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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ पहली बात, चूक जरा सी चूक नहीं है; चूक बड़ी से बड़ी चूक है। क्योंकि पूरे रास्ते पर जिस होश को साधा उसको अंत में खो दिया! साधा ही न होगा ठीक से; रास्ता ऐसे ही गुजर गया। तुम धक्के-मुक्के में आ गए होओगे। किन्हीं और कारणों से आ गए होओगे; होश के कारण नहीं आए हो मंजिल के करीब। बहुत बार ऐसा होता है। अगर तुम किसी गुरु की श्रद्धा में पड़ जाओ तो उसके झोंके में ही पहुंच जाते हो मंजिल के करीब, लेकिन मंजिल के भीतर नहीं घुस सकते। उसकी लहर में तुम चले जाते हो; तुम सोचते हो कि तुम जा रहे हो। उसका पक्का पता तो मंजिल पर चलेगा। क्योंकि गुरु भी द्वार तक ले जा सकता है। गुरु को भी आखिरी मंजिल के द्वार पर विदा दे देनी पड़ती है। क्योंकि उसके भीतर तो अकेले का ही प्रवेश है। वहां दुई को जगह नहीं। ता में दो न समाय, प्रेम गली अति सांकरी। बड़ी संकरी गली है, वहां गुरु भी साथ नहीं हो सकता। द्वार पर उससे भी विदा ले लेनी होती है। तभी तो पता चलता है कि अब तुम भीतर जा सकते कि नहीं। अगर तुम अपने ही होश से आए हो द्वार तक तो ही जा सकोगे, अन्यथा गहरी नींद पकड़ लेगी। गुरु विदा हो गया; तुम्हारा होश भी विदा हो गया। गुरु के पास रहते बहुत बार तुम्हें ऐसा लगने लगेगा कि तुम भी जाग गए हो। क्योंकि जागे आदमी के पास की हवा का कण-कण जागने के लिए आभास देता है। गुरु के दर्पण में अपने चेहरे को देख कर तुम समझोगे कि तुम आत्मवान हो गए हो। लेकिन वह खूबी दर्पण की हो सकती है। असली पता तो आखिरी वक्त ही पता चलेगा जब कि गुरु का दर्पण भी छूट जाएगा। तब तुम्हें अपना चेहरा दिखाई पड़ता है या नहीं? तब महिमा, जो तुमने आज तक जानी थी, वह तुम्हारे साथ रही कि नहीं? ऐसा निरंतर हुआ है कि गुरु की लहर में बहुत से लोग आखिरी किनारे तक पहुंच गए। बस किनारे लगते-लगते चूक गए। छोटी सी चूक नहीं है। वह तो परीक्षा है आखिरी। वह तो ऐसे है जैसे कि रात भर तुमने रामकथा देखी और सुबह पूछने लगे कि सीता राम की कौन? वह कोई छोटी चूक है? रात भर राम की कथा देखी; सारी कथा सीता राम की कौन, इसी के आस-पास चल रही थी, और सुबह पूछने लगे कि सीता राम की कौन? तुम्हारा प्रश्न छोटी सी चूक नहीं है। परीक्षा हो गई। तुम सोए रहे। रामलीला तुम देखे ही नहीं; झपकी खाते रहे। मूल ही चूक गया। और तुम कहते हो, छोटी सी चूक। यह छोटा ही सा तो सवाल पूछ रहे हैं। अगर मंजिल पर पहुंच कर होश न रहा, झपकी लग गई, छोटी चूक नहीं; बड़ी से बड़ी चूक है। परीक्षा में असफल हो गए। जो व्यक्ति होश को साध कर आया है, मंजिल को पास देख कर तो दौड़ने लगेगा, चलेगा नहीं। बैठना तो असंभव। जन्मों-जन्मों से जिसकी प्रतीक्षा थी वह घर आ गया। लाखों-लाखों स्वप्नों में जिसे संजोया था; कितने-कितने रूपों में जिसे चाहा था; कहां-कहां मृग-मरीचिकाओं में भी उसे ही खोजा था; भटके भी थे तो उसी के लिए भटके थे; जहां-जहां भटके थे वह भी इसी के कोई आभास के रंग को देख कर भटक गए थे; इतने-इतने यात्रा-पथों के बाद आज घर करीब आया-तुम थके हुए अनुभव करोगे? तुम सोचोगे कि थोड़ा विश्राम कर लें? तुम्हें याद भी रहेगी विश्राम की? प्रेमी सामने खड़ा हो, तुम दौड़ कर गले लग जाना चाहोगे, मिट जाना चाहोगे, डूब जाना चाहोगे या थोड़ा विश्राम करना चाहोगे? अब तक तुम चलते रहे; अब तुम दौड़ोगे। अब तक तुम थे; अब तो तुम रहोगे ही न, सिर्फ एक चाह मिलन की रह जाएगी। तुम तो मिट जाओगे। तुम तो एक आंधी-तूफान की तरह इस भवन में प्रवेश करोगे। एक क्षण भी अब और देर नहीं हो सकती। बहुत देर वैसे ही हो गई। बहुत भटकाव हो गया। नहीं, असंभव है कि तुम द्वार पर बैठ कर विश्राम करो। संभव हो सकता है तभी जब कि तुम किसी और के धक्के में आ गए होओ। इसीलिए तो बड़े गुरुओं ने कहा है, गुरुओं से सावधान रहना। छोटे गुरु भर कहते हैं कि गुरु को कभी मत छोड़ना। छोटे गुरु यानि जो गुरु हैं ही नहीं। क्योंकि गुरु और छोटा कैसे हो सकता है? गुरु का मतलब ही होता है गुरु, बड़ा, गुरुत्व, भारी। सभी बड़े गुरुओं ने यही कहा है। 412
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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