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ताओ उपनिषद भाग ६
और उस फकीर ने कहा कि यह मैं देख रहा हूं कि जिसको मैं पहले तय कर देता हूं कि यह हार गया, वही आखिर में घोषणा होती है कि वह हार गया। मगर मैं घड़ी भर पहले जान लेता हूं। जैसे ही क्रोध आंखों में आना शुरू हुआ, उसका मतलब है आदमी की क्षमता चुक गई। उसकी सीमा आ गई।
उथला है आदमी तो जल्दी क्रोध हो जाता है। जितना गहरा होता है उतना क्रोध मुश्किल हो जाता है। और जब कोई बिलकुल असीम होता है, तब तो क्रोध असंभव हो जाता है। तुम्हारा क्रोध तुम्हारे व्यक्तित्व की गहराई का पता देता है। किसी ने जरा सा कुछ कह दिया, तुम क्रोधित हो गए; उसका मतलब है कि तुम्हारे व्यक्तित्व की गहराई चमड़ी से ज्यादा गहरी नहीं है। तुम्हारा जानवर जल्दी प्रकट हो जाता है; बस जरा ही पीछे छिपा है। यह जो ऊपर तुमने मनुष्यता का आवरण ओढ़ रखा है, यह बहुत गहरा नहीं है; जरा सा कोई आदमी हंस दे, गाली दे दे, और यह आवरण टूट जाता है। क्रोध परीक्षा है।
लाओत्से कहता है, अच्छा लड़ाका जो योद्धा है वह क्रोध नहीं करता।
ताओवादियों की बड़ी प्रसिद्ध कथा है कि एक सम्राट, वर्ष की अंतिम प्रतियोगिता होने वाली थी मुर्गों की लड़ाई की, वह अपने मुर्गे को भी युद्ध में भेजना चाहता था। तो उसने एक बहुत बड़े झेन फकीर को बुलाया। क्योंकि उस झेन फकीर की बड़ी प्रसिद्धि थी कि उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सकता। हराना तो दूर, उसके पास आकर लोग हारने को उत्सुक हो जाते थे। उसके पास हार कर प्रसन्न होकर लौटते थे। उसके साथ हार जाना बड़ी महिमा की बात थी। तो सम्राट ने सोचा कि यह फकीर अगर मुर्गे को तैयार कर दे।
- फकीर को बुलाया। मुर्गा फकीर ले गया। तीन सप्ताह बाद सम्राट ने खबर भेजी, मुर्गा तैयार है? फकीर ने कहा, अभी नहीं। अभी तो दूसरे मुर्गे को देख कर वह सिर खड़ा करके आवाज देता है। सम्राट थोड़ा हैरान हुआ कि यह तो ठीक ही लक्षण है। क्योंकि लड़ना है तो सिर खड़ा करके आवाज न दोगे तो दूसरे मुर्गे को डराओगे कैसे?
खैर, कुछ देर और प्रतीक्षा की। फिर तीन सप्ताह बाद पुछवाया। फकीर ने कहा, अभी भी नहीं। अब पुरानी आदत तो जा चुकी है, लेकिन दूसरा मुर्गा आता है तो तन जाता है, तनाव भर जाता है। और तीन सप्ताह बीत गए। फिर पुछवाया। फकीर ने कहा कि अब थोड़ा-थोड़ा तैयार हो रहा है, लेकिन अभी थोड़ी देर है। अब दूसरा मुर्गा कमरे के भीतर आए तो खड़ा तो रहता है, लेकिन भीतर व्यथित हो जाता है, भीतर एक तनाव की रेखा खिंच जाती है। और तीन सप्ताह बाद फकीर ने कहा, अब मुर्गा बिलकुल तैयार है। अब वह ऐसे खड़ा रहता है जैसे न कोई आया, न कोई गया। और अब कोई फिक्र नहीं है। पर सम्राट ने कहा कि यह मुर्गा जीतेगा कैसे? उस फकीर ने कहा, तुम फिक्र ही मत करो; अब हारने की कोई संभावना ही न रही। दूसरे मुर्गे इसे देखते ही भाग खड़े होंगे। इसको लड़ना नहीं पड़ेगा। इसकी मौजूदगी काफी है।
और यही हुआ। जब प्रतियोगिता में मुर्गा खड़ा किया गया। तो दूसरे मुर्गों ने सिर्फ झांक कर उस मुर्गे को देखा; न तो उसने आवाज दी, क्योंकि वह कमजोरी का लक्षण है, वह भय का लक्षण है। भय को छिपाने के लिए वह जोर से कुकर्दू कू बोलता है। वह डरवाना चाहता है आवाज से, लेकिन खुद डरा हुआ है। न तो उस मुर्गे ने आवाज दी, न उस मुर्गे ने देखा। जैसे कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी गुजर जाता है। ऐसे वह मुर्गा खड़ा ही रहा, जैसे पत्थर की मूर्ति हो। दूसरे मुर्गों ने देखा, उनको कंपकंपी छूट गई। क्योंकि यह तो बड़ा, यह तो मुर्गे जैसा मुर्गा ही नहीं है! इसके पास जाना तो खतरे से खाली नहीं है। वे भाग खड़े हुए। प्रतियोगिता में दूसरे मुर्गे उतर ही न सके।
लाओत्से कहता है, 'अच्छा लड़ाका क्रोध नहीं करता।'
यह कथा मुर्गे की ताओवादियों की कथा है। यह लक्षण है योद्धा का कि वह क्रोध न करे, कि वह उत्तप्त न हो जाए, कि उसका मन ज्वरग्रस्त न हो, कि वह ऐसा शांत बना रहे जैसे बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया हो।
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