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________________ यद्यपि उसकी हड्डियां मुलायम हैं, उसकी नसें कोमल, तो भी उसकी पकड़ मजबूत होती है। यद्यपि वह नर और नारी के मिलन से अनभिज्ञ है, तो भी उसके अंग-अंग पूरे हैं। जिसका अर्थ हुआ कि उसका बल अक्षुण्ण है। दिन भर चीखते रहने पर भी उसकी आवाज भर्राती नहीं है; जिसका अर्थ हुआ कि उसकी स्वाभाविक लयबद्धता पूर्ण है। लयबद्धता को जानना शाश्वत के साथ तथाता में होना है, और शाश्वत को जानना विवेक कहलाता है। लेकिन जीवन में संशोधन करना अशुभ लक्षण कहाता है; और मनोवेगों को मन की राह देना आक्रमण है। क्योंकि चीजें अपने यौवन पर पहुंच कर बुढ़ाती हैं; . वह आक्रामक दावेदारी ताओ के खिलाफ है। और जो ताओ के खिलाफ है वह युवापन में ही नष्ट होता है। लाओत्से के इस सूत्र से आप क्या समझे? संभवतः इसे पुनः-पुनः पढ़ना होगा-ऐसे ही जैसे कोई काव्य-पाठ करता है। फिर आप ओशो के प्रवचन में प्रवेश करें, तो उसे पढ़ कर भी आपको यही अनुभूति होगी कि यह एक बार पढ़ कर रख देने वाली बात नहीं है; उसे फिर जितनी बार पढ़ेंगे उतनी ही बार आप अमृत का आस्वाद लेंगे। इस प्रवचन माला के माध्यम से लाओत्से और ओशो हमारे समकालीन हैं, लेकिन वह क्षण निश्चित ही सौभाग्य का होगा जब हम भी उनके समकालीन हो जाएंगे। ये रहस्यमय काव्य-सूत्र उस आयाम में हमारे पाथेय हैं। स्वामी चैतन्य कीर्ति संपादकः ओशो टाइम्स इंटरनेशनल
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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