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ताओ उपविषद भाग ६
देखता है लाओत्से-पूर्णिमा की रात होगी, झुरमुट के पास से गुजरता है-एक शक्तिशाली युवक एक कोमल सी दिखने वाली युवती के चरणों में झुका है, याचना कर रहा है प्रेम की। स्त्री कमजोर है; बड़े से बड़े पुरुष को झुका लेती है। सिकंदर भी, नेपोलियन भी किसी स्त्री के चरणों में ऐसे झुक जाते हैं जैसे भिखारी हों। बड़ी सेनाएं उन्हें नहीं झुका सकती; पर्वत भी उनसे लड़ने को राजी हों तो पर्वतों को उखड़ जाना पड़ेगा। नेपोलियन के सामने आल्प्स पर्वत को झुक जाना पड़ा; किसी ने कभी पार न किया था, नेपोलियन ने पार कर लिया। सिकंदर ने सारी दुनिया रौंद डाली; बड़े-बड़े योद्धाओं को मिट्टी में मिला दिया। लेकिन एक कोमलगात, एक स्त्री, फूल जैसी, और सिकंदर वहां घुटने टेके खड़ा है।
लाओत्से देखता है। पूरे चांद की रात, झुरमुट में देखी घटना, ऐसे ही नहीं देखता। लाओत्से जो भी देखता है, वहां से जीवन का सार ले लेता है; कमजोर जीत जाता है, बलवान हार जाता है। बलवान होने की एक ही कला है, वह है कमजोर हो जाना। जीतने का एक ही मार्ग है, वह है जल की भांति हो जाना। इसलिए लाओत्से स्त्री की महिमा के इतने गुणगान गाता है कि संसार में कभी किसी ने नहीं गाए। अगर कभी भी सोचा जाएगा कि किस व्यक्ति ने स्त्री को सबसे ज्यादा समझा है तो लाओत्से का कोई मुकाबला नहीं। और स्त्री के गुणगान का कारण क्या है? उसके गुणगान का कारण है कि स्त्रैण-गुण कोमल है, जल जैसा है; उसमें एक बहाव है। पुरुष सख्त है, पत्थर जैसा है। और कोमल सदा सख्त को झुका लेता है। चट्टान सदा टूट जाती है जलधार के सामने।
लाओत्से गुजर रहा है एक बाजार से। मेला भरा है। एक बैलगाड़ी उलट गई है; दुर्घटना हो गई है। मालिक था, हड्डी-पसलियां टूट गई हैं। बैल तक बुरी तरह आहत हुए हैं। गाड़ी तक चकनाचूर हो गई है। एक छोटा बच्चा भी गाड़ी में था; दुर्घटना जैसे उसे छुई ही नहीं।
तुमने अक्सर देखा होगा, कभी किसी मकान में आग लग गई है, सब जल गया, और एक छोटा बच्चा बच गया। कभी कोई छोटा बच्चा दस मंजिल ऊपर से गिर जाता है, और खिलखिला कर खड़ा हो जाता है, और चोट । नहीं लगती। लोगों में कहावत है, जाको राखे साइयां मार सके न कोए। इसमें परमात्मा का कोई सवाल नहीं है। क्योंकि परमात्मा को क्या भेद है-कौन छोटा, कौन बड़ा!
नहीं, राज कुछ और है। वह लाओत्से जानता है। बच्चा कमजोर है। अभी बच्चा सख्त नहीं हुआ। अभी उसकी हड्डियां पथरीली नहीं हुई। अभी उसकी जीवन-धार तरल है। जितनी हड्डियां मजबूत हो जाएंगी उतनी ही ज्यादा चोट लगेगी। बैलगाड़ी उलटेगी, तो बूढ़े को ज्यादा चोट लगेगी, बच्चे को न के बराबर। क्योंकि बच्चा इतना कोमल है; जब गिरता है जमीन पर तो उसका कोई प्रतिरोध नहीं होता जमीन से। वह जमीन के खिलाफ अपने को बचाता नहीं। उसके भीतर बचाव का कोई सवाल ही नहीं होता; वह जमीन के साथ हो जाता है। वह गिरने में साथ हो जाता है। वह समर्पण कर देता है, संघर्ष नहीं। कठोरता में संघर्ष है।
जब तुम गिरते हो तो तुम लड़ते हुए गिरते हो, तुम गिरने के विपरीत जाते हुए गिरते हो, तुम अपने को बचाते हुए गिरते हो, तुम मजबूरी में गिरते हो। तुम्हारी चेष्टा पूरी होती है कि न गिरें, बच जाएं, आखिरी दम तक बच जाएं। तो तुम्हारी हड्डी-हड्डी, रोएं-रोएं में सख्ती होती है कि किसी तरह बच जाएं। और जब बचने का भाव होता है तो सब चीजें सख्त हो जाती हैं। बच्चे को पता ही नहीं होता क्या हो रहा है। वह ऐसे गिरता है जैसे कोई नदी की धार में धार के साथ बहता हो। तुम धार के विपरीत तैरते हुए गिरते हो। तुम्हारी विपरीतता में, तुम्हारी सख्ती में ही तुम्हारी चोट छिपी है। बच्चा बच जाता है।
लाओत्से खड़ा है नदी के किनारे। एक आदमी डूब गया है। लोग उसकी लाश को खोज रहे हैं। आखिर में लाश खुद ही पानी के ऊपर तैर आई है। और लाओत्से बड़ा चकित होता है : जिंदा आदमी तो डूब गया और मुर्दा
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