप्त है वह ठहर जाता है। तृप्ति एक बड़ा ठहराव है; एक शांत झील जिसमें लहर भी नहीं उठती यात्रा की, तरंग भी नहीं उठती।
पश्चिम में लोग बहुत अशांत हैं तो बड़ी यात्रा शुरू हो गई।
एक मित्र मेरे पास आए। मैंने उनसे पूछा, आप कहां जा रहे हैं? उन्होंने कहा, अब मैं यूनान जा रहा हूं। सारी दुनिया देख डाली है, बस एक सपना और रह गया है-यूनान देखने का। उम्र उनकी कोई पैंसठ साल; थक गए हैं। सारी दुनिया देख डाली है, एक सिर्फ यूनान रह गया है, वह कहीं बिना देखा न रह जाए। मैंने उनसे पूछा कि सारी दुनिया देख कर क्या पाया? कंधे बिचकाए उन्होंने। कहा, पाया तो कुछ भी नहीं। तो मैंने कहा, वह यूनान देख कर
और क्या पा लोगे जब सारी दुनिया देख कर न पाया? नहीं, उन्होंने कहा कि एक बात अटकी न रह जाए मन में। पता नहीं, जो कहीं नहीं मिला वह यूनान में मिल जाए।
लोग भटक रहे हैं, यहां से वहां जा रहे हैं। एक बेचैनी है चित्त की। इसलिए पश्चिम की बेचैनी के कारण रोज स्पीड बढ़ती जाती है। तुमने कभी खयाल न किया हो, अगर तुम कभी कार चलाते हो तो जिस दिन तुम बेचैन होते हो, उस दिन एक्सीलरेटर ज्यादा दबता है; उस दिन तुम सीमा के बाहर गाड़ी को चलाते हो। बेचैनी तीव्रता चाहती है। इसलिए पश्चिम में बेचैनी के कारण नये-नये साधन खोजे जा रहे हैं। चांद पर जाना है।
यहां कुछ न मिला; तुम चांद को खराब करने और किसलिए जा रहे हो? कृपा करो, अपनी बीमारी को यहीं जमीन तक सीमित रखो। चांद को क्यों भ्रष्ट करने का विचार किया? जहां तुम्हारे चरण पड़ेंगे वहीं उपद्रव शुरू हो जाएगा। नहीं लेकिन बेचैनी है! चांद पर जाना है। कहां रुकेगी यह बेचैनी?
लाओत्से कहता है, पड़ोस के गांव में भी जाने की क्या जरूरत है?
इसे थोड़ा समझ लेना। इसका मतलब है। इसका मतलब है कि जब तुम अपने भीतर ठहर जाते हो तो सब बाहरी यात्राएं रुक जाती हैं, व्यर्थ हो जाती हैं। तुम इतने प्रसन्न हो, जहां हो वहीं आकाश का कोना तुम्हारे लिए मोक्ष हो गया; वहीं स्वर्ग अवतरित हुआ है। अब और कहां जाना है?
कहता है लाओत्से, छोटा हो देश ताकि बड़ी राजनीति के जाल खड़े न हों। लोगों की वासनाएं न हों; आवश्यकताएं बराबर तृप्त की जाएं। ताकि जितनी आवश्यकताएं हैं उससे हजार गुनी पूर्ति के साधन हों। कोई दीन-दरिद्र अनुभव न करे। लोग शिक्षा, संस्कार, सभ्यता, गणित भूल जाएं; फिर से गिनने लगें अंगुलियों पर या बांधने लगें गांठें रस्सियों में, ताकि चालाकी खो जाए। सभ्य आदमी बड़ी बुरी तरह से छिपा हुआ असभ्य है। असभ्य भी इतने असभ्य नहीं। असभ्य बड़े सीधे-सादे लोग हैं।
लाओत्से कहता है, लोग वापस प्रकृति के साथ दोस्ती बना लें, दुश्मनी छोड़ दें। और जीवन की छोटी-छोटी चीजें प्रार्थनापूर्ण हो जाएं, अहोभाव हो जाएं। कोई उनकी निंदा न करे। उनकी निंदा करके ही उपद्रव हुआ है।
जीवन अपने आप में मूल्यवान है; उसकी इनदिँजिक वैल्यू है, उसकी आंतरिक मूल्यवत्ता है। जीवन किसी और कारण से मूल्यवान नहीं है। जीवन अपने आप में मूल्य है, आखिरी चरम मूल्य है। लोग जीएं और लोगों का जीवन एक नृत्य और गीत बन जाए। इस गीत और नृत्य से ही परमात्मा की सुगंध उठेगी। इस गीत और नृत्य से ही, कभी तुम पाओगे, तुम्हारे चरण मंदिर के द्वार पर आ गए।
जीवन के अतिरिक्त और कोई परमात्मा नहीं है। जीवन की गहनता ही है परमात्मा। और जीवन के अतिरिक्त कोई तीर्थ नहीं है। जीवन में ही जो उतर जाता है वह तीर्थ पर पहुंच जाता है।
आज इतना ही।
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