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लाओत्से न तो बाँद्ध है, न मुसालाओत्से का कोई धर्म नहीं हैं। लाओत्से का कोई शास्त्र नहीं हैं। लाओत्से ने जो भी देखा है वह किसी शास्त्र, किसी शब्द की आइ से नहीं देखवा, सब रुटा कर देखा है। इसलिए जो लाओत्से को दिलवाई पड़ा है वह बहुत कम लोगों को दिलवाई पड़ता है।
ओशो