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________________ मूर्छा रोग हैं और जागरण स्वास्थ्य तर्क में जरा भी भेद नहीं है। और तुम्हारी आकांक्षा भी वही है। तुम बिना दांव पर अपने को लगाए पापी का सुख पाना चाहते हो। तुम ज्यादा चालाक हो। पापी तो सीधा-सादा है। उसके गणित में बहुत जटिलता नहीं है। उसे जो चाहिए वह पागल होकर कर रहा है। चाहे किसी भी तरह मिले, येन केन प्रकारेण, कुछ भी हो परिणाम, वह लगा है। चोरी करेगा, डाका डालेगा, सब करेगा। वह कम से कम हिम्मतवर है। और जो चाहता है उसे करने की सीधी कोशिश कर रहा है। तुम बेईमान हो और तुम चालाक हो। तुम जेब भी काटना चाहते हो, और दूसरे की जेब में हाथ भी नहीं डालना चाहते। तुम चाहते हो कि दूसरे की जेब अचानक तुम्हारी जेब में अपने आप उलट जाए। या दूसरा खुद अपनी जेब में हाथ डाले और तुम्हारी जेब में पैसे रख दे। और तुम कर क्या रहे हो इसके लिए? तुम सुबह रोज बैठ कर आधा घंटा राम-राम, राम-राम कर लेते हो; या थोड़े से चने-फुटाने रख लिए हैं, वे तुम भिखारियों को बांट देते हो; या जो दवाइयां तुम्हारे घर में काम नहीं आईं, तुम अस्पताल में दे आते हो। या जो कपड़े अब तुम्हारे योग्य नहीं रहे, वे तुम दान कर देते हो; बंगला देश भेज देते हो। तुम्हारा पुण्य बड़ा दीन है। और भीतर तुम्हारा वही मन छिपा है जो पापी का है। तब तुम चिंता में पड़ते हो। अगर तुमने सच में ही पुण्य किया हो तो पुण्य के करने में ही महासुख बरस जाता है। कहीं बाद में थोड़े ही सुख मिलने वाला है! स्वर्ग कल थोड़े ही मिलने वाला है! न तो स्वर्ग कल है और न नरक कल है। तुम जो करते हो उस कृत्य में ही तो तुम पर दुख या सुख बरस जाता है। कभी चोरी करके देखो। तब तुम पाओगे, कैसी छाती धड़कती है! कैसी चिंता, बेचैनी, परेशानी, घबराहट, भय! सो नहीं सकते, खुद के ही पैरों से डर जाते हो और चौंक जाते हो; खुद की ही आवाज डराती है। वह जो चोरी कर रहा है, तुम उसका भवन ही मत देखो कि उसने बड़ा भवन बना लिया है। तुम उसकी अंतरात्मा भी देखो कि प्रतिपल वह गल रहा है और प्रतिपल घाव बन रहे हैं। और प्रतिपल डरा हुआ है, बेचैन है, परेशान है, कंप रहा है। तुम उसके वस्त्र मत देखो, तुम उसके प्राण देखो। तुम उसके पास धन मत देखो, तुम उसकी भीतर की दशा देखो। तब तुम पाओगे, वह महा दुख में है; नरक उसे मिल रहा है। लेकिन जिसने सच में ही दान दिया है और दान का अर्थ है, किसी लोभ के कारण नहीं। क्योंकि लोभ अगर दान में हो तो वह दान कैसे होगा? तब तो सौदा होगा। और जिन्होंने शास्त्रों में तुम्हें वचन दिया है कि यहां एक पैसा दो और एक करोड़ गुना स्वर्ग में पाओगे, वे बेईमान हैं। और वे तुम्हारा मन जानते हैं। तुम्हारे शोषण का उन्होंने उपाय किया था। तुम इससे कम में दोगे भी नहीं। तुम थोड़ा सोचो भी तो! जुआरी भी इतना नहीं पाता कि एक पैसा लगाए, एक करोड़ गुना पाए। तुम्हारी आकांक्षा बड़ी भयंकर है; एक पैसा देकर एक करोड़ गुना तुम वहां पाना चाहते हो। काशी में और प्रयाग के पंडे तुम्हें शोषण कर रहे हैं इसीलिए। तुम्हारे लोभ का शोषण है। तुम चोर हो। क्योंकि एक पैसा देकर एक करोड़ गुना पाना चोरी की आकांक्षा है। इसलिए तुम्हें दूसरे चोर मिल जाएंगे जो तुमसे ज्यादा कुशल हैं और तुम्हारा शोषण करेंगे। अगर तुम बेईमान नहीं हो तो तुम्हें कोई बेईमान नहीं मिल सकता। अगर तुम चोर नहीं हो तो तुम्हारी चोरी नहीं की जा सकती। अगर तुम लोभी नहीं हो तो तुम्हारा शोषण नहीं किया जा सकता। एक आदमी कुछ दिन पहले मेरे पास आया। और उसने कहा, एक साधु मुझे धोखा दे गया। वह बड़ा नाराज था; साधुओं के बड़े खिलाफ था। क्या धोखा दिया उसने? उसने कहा कि उसने पहले तो पता नहीं क्या किया कि एक नोट के दो नोट बना दिए। और फिर उसने कहा कि तुम्हारे पास जितने नोट हों सब ले आओ; मैं दोहरे कर देता हूं। तो हमने सब, जो भी घर में जेवर-जवाहरात था सब बेच दिया, सबके नोट कर लिए। और वह आदमी सब लेकर नदारद हो गया। वह बड़ा बेईमान था। 175
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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