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________________ संत स्वयं को प्रेम करते है नाम पर सिर्फ पलस्तर गिरता है। अनुभव तो यह था। लेकिन जब विज्ञापन पढ़ा, और बार-बार पढ़ा, तो गया भागा हुआ एजेंट के पास और कहा, बेचना नहीं है मकान ! जैसा मकान मैं चाहता था वैसा ही तो यह मकान है-झील के किनारे, प्राचीन। तुम्हें खुद भी भरोसा करना हो तो दूसरों की आंखों से देखना शुरू करना पड़ता है। साधु निंदा करता है असाधुता की। वह अपने ही भीतर के हिस्से का खंडन कर रहा है जिसे वह आत्मसात नहीं कर पाया है, जो उसे सता रहा है। तुम्हारे बहाने वह उसकी निंदा करता है। तुम्हारी आंखों में आश्वासन देख कर उसे आश्वासन वापस आ जाता है; लड़ाई उसकी फिर शुरू हो जाती है। साधु और असाधु समझौते में हैं, एक ही षड्यंत्र में हैं। वे एक-दूसरे को सम्हाले हुए हैं। असाधु सम्हाले हुए है साधु को। असाधु के बिना साधु एक क्षण न जी सकेगा। साधु सम्हाले हुए है असाधु को। क्योंकि साधु आशा देता है असाधु को कि कोई हर्जा नहीं, आज असाधु हैं, कल तुम जैसे हम भी हो जाएंगे। थोड़ा सा ही समय और है। लड़की की शादी निपट जाए, दुकान व्यवस्थित हो जाए, हमें भी साधु के जीवन में ही तो जाना है। असाधु को साधु आशा है भविष्य की, और साधु को असाधु का नरक इस बात का निश्चय है कि मैं ठीक हूं। दोनों अंधेरे में हैं। और अंधेरे से उठना है। जो अंधेरे से बाहर उठ गया उसको लाओत्से संत कहता है। संत का अर्थ है, जिसने अपनी असाधुता को दबाया नहीं और जिसने साधुता को फुलाया नहीं; जो असाधुता-साधुता के द्वंद्व के बाहर हो गया; जो भय और निर्भयता के बाहर हो गया; जो जाग गया; जिसने सब सपने छोड़ दिए साधु-असाधु के, अच्छे-बुरे के; जो गुणातीत हो गया; जिसने चुना नहीं, एक के पक्ष में दूसरे को न चुना; जो च्वाइसलेस, चुनावरहित हो गया। ___ 'उनके निवास-गृहों की निंदा मत करो।' क्योंकि उनका कोई कसूर नहीं है। वे अंधेरे में हैं, इसलिए उनके निवास-गृह भी अंधेरे में हैं। और निंदा से तुम उनकी सहायता भी न कर पाओगे। निंदा से तुम उन्हें और भी निंदित कर दोगे, आत्मग्लानि से भर दोगे। यह मेरा अनुभव है कि जहां-जहां धर्मगुरु ज्यादा संख्या में होते हैं वहां-वहां लोग आत्मविश्वास खो देते हैं; वहां लोगों की आत्मग्लानि सघन हो जाती है। वहां लोग अपने ही प्रति इतनी निंदा से भर जाते हैं कि परमात्मा को खोजना तो दूर, खड़े होना उनकी हिम्मत के बाहर हो जाता है; यात्रा पर जाना तो बहुत दूर, पैर उठाने का भी सामर्थ्य खो जाता है। । मेरे पास लोग आते हैं, धर्मगुरुओं के मारे हुए, तब वे मुझसे कहते हैं कि हम पापी, हम महापापी, हमें उबारो। उनका यह कहना कि हम पापी, हम महापापी, अपने भीतर के परमात्मा का अस्वीकार है। उनका भरोसा डगमगा गया। उनकी आस्था टूट गई। इतनी निंदा की गई है उनकी कि वे अब यह मान ही नहीं सकते कि वे भी उबर सकते हैं। मैं उनसे कहता हूं, उबर जाओगे। वे कहते हैं, जन्मों-जन्म लगेंगे, हम बहुत पापी हैं, आपको पता नहीं। हम बहुत अपराधी हैं, हमने बड़े पाप किए हैं। बट्रेंड रसेल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ईसाई कहते हैं कि पापियों को सदा-सदा के लिए नरक में डाल दिया जाएगा-सदा-सदा के लिए। अनंत काल के लिए! रसेल ने लिखा है, यह तो अन्यायपूर्ण मालूम पड़ता है। उसने कहा कि अगर मैंने जिंदगी में जितने पाप किए हैं सबकी मैं फेहरिस्त बना दूं, जो किए हैं उनकी भी और जो केवल मैंने सोचे हैं, किए नहीं, उनकी भी, तो कठोर से कठोर न्यायाधीश भी मुझे चार साल से ज्यादा की सजा नहीं दे सकता। लेकिन धर्मगुरु कह रहे हैं कि अनंत काल तक सड़ाए जाओगे। कसूर तो बहुत छोटा मालूम पड़ता है, दंड बहुत ज्यादा मालूम पड़ता है। जैसे धर्मगुरुओं को मजा आ रहा है। नरक का वर्णन तुमने कभी साधुओं के मुंह से सुना? नरक का वर्णन करने में वे ऐसे कुशल हैं कि तुम्हारा रोध-रोआं कंपा देंगे। आग, जलते हुए कड़ाहे, जलाए जाओगे लेकिन जलोगे नहीं। क्योंकि जल गए एक दफा तो 195
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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