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________________ ताओ उपनिषद भाग६ अब हम लाओत्से के इन वचनों को समझने की कोशिश करें। 'पानी से दुर्बल कुछ भी नहीं है, लेकिन कठिन को जीतने में उससे बलवान भी कोई नहीं। उसके लिए पानी का कोई मुकाबला नहीं; वह अद्वितीय है। उसका कोई पर्याय नहीं।' पानी की निर्बलता क्या है? समझें। पानी को गिलास में डाल दो, गिलास के ढंग का हो जाता है; लोटे में रख दो, लोटे का आकार ले लेता है। पानी का अपना कोई आकार नहीं। उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं। यह उसकी पहली निर्बलता है। पानी की अपनी कोई आकृति नहीं। इतना निर्बल है कि अपने आकार को भी नहीं सम्हाल सकता; जैसा ढाल दो वैसा हो जाता है। जरा भी जिद्द नहीं करता कि यह क्या कर रहे हो? मुझे क्यों लोटे का आकार का बनाए दे रहे हो? पानी में प्रतिशोध नहीं है, विरोध नहीं है, रेसिस्टेंस नहीं है। तुमने जैसा ढाला वैसा ही ढल जाता है। एक दफे भी आवाज नहीं देता कि यह क्या कर रहे हो? मेरा आकार बिगाड़े देते हो! इसलिए हमें लगेगा बड़ा निर्बल है। न कोई व्यक्तित्व, न कोई अहंकार की घोषणा। पत्थर को इतनी आसानी से न ढाल सकोगे। सब तरह की अड़चन खड़ी करेगा। छेनी-हथौड़ी लानी पड़ेगी; बड़ी कुशलता से मेहनत करनी पड़ेगी तब कहीं तुम पत्थर को आकार दे पाओगे। इंच-इंच लड़ेगा; प्रतिपल विरोध करेगा। तुम चाहे सुंदर मूर्ति ही गढ़ रहे होओ, अनगढ़ पत्थर भी विरोध करेगा। वह कहेगा, रहने दो मुझे जैसा मैं हूं। तुम हो कौन बदलने वाले? तुम्हारी छेनी-हथौड़ी से भी लड़ेगा, संघर्ष देगा। वह पत्थर का बल है। वह तुम्हें ऐसे ही नहीं बदल लेने देगा। बिना संघर्ष के तुम इंच भर भी जीत न सकोगे। लेकिन पानी ऐसा निर्बल है कि एक क्षण को भी विरोध खड़ा नहीं करता। तुम इधर ढालते हो, उधर वह ढल जाता है। न छेनी लानी पड़ती न हथौड़ी; कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता। लेकिन यही उसका बल भी है। पत्थर को-वह कितना ही बलवान मालूम पड़ता हो-तोड़ा जा सकता है, आकार दिया जा सकता है, मूर्ति बनाई जा सकती है। तुमने कभी किसी को पानी की मूर्ति बनाते देखा? पत्थर लड़ता है, लेकिन ढाला जा सकता है। पानी ढलने को बिलकुल तैयार है। कैसे ढालोगे? तुम भला सोच लो कि तुमने पानी को आकार दे दिया, लेकिन पानी अपने निराकार होने में लीन रहता है। गिलास में ढालते हो तो भी तुम सोचते हो कि आकार मिल गया। आकार मिला नहीं है। गिलास से बाहर निकालो पानी को, वह फिर निराकार है। पानी अपने निराकार में लीन रहता है। ऊपर से दिखाई पड़ती है जो निर्बलता वही उसकी बड़ी सबलता है। पानी निराकार है; पत्थर आकार है। पानी परमात्मा के ज्यादा निकट है। अहंकार नहीं है पानी के पास कोई। पानी को भी जमा कर अगर तुम बर्फ बना लो तो संघर्ष शुरू हो जाता है। अहंकार की भी ऐसी ही तीन दशाएं हैं। जैसे पानी जम जाए बर्फ, ऐसा जो गहन अहंकारी होता है उसके भीतर पत्थर जैसा अहंकार होता है, बर्फ जैसा। अहंकार की दूसरी अवस्था है पानी जैसी तरल। यह विनम्र आदमी है; तुम उसे जैसा ढालो वैसा ढल जाए; तुम उसे जहां चलाओ चल जाए; जो किसी तरह का प्रतिरोध नहीं करता; कोई संघर्ष नहीं करता; हवाएं जहां ले जाएं वहां जाने को राजी है; जिसकी अपनी कोई मर्जी नहीं; तरल। और फिर अहंकार की आखिरी अवस्था है जैसे भाप। खो ही जाए, इतना भी न बचे जितना कि पानी है, विराट आकाश में लीन हो जाए। जैसे-जैसे तरल होता है पत्थर का बर्फ वैसे-वैसे निराकार के करीब आता है। फिर जैसे-जैसे वाष्प बनता है तो निराकार के साथ बिलकुल लीन हो जाता है। अपने भीतर खोजना कि अहंकार किस दशा में है। अक्सर तो तुम पाओगे, पत्थर की तरह है। हर वक्त संघर्ष में लीन है, और हर वक्त सुरक्षा के लिए तत्पर है, कि कहीं कोई हमला न कर दे, कि कहीं कोई हंस न दे, कि कहीं कोई चोट न पहुंचा दे। तुम पूरे वक्त अपने को बचा रहे हो। और बचाने योग्य भीतर कुछ भी नहीं है। व्यर्थ ही पहरा दे रहे हो; अभी पहरा देने योग्य संपदा भी पास में नहीं है। व्यर्थ ही पूरे समय संघर्ष कर रहे हो। लोग जिंदगी भर 328
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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