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________________ स्वादठीन का स्वाद लो जो तुम्हें गाली दे रहा है, वह खींच रहा है। जो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है, वह भी खींच रहा है। तुम जरा सावधान रहना। एक-एक कदम होश से उठाना, फूंक-फूंक कर रखना। तो ही तुम उस अवस्था को उपलब्ध हो पाओगे, जहां निष्क्रियता तुम्हारे जीवन की शैली हो जाती है। तब दूसरा काम करना : अकर्म पर ध्यान देना। और तब तीसरा काम अपने आप हो जाएगा ः स्वादहीन का स्वाद। वही ब्रह्मानंद है। वही महासुख है। वही निर्वाण है। मुक्ति, कैवल्य, जो भी नाम तुम पसंद करो। पर स्वादहीन का स्वाद बड़ा प्यारा शब्द है। वहां कोई स्वाद लेने वाला भी नहीं बचता; वहां कोई स्वाद भी नहीं बचता। फिर भी एक अनुभव घटित होता है; बिना अनुभोक्ता के एक घटना घटती है। वही घटना बड़े से बड़ा चमत्कार है! और जिसके जीवन में वह घट गया, फिर कुछ और घटने को नहीं रह जाता। उसके पार कुछ भी नहीं। उस महान को खोजने में निकले हो तो बड़ी सावधानी चाहिए। तुम्हें दूसरों की तरह चलने की सुविधा नहीं है। तुम्हें दूसरों की तरह व्यवहार करने की सुविधा नहीं है। तुम्हें अनूठा होना पड़ेगा। अगर यह तुम्हें पूरी करनी है अभीप्सा तो गालियों के बदले तुम्हें धन्यवाद देना होगा और जो तुम्हारे लिए कांटे बोएं उनके लिए तुम्हें फूल बोना होगा। कबीर ने कहा है : जो तोको कांटा बुवै, बाको बो तू फूल। तभी! तभी स्वादहीन का स्वाद संभव है। आज इतना ही। 355
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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