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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तो ब्रह्मचर्य शोभा देता है। ये सब अहंकार की ही बातें हैं। इन सबको हटाओ। हटाने का मतलब? कुछ हटाने के लिए करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ये सब भ्रांतियां हैं। इनको हटाने के लिए धक्का देने की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ समझने की कोशिश करो। जीवन की धारा अपने आप बह रही है। वृक्ष बड़े हो रहे हैं। फूल लग रहे हैं। आदमी में वासनाएं लग रही हैं। आकाश में तारे चल रहे हैं। सब अपने से हो रहा है। तुम नियंता नहीं हो, निमित्त हो। विराट तुमसे कुछ करा रहा है, तुम करो। क्रोध करा रहा है, क्रोध करो। वासना में डाल रहा है, वासना में गिरो। जिस दिन उठाएगा, उठ आना। न गिरना तुम्हारा है, न उठना तुम्हारा है। न तो गिरने में दीन बनो, और न उठने में अकड़ लेना। इसे समझ लेना। क्योंकि अगर तुमने समझा कि गिरने में दीनता है तो फिर जब तुम उठोगे तो अकड़ से भर जाओगे। तो जो-जो वासना में दीनता समझेगा, ब्रह्मचर्य होकर अकड़ से भर जाएगा। फिर उसकी चाल ही और हो जाएगी। उसके दंभ का कोई ठिकाना नहीं। सभी कुछ उसका है। बुरा-भला सभी उसी को दे दो। 'जो कर्म करता है, वह बिगाड़ देता है।' तुम बैठ रहो अपने भीतर की अंतरगुहा में, तुम सिर्फ साक्षी रहो। 'जो पकड़ता है, उसकी पकड़ से चीज फिसल जाती है।' इसलिए निरंतर यह होता है लेकिन तुम देखते नहीं, खयाल में नहीं लेते–कि जो कामवासना से लड़ता है वह अक्सर कामवासना में फिसल जाता है। जो क्रोध से भरता है और क्रोध से लड़ता है और क्रोध को दबाता है वह महाक्रोधी हो जाता है। नहीं तो दुर्वासा ऋषि कैसे पैदा हों? जो चरित्र की बहुत पकड़ रखता है, कभी उसके हाथ शिथिल हो जाते हैं। आखिर पकड़-पकड़ कर कोई चीज कितनी देर पकड़े रखोगे? कभी तो हाथ को विश्राम देना पड़ेगा। तो संत को भी छुट्टी लेनी पड़ती है संतत्व से। कभी तो उसको भी विश्राम करना पड़ेगा। कब तक लड़ते रहोगे? चौबीस घंटे तो कोई भी नहीं लड़ सकता। बड़े से बड़ा योद्धा भी थकेगा; थकेगा तो विश्राम में जाएगा। तो संत ब्रह्मचर्य से लड़ेगा बारह घंटे, और बारह घंटे कामवासना में चित्त घूमता रहेगा। बारह घंटे भोजन न करेगा, उपवास करेगा, तो बारह घंटे भोजन का चिंतन करेगा, सपने देखेगा। 'जो पकड़ता है, उसकी पकड़ से चीज फिसल जाती है।' लाओत्से कहता है, हम तुम्हें ऐसी कला सिखाते हैं कि तुम्हारी पकड़ से कोई चीज फिसल ही न पाए। और वह कला यह है कि तुम पकड़ना ही मत। फिर कोई चीज फिसलेगी कैसे? तुम परिग्रह मत करना। तो कोई तुमसे छीन कैसे सकेगा? किसी को तुम जबरदस्ती अपने पास रखने की कोशिश मत करना। नहीं तो जिसको तुम जबरदस्ती पास रखना चाहोगे वह दूर चला जाएगा। तुम पकड़ना ही मत अपने पास रखने के लिए। फिर तुमसे कोई दूर न जा सकेगा। संत का जीवन बड़ा अतयं है। वह बुद्धि के गेंडे की चाल नहीं है। संत बहुआयामी है। वह जीवन के गहनतम को देखता है। और देखता है कि बड़ी अजीब घटनाएं घटती हैं। अगर तुमने अपने प्रेम को पकड़ बनाया, तुम्हारा प्रेम नष्ट हो जाएगा। तुमने जिसे प्रेम दिया, उसे अगर तुमने स्वतंत्रता भी दी, दूर जाने की सुविधा भी दी, वह तुमसे कभी दूर न जा सकेगा। उससे हम दूर जाना ही नहीं चाहते जो हमें दूर जाने की सुविधा देता है। दूर तो हम उससे ही जाना चाहते हैं जो हमें पकड़ कर पास रख लेना चाहता है, खूटे में बांध देना चाहता है। क्योंकि हमारी चेतना स्वतंत्रता चाहती है। जो बांधता है उससे हम मुक्त होना चाहते हैं। जो हमें मुक्त ही रखता है उससे मुक्त होने का क्या उपाय है? उसने हमें किसी ऐसी जंजीर से बांध लिया है, ऐसी सूक्ष्म और अदृश्य जंजीर से, जिससे छूटने का कोई उपाय नहीं। उसने हमें स्वतंत्रता से बांध लिया। 388
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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