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संत संसार भर को देता है, और बेशर्त
बुद्ध ने कहा, पागल! ज्ञान को तो तू ही उपलब्ध होता, मेरे रहते या न रहते कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरी मौजूदगी तो सिर्फ बहाना है। और अगर तूने मुझे प्रेम किया है तो मेरी मौजूदगी सदा बनी रहेगी। उस बहाने का तू कभी भी उपयोग कर सकता है।
वैज्ञानिक एक शब्द का प्रयोग करते हैं, वह है कैटेलिटिक एजेंट। कुछ घटनाएं घटती हैं किन्हीं चीजों की मौजूदगी में। जिन चीजों की मौजूदगी में घटती हैं उनकी मौजूदगी से कुछ भी क्रिया नहीं होती; सिर्फ मौजूदगी! हाइड्रोजन आक्सीजन मिलते हैं, लेकिन विद्युत की मौजूदगी चाहिए। विद्युत के कारण नहीं मिलते, विद्युत का जरा सा भी उपयोग नहीं होता। लेकिन बिना मौजूदगी के नहीं मिलते; मौजूदगी चाहिए। बस सिर्फ मौजूदगी काफी है।
तो संत तो कैटेलिटिक एजेंट हो जाता है। उसकी मौजूदगी में कुछ घटनाएं घटती हैं। वह उनका श्रेय नहीं लेता।
तुम निकलते हो, और राह के किनारे अगर पक्षी भी गीत गाने लगे तो तुम समझते हो शायद तुम्हारी वजह से ही गा रहा है कि फूल खिल जाए तो तुम सोचते हो शायद तुम्हारी वजह से ही खिल रहा है। अहंकारी आदमी अपने को केंद्र मानता है सारे अस्तित्व का; सब कुछ उसकी वजह से हो रहा है।
संत का अहंकार टूट गया; सब कुछ अपने आप हो रहा है।
तो बुद्ध ने कहा कि तू अपने ही कारण ज्ञान को उपलब्ध होगा। तेरा भीतर का ही दीया जलेगा। मेरी मौजूदगी गैर-मौजूदगी का कोई सवाल नहीं है। और अगर तुझे बहाना ही लेना हो तो तेरे लिए मैं सदा मौजूद हूं। क्योंकि शरीर ही गिर रहा है, मैं तो रहूंगा।
संत जरा सा भी श्रेय लेने की आकांक्षा नहीं रखते। तभी तो वे संत हैं। संतत्व खिलता ही तब है जब सारी हीनता गिर जाती है। जब कोई अपने भीतर की परम आत्यंतिक श्रेष्ठता को उपलब्ध हो जाता है तब तुमसे धन्यवाद भी क्या मांगेगा?
'कौन है जिसके पास सारे संसार को देने के लिए पर्याप्त है? केवल ताओ का व्यक्ति। इसलिए संत कर्म करते हैं, लेकिन अधिकृत नहीं; संपन्न करते हैं, लेकिन श्रेय नहीं लेते। क्योंकि उन्हें वरिष्ठ दिखने की कामना नहीं है।'
आज इतना ही।
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