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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 238 इतना शतरंज के खेल का उसे शौक था कि रात भर चालें चलता रहे नींद में। सुबह होते ही से सब काम छोड़ कर वह शतरंज की चाल पर बैठ जाए; दिन देखे न रात । धीरे-धीरे वह पगला गया; धीरे-धीरे बस शतरंज ही रह गई, और सब भूल गया। चिकित्सक बुलाए गए। चिकित्सकों ने कहा, यह हमारे हाथ की बात नहीं। अगर कोई शतरंज का बड़ा खिलाड़ी इसके साथ शतरंज खेले तो शायद कुछ हल हो जाए। राज्य के सबसे बड़े खिलाड़ी को बुलाया गया । वह राजी हो गया सम्राट को सुधारने को। एक साल तक, कहते हैं, वह उसके साथ खेल खेलता रहा। और वह सही साबित हुआ, सम्राट ठीक हो गया एक साल के बाद, लेकिन खिलाड़ी पागल हो गया। पागल के साथ शतरंज खेलना ! एक तो शतरंज वैसे ही पागल करने वाला खेल, फिर पागल के साथ खेलना ! तो सम्राट तो कहते हैं ठीक हो गया साल भर में, लेकिन खिलाड़ी पागल हो गया। चिकित्सकों से खिलाड़ी के घर के लोगों ने पूछा, अब क्या करें? उन्होंने कहा कि और कोई बड़ा खिलाड़ी खोजो जो राजी हो इसको सुधारने को । मगर तब कोई खिलाड़ी राजी न हुआ, क्योंकि बात फैल गई कि जो सुधारेगा वह पागल हो जाएगा। बुरे को सुधारने में सम्हल कर कदम उठाना। पहले अपनी तरफ गौर से देख लेना, कहीं बुरे को सुधारने में तुम बुरे तो न हो जाओगे! गलत को सुधारने में गलत तो न हो जाओगे ! वेश्या को सुधारने सोच-समझ कर जाना; शराबी को सुधारने होश से जाना। एक युवक अभी कुछ दिन पहले मेरे पास आया और उसने कहा कि मैं बड़ी झंझट में पड़ गया हूं। लंदन में कोई संस्था होगी जो शराबियों को सुधारने का काम करती है। पश्चिम में ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं। बड़ी अंतर्राष्ट्रीय एक संस्था हैः अल्कोहलिक अनॉनिमस । वैसी कोई संस्था में वह शराबियों को सुधारने के काम में लगा होगा । शराबी सुधरे कि नहीं, वह शराब पीना सीख गया। अब वह कहता है, मुझे कौन सुधारे ? जरा सम्हल कर सुधारने की बात में उतरना । क्योंकि वह महा काष्ठकार की कुल्हाड़ी है । बुद्धों ने वह काम किया है; वह तुमसे न हो सकेगा। तुम उस कुल्हाड़ी को हाथ में लेकर चलाओगे, तुम अपने ही हाथ-पैर काट लोगे। बुद्ध वह काम कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें करना नहीं पड़ता, उनकी मौजूदगी सुधारती है। वही तो कला है। उनका होना सुधारता है; उनका अस्तित्व, उनका पूरा समग्र चैतन्य । उनकी मौजूदगी से क्रांति घटित होती है। बुद्ध पुरुष के पास होने से तुम बदलने शुरू हो जाते हो। वह तुम्हें बदलना नहीं चाहता। उसकी कोई चाह नहीं रही; इसीलिए तो वह बुद्ध पुरुष है। वह तुम्हें बदलने की भी चाह नहीं रखता। वह तुम्हें तुम्हारी समग्रता में स्वीकार करता है; तुम जैसे हो भले हो। इसी स्वीकार से तुम्हारी क्रांति शुरू होती है। वह तुम्हें प्रेम करता है; तुम जैसे हो, बेशर्त, वैसे ही प्रेम करता है । वह यह नहीं कहता कि तुम ऐसे हो जाओ तब मैं तुम्हें प्रेम करूंगा। वह कहता है, तुम जैसे हो परिपूर्ण हो; मैं तुम्हें प्रेम करता हूं। उसका हृदय तुम्हें अंगीकार कर लेता है। वह तुम्हें आलिंगन कर लेता है; एक गहन तल पर तुम्हें स्वीकार कर लेता है। उसी स्वीकृति से तुम्हारे जीवन में क्रांति घटनी शुरू होती है। उसका प्रेम तुम्हें बदलता है। उसकी करुणा तुम्हें बदलती है। उसकी चेतना तुम्हें बदलती है। वह तुम्हें नहीं बदलता; वह तुम्हें बदलना भी नहीं चाहता । और जो तुम्हें बदलना चाहते हैं वे तुम्हें तो बदल ही नहीं पाते, तुम्हें बदलने में खुद बदल जाते हैं। तुम भी दूसरे को बदलने की चेष्टा में मत लगना । उससे बड़ी भूल नहीं है। अगर किसी को भी तुम्हें बदलना हो तो खुद को बदलना। तुम जिस दिन बदल जाओगे, तुम एक जले हुए दीये होओगे। तुम्हारी रोशनी तुम्हारे चारों तरफ पड़ेगी। जो भी वहां से निकलेगा उस रोशनी का दान ले लेगा। जो भी वहां से निकलेगा वह रोशनी उसे जीवन का दर्शन करा देगी। बदलाहट निष्क्रिय चेतना से घटती है, सक्रिय चेतना से नहीं ।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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