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ताओ उपनिषद भाग ६
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बुराई तो मिट जाएगी, लेकिन सारे लोग पक्षाघात से घिर जाएं यह तो महा बुराई हो जाएगी। ये तो मुर्दा हो गए। और यही किया गया है अब तक। भय तुम्हें लकवा लगा देता है । भय के कारण तुम्हारे हाथ-पैर जड़ हो जाते हैं; तुम्हारी चेतना गतिमान नहीं रह जाती। गत्यात्मकता खो जाती है; तुम्हारे जीवन की ऊर्जा डायनेमिक नहीं रहती । तुम्हारे जीवन की ऊर्जा बंधी-बंधी हो जाती है। जैसे नदी ने बहना बंद कर दिया और वह छोटी तलैया हो गई— बंद अपने में। सड़ती है, बहती नहीं; कहीं जाती नहीं, वहीं पड़ी रहती है। अब तक का नीति शास्त्र और समाज शास्त्र भय के द्वारा लोगों को पक्षाघात पैदा कर रहा है।
पक्षाघात शुभ नहीं है। भला पक्षाघात से तुम कितने ही नैतिक मालूम पड़ो, लेकिन पड़े पक्षाघात में सोचोगे तो अनीति, सोचोगे तो पाप । पक्षाघात तुम्हारे शरीर को रोक देगा, लेकिन तुम्हारे मन को तो नहीं। तुम्हारा मन तो विक्षिप्त की भांति घूमेगा। और वही मन वस्तुतः निर्णायक है।
तो लाओत्से कहता है, 'क्यों उन्हें मृत्यु की धमकी दी जाए ?"
उससे कुछ सार न होगा, बल्कि खतरा होगा। कुछ जो अभी जीवन में चलना ही सीख रहे थे वे डर के मारे बैठ जाएंगे। और कुछ जो जीवन से मुक्त होने के करीब आ रहे थे, जीवन ने ही जिन्हें इतना सता दिया था, जीवन की पीड़ा ने ही जिन्हें इतना उबा दिया था कि वे करीब आ रहे थे कि जीवन के पार होने की चेष्टा करें, वे तुम्हारी धमकी से चुनौती समझ लेंगे, वे वापस लड़ने को जीवन में खड़े हो जाएंगे। भयभीत और भयभीत हो जाएंगे, निर्भीक और निर्भीक हो जाएंगे। यह बड़ी उलटी घटना है। तुम चाहते थे कि निर्भीक भयभीत हो जाएं; वे नहीं होंगे।
ऐसा एक गांव में हुआ। एक राजपथ पर छोटा सा गांव था— दोनों तरफ रास्ते के किनारे बसा । बड़ा राजपथ था और कारें बड़ी तेज गति से गुजरतीं, बसें और ट्रक, और गांव को बड़ा खतरा था। तो गांव की पंचायत ने तय किया था कि गांव के भीतर कोई भी बीस मील से ज्यादा रफ्तार से वाहन न गुजरे।
लेकिन छोटा गांव, कौन फिक्र करे ? उनकी तख्ती को कोई पढ़ता ही न था। वह लगा रखी थी तख्ती, लेकिन कोई उसकी चिंता ही न लेता था। तो उन्होंने सोचा कि शायद बीस मील की बात ठीक नहीं है, हम सिर्फ इतना ही लिखें कि कृपया अत्यंत धीमी गति से यहां से गुजरें। और पंचायत का एक आदमी खड़ा किया गया जो जांच करे खड़े होकर कि इसका कोई परिणाम होता है कि नहीं।
उस आदमी ने सात दिन बाद रिपोर्ट दी और कहा, जो लोग 'बीस मील की रफ्तार से चलें' उसको पढ़ कर बीस मील की रफ्तार से चलते थे वे लोग तो पांच मील की रफ्तार से चलने लगे और जो उस बीस मील की तख्ती को देख कर अपनी पचास मील की रफ्तार कायम रखते थे अब वे सत्तर मील से चल रहे हैं।
अक्सर ऐसा ही पूरे जीवन में हो रहा है। निर्भीक डरता नहीं तुम्हारे डराने से, बल्कि और उत्तेजित हो जाता है। भयभीत वैसे ही भयभीत था, वह और भयभीत हो जाता है। एक पक्षाघात से घिर जाता है, दूसरा अहंकार की अकड़ से। दोनों ही समाज के लिए घातक हैं।
लाओत्से कहता है, 'मान लो लोग मृत्यु से भयभीत हैं, और हम उपद्रवियों को पकड़ कर मार सकते हैं, तो भी कौन ऐसा करने की हिम्मत करेगा ?"
हिम्मत की गई है। करनी नहीं चाहिए; जो नहीं होना था वह हुआ है। हमने सदा यह कोशिश की है कि उपद्रवियों को मार डालो। हत्यारों की हमने हत्या कर दी है कानून के नाम पर । अदालतें समाज के द्वारा नियुक्त की गई हत्या की संस्थाएं हैं। जिस चीज का हम दंड देते हैं वही हम खुद करते हैं। एक आदमी ने किसी की हत्या की; फिर हम अदालत में उस पर कानून का जाल बिछा कर बड़े ढंग से करते हैं, योजना से करते हैं । उस आदमी को मौका नहीं देते कहने का कि कोई अन्याय किया गया। बड़ी न्याय की व्यवस्था जमाते हैं, लेकिन करते हम वही हैं