________________
ताओ उपनिषद भाग ६
'गिनती के लिए लोग फिर से रस्सी में गांठें बांधना शुरू करें। वे अपने भोजन में रस लें।' तुमने सुना है किसी महात्मा को कहते कि वे अपने भोजन में रस लें? 'अपनी पोशाक सुंदर बनाएं।' तुमने सुना है कभी किसी महात्मा को कहते? 'अपने घरों से संतुष्ट रहें। अपने रीति-रिवाज का मजा लें।'
लाओत्से यह कह रहा है, कर लो सब चीजें सरल; कुछ हर्जा नहीं है। भोजन में रस लो। न लेने में हर्जा है। क्योंकि अगर भोजन में रस न लिया तो वह जो रस लेने की वासना रह जाएगी, वह किसी और चीज में रस लेगी।
और वह रस तुम्हें अप्राकृतिक बनाएगा। और वह रस तुम्हें विकृति में ले जाएगा। स्वाभाविक रस ले लो; अस्वाभाविक रस के लिए बचने ही मत दो जगह। छोटी-छोटी चीजों में रस लो, उसका अर्थ है। स्नान करने में रस लो। वह भी अनूठा अनुभव है, अगर तुम मौजूद रहो। गिरती जल की धार, किसी जलप्रपात के नीचे। बहती नदी में, बहती जल की धार, उसका शीतल स्पर्श।
अगर तुम मौजूद हो और रस लेने को तैयार हो जो छोटी-छोटी चीजें इतनी रसपूर्ण हैं कि कौन फिक्र करता है मोक्ष की? मोक्ष की फिक्र तो वे ही करते हैं जिनके जीवन में सब तरफ रस खो गया। कौन चिंता करता है मंदिर-मस्जिदों की? अपने छोटे घर में संतुष्ट रहो; वही मंदिर है। संतोष मंदिर है। अपने छोटे से घर को मंदिर जैसा बना लो; संतुष्ट रहो। उसे बड़ा करने की जरूरत नहीं है। बड़े से तो वासना पैदा होगी। उस छोटे में संतोष भर देने की जरूरत है। तब आवश्यकता तृप्त हो जाएगी। कितना बड़ा घर चाहिए आदमी को? छोटा सा घर और संतोष, बहुत बड़ा घर हो जाता है। और बड़े से बड़ा घर और असंतोष, बड़ा छोटा हो जाता है। महलों में तुम पाओगे इतनी जगह नहीं है जितनी छोटे घर में जगह होती है।।
मैंने सुना है, एक फकीर हुआ। वह रात सोने जा ही रहा था कि किसी ने द्वार पर दस्तक दी। बड़ी छोटी झोपड़ी थी; पति और पत्नी सो सकते थे, बस इतनी ही जगह थी। पति ने पत्नी से कहा, द्वार खोल। बाहर तूफान है। शायद कोई भटका हुआ यात्री। पर पत्नी ने कहा, जगह कहां? उसने कहा कि दो के सोने के लायक काफी है, तीन के बैठने के लिए काफी है। यह कोई महल नहीं है कि यहां जगह कम हो जाए। यह तो गरीब का घर है; यहां जगह की क्या कमी? दरवाजा खोल दिया गया; मेहमान भीतर आ गया। वे तीनों बैठ गए। थोड़ी ही देर बीती होगी कि फिर किसी ने द्वार पर दस्तक दी। फकीर ने कहा मेहमान से, जो कि द्वार के पास बैठा था, कि द्वार खोल। तो उस मेहमान ने कहा, जगह कहां? फकीर ने कहा, यह कोई महल नहीं है, पागल! तीन के बैठने के लिए काफी है; चार के खड़े होने के लिए काफी है। गरीब का घर है, यहां बहत जगह है। हम जगह बना लेंगे।
उस फकीर ने बड़ी अनूठी बात कही कि यह कोई महल नहीं है कि जगह कम पड़ जाए। महल में कितनी जगह होती है, मगर सदा कम होती है। वासना जहां है, असंतोष जहां है, अतृप्ति जहां है, वहां सभी छोटा हो जाता है। जहां तृप्ति है, वहां सभी बड़ा हो जाता है। छोटा सा घर महल हो सकता है-तृप्ति से जुड़ जाए। बड़े से बड़ा महल झोपड़े जैसा हो जाता है-अतृप्ति से जुड़ जाए। तो तुम क्या करोगे? महल चाहोगे कि छोटे से घर को तृप्ति से जोड़ लेना चाहोगे?
लाओत्से कहता है, 'भोजन में रस लें। अपनी पोशाक सुंदर बनाएं।'
लाओत्से बड़ा नैसर्गिक है। यह बिलकुल स्वाभाविक है। मोर नाचता है, देखो उसके पंख! पक्षियों के रंग! तितलियों के रूप! प्रकृति बड़ी रंगीन है। आदमी उसी प्रकृति से आया है। थोड़ी रंगीन पोशाक एकदम जमती है। इतना स्वीकार है। जब पशु-पक्षी तक रंग से आनंदित होते हैं।
378