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संत संसार भर को देता है, और बेशर्त
लाओत्से कहता है, स्वर्ग का ढंग है, उनसे छीन लेता है जिनके पास अतिशय है, उन्हें दे देता है जिनके पास पर्याप्त नहीं है। तो परमात्मा के राज्य में अंतिम प्रथम नहीं हो जाएंगे और प्रथम अंतिम नहीं हो जाएंगे। न तो परमात्मा के राज्य में कोई प्रथम रह जाएगा और न कोई अंतिम रह जाएगा। परमात्मा के राज्य में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं होगा। प्रथम और अंतिम तो दूसरे के साथ तुलना है। परमात्मा के राज्य में प्रथम व्यक्ति का अर्थ हुआ दूसरे पीछे खड़े हैं; वह तो फिर भी नजर दूसरे पर रही। परमात्मा के राज्य में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं होगा। तुलना टूट जाएगी, कंपेरिजन खो जाएगा। परमात्मा के राज्य में तुम तुम होओगे, मैं मैं होऊंगा। न तुम मुझसे आगे होओगे, न मैं तुमसे पीछे। न मैं तुमसे आगे, न तुम मुझसे पीछे। प्रत्येक व्यक्ति अपनी पूरी खिलावट में खिल जाएगा। कमल गुलाब से पीछे है या आगे? कमल कमल है, गुलाब गुलाब है। कौन पीछे है? कौन आगे है? परमात्मा के राज्य में सभी खिल जाएंगे। कोई आगे-पीछे नहीं होगा। आगे-पीछे की धारणा ही सांसारिक धारणा है। वह अहंकार की ही तुलना है।
लाओत्से कहता है, सब सम हो जाएगा, एक संगीत पैदा होगा। सबके पास बराबर होगा। सभी अद्वितीय होंगे अपनी निजता में, लेकिन सभी के पास बराबर होगा।
'मनुष्य का ढंग यह नहीं है।' मनुष्य का ढंग परमात्मा के ढंग से बिलकुल उलटा है। 'वह उनसे छीन लेता है जिनके पास नहीं है।'
तुम गरीबों से तो छीनते हो और अमीरों को भेंट दे आते हो। दीन-दरिद्र से तो छीन लेते हो और सम्राट के चरणों में चढ़ा आते हो। जिसे कोई जरूरत न थी उसे तो तुम भेंट देते हो, और जिसे जरूरत थी उसे तुम इनकार कर देते हो, उससे उलटा छीन लेते हो। तुम भिखारी के खीसे से निकालते हो और सम्राटों के खीसों में डालते हो। तुम उसे भोजन का निमंत्रण दे आते हो जिसका पेट भरा ही हुआ है, जो तुम्हारी थाली पर बैठ कर थोड़ा स्वाद लेगा इधर-उधर, और सब पड़ा छोड़ जाएगा। और जो तुम्हारे द्वार पर भीख मांगने खड़ा होता है, उससे तुम कहते हो, आगे जाओ, यहां खड़े मत हो। जो भूखा तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता है वह तो आगे हटा दिया जाता है। और भरे पेट लोग, तुमने जो भी बनाया है उनके स्वागत-समारोह में, उसे वैसा ही पड़ा छोड़ जाएंगे।
असल में, तभी तुम प्रसन्न होते हो जब कोई सब पड़ा छोड़ जाए। उसका अर्थ हुआ कि कोई बड़ा मेहमान तुम्हारे घर आया था। अगर सब जो तुमने परोसा था वह सब खा जाए, तो तुम समझोगे कहां के दीन-दरिद्र को घर बुला बैठे! तो शिष्टाचार भी यह कहता है कि किसी के घर अगर बुलाए जाओ तो भूख भी लगी हो तो भी खाना मत। क्योंकि भूख के कारण तुम नहीं बुलाए गए हो। और भूख के कारण तो तुम अगर खड़े होते द्वार पर तो हटा दिए गए होते। तुम भरे पेट के कारण बुलाए गए हो। तुम बुलाए ही इसलिए गए हो कि तुम्हारे पास बहुत है; वे तुम्हें और देना चाहते हैं। इसलिए तुम भूल कर भी यह प्रकट मत करना कि तुम्हें भूख लगी है। तुम थाली पर ऐसे बैठना जैसे उपेक्षा से; ऐसा जरा सा दाना यहां से ले लेना, जरा सा सूप यहां से चख लेना, एकाध रोटी का टुकड़ा तोड़ लेना,
और सब ऐसे ही कचरे में डला रह जाने देना। तभी घर के लोग प्रसन्न होंगे कि कोई बड़ा आदमी घर आया था। अगर तुमने सभी भोजन कर लिया तो वे भी दुखी होंगे, कहां के भिखारी को बुला बैठे! गलती हो गई। दोबारा तुम्हें निमंत्रण न मिलेगा। आदमी के ढंग बड़े अजीब हैं।
__ ऐसा हुआ, कि उर्दू में बहुत बड़ा महाकवि हुआ गालिब। दिल्ली के सम्राट ने गालिब को किसी उत्सव में निमंत्रण दिया। बड़ा निमंत्रण था, बड़ा भोज था। लेकिन सम्राट को गालिब के वचनों में लगाव था, उसके गीतों में रस था। गालिब के मित्रों ने कहा कि जा रहे हो तो थोड़ा सोच-समझ कर जाओ। ये कपड़े तुम्हारे ठीक नहीं हैं, ये सम्राट के दरबार के योग्य नहीं हैं। ये फटे-पुराने कपड़े पहन कर जाओगे, कोई पहचानेगा भी नहीं। और डर यह है
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