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________________ संत को पहचानना महा कठिन हैं 149 भी आदमी रोता है; सुख में भी आदमी रोता है । महासुख और आनंद में भी लोगों को रोते हुए पाया गया है। आंसू तो केवल, जब भी तुम्हारे भीतर कोई चीज लबालब हो जाती है, इतनी हो जाती है कि तुम सम्हाल नहीं पाते, तभी हैं। वह बच्चे की पहली पुकार है, जीवन की पुकार है । वह जीवन का पहला कदम है। लेकिन धर्मगुरु ने उसकी भी निंदा कर दी । धर्मगुरु ने कुछ छोड़ा ही नहीं, उसने हर चीज की निंदा कर दी। जन्म से लेकर मृत्यु तक उसने हर चीज को बुरा बता दिया है। और तुम्हें इस बुराई से इतना आक्रांत कर दिया है, यह व्याख्या तुम्हारे मन में भी इतनी गहरी बैठ गई है। और व्याख्या के परिणाम आने शुरू हो जाते हैं। फ्रांस में एक बहुत बड़ा चिकित्सक है जिसने एक अनूठी बात खोजी है। वह पूरी मनुष्यता को जैसे भूल ही गई व्याख्या के कारण। बच्चे पैदा होते हैं; तो हम सोचते हैं कि मां को बड़ी पीड़ा होती है, प्रसव पीड़ा होती है। क्योंकि सारी दुनिया में करीब-करीब, कम से कम सभ्य लोगों में तो पीड़ा होती ही है । और असभ्यों की तो हम फि ही नहीं करते। आदिम जातियों में पीड़ा नहीं होती। बच्चा पैदा होता है; मां काम करती रहती है खेत में, बच्चा पैदा हो जाता है, टोकरी में बच्चे को रख कर वह फिर काम में लग जाती है। कोई प्रसव पीड़ा नहीं होती। लेकिन सारी सभ्य जातियों में होती है । सभ्यता से प्रसव पीड़ा का क्या संबंध होगा ? यह व्याख्या है, जो गहरे बैठ गई। प्रसव पीड़ा है, यह खयाल, यह विचार गहरे बैठ गया । फ्रांस में एक चिकित्सक ने स्त्रियों को सम्मोहित किया प्रसव के पहले और उन्हें यह धारणा दी कि प्रसव बड़ा आनंदपूर्ण है। होश में आ गईं, पर यह धारणा उसने सम्मोहन के द्वारा उनमें गहरे बिठा दी कि प्रसव बड़ा समाधिपूर्ण है; समाधिस्थ आनंद, आखिरी आनंद प्रसव में होगा । होना भी यही चाहिए, क्योंकि बड़ी से बड़ी घटना घट रही है; एक नये जीवन का पदार्पण हो रहा है। यह दुख में कैसे होगा? और मां बड़े से बड़ा कृत्य कर रही है इस जगत में । कोई चित्रकार कितना ही बड़ा चित्र बना ले, कोई मूर्तिकार कितनी ही बड़ी मूर्ति गढ़ ले, कोई संगीतज्ञ कितने ही बड़े संगीत को जन्म दे दे; फिर भी एक साधारण स्त्री के सृजन का मुकाबला नहीं कर सकता। क्योंकि सब सृजन-संगीत का, कि मूर्ति का, कि चित्र का, कि काव्य का - मुर्दा है । एक साधारण सी स्त्री की भी सृजन की क्षमता, बड़े से बड़े चित्रकार, मूर्तिकार, स्रष्टा में नहीं है। एक जीवंत व्यक्ति को जन्म दे रही है। यह तो अहोभाव का क्षण होना चाहिए; यह तो बड़े उत्सव का क्षण होना चाहिए। यह दुख का कैसे हो गया? धर्मगुरु ने इतनी निंदा की है कि यह गहरे बैठ गया। तो इस चिकित्सक ने सम्मोहित किया स्त्रियों को और फिर उनको बच्चे हुए। और वे इतनी आनंदित हुईं। दुख की तो बात ही अलग रही, प्रसव देना एक आनंद की घटना हो गई; ऐसे आनंद की घटना कि उन स्त्रियों ने कहा कि फिर दुबारा ऐसा आनंद नहीं जाना । उसने कोई लाखों प्रयोग करवाए। और अब तो वह सम्मोहित भी नहीं करता। अब तो वह कहता है, देख लो, इतनी स्त्रियों को आनंदपूर्ण प्रसव हो रहा है। उसने चित्र प्रकाशित किए हैं, फिल्में बनाई हैं। उन स्त्रियों के चेहरे पर वही भाव है जो कभी बुद्ध के चेहरे पर दिखाई पड़ता है, या कभी मीरा के चेहरे पर दिखाई पड़ता है। वही नृत्य, वही आनंद। और कुछ भी खास घटना नहीं घट रही है, बच्चे का जन्म हो रहा है। न चीख है, न पुकार है; न रोना है, न आंसू हैं। बिलकुल उलटी स्थिति है। और उसकी बात सारी दुनिया में प्रचारित हो रही है। रूस में तो उन्होंने हर अस्पताल में प्रयोग शुरू कर दिए। क्योंकि स्त्री के लिए अकारण कष्ट दे रहे हो। जो घटना महासुख बन सकती थी उसको हमने दुख बना दिया। जल्दी मत करना। जहां भी तुम दुख पाओ, समझना कि कहीं कुछ भूल हो रही है। क्योंकि गहरे में तो सुख ही होगा; क्योंकि गहरे में परमात्मा है। हर घटना के पीछे छिपा है वही । तो ऊपर-ऊपर से निर्णय मत ले लेना; भीतर
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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