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स्वादहीन का स्वाद लो
मचाने से थोड़े ही प्रार्थना होती है। मंदिर में जाकर सिर हजार दफे झुकाने से थोड़े ही प्रार्थना होती है। हाथ जोड़-जोड़ कर आकाश की तरफ आंखें उठाने से थोड़े ही प्रार्थना होती है। ये तो भाव-भंगिमाएं हैं, ऊपर-ऊपर हैं। प्रार्थना तो बड़ी दूसरी बात है। प्रार्थना तो तुम्हारे होने का ढंग है। तब तुम भाव-भंगिमा न भी करो तो भी प्रार्थना चलती है। प्रार्थना तो एक भाव-दशा है।
इसलिए जो भी प्रार्थना को समझ लेता है वह मंदिर नहीं जाता। मंदिर जाने की क्या जरूरत? जो भी ध्यान को समझ लेता है फिर वह ध्यान को करता नहीं। क्योंकि करने का कहां सवाल?
लेकिन अभी जहां तुम खड़े हो, तुम्हारी ही भाषा बोलनी पड़ेगी। तुमसे कहना पड़ेगा, ध्यान करो। जानते हुए भलीभांति कि करने से ध्यान का कोई भी संबंध नहीं है। लेकिन तुम समझोगे ही नहीं, अगर पहले से ही कहा जाए ध्यान न करो। क्योंकि तब भी मुझे करने का ही प्रयोग करना पड़ेगा-चाहे न करना कहूं, चाहे करना कहूं।
निष्क्रियता को साधो का अर्थ यह है : निष्क्रियता को समझो, जीओ; निष्क्रियता को सम्हालो। जीवन जैसा है, उसे समझने की कोशिश से धीरे-धीरे तुम पाओगे कि निष्क्रियता सधती है। क्योंकि जो-जो व्यर्थ है, वह तुम करना बंद कर देते हो। सार्थक को करना थोड़े ही है; सिर्फ व्यर्थ को करना छोड़ देना है। मूर्ति बनानी थोड़े ही है; जो-जो व्यर्थ शिलाखंड जुड़े हैं, उनको काट कर अलग कर देना है।
कर्म की व्यर्थता को पहचानो। भागे चले जा रहे हो। कभी खड़े होकर सोचते भी नहीं कि किसलिए दौड़ रहे हो; किसलिए भाग रहे हो; कहां जाना चाहते हो। फिर अगर कहीं नहीं पहुंचते तो रोते क्यों हो? रोज सुबह उठे, फिर वही चक्कर शुरू कर देते हो। फिर वही दुकान; फिर वही बाजार; फिर वही कृत्य। लेकिन कभी तुमने पूछा कि इनसे तुम कहां जाना चाहते हो? क्या पा लोगे? दुकान अगर ठीक भी चल गई सत्तर साल तक तो क्या पा लोगे?
कर्म को ठीक से जो देखता है, सजग होकर समझता है, अपने एक-एक कृत्य को पहचानता है, एक-एक कृत्य को चारों तरफ से निरीक्षण करता है; देखता है कि इसे करना जरूरी है? सोचता है, विमर्श करता है; होश का प्रकाश कृत्य पर डालता है। इसे करूं? इतनी बार किया, करके क्या पाया? फिर करूंगा तो क्या पाऊंगा? और
अगर इतनी बार करके कुछ न पाया और फिर भी करता रहा हूं, तो इसके करने के पीछे कोई कारण छिपा होगा, जो - मुझे पता नहीं है। क्योंकि मिलने के कारण तो मैं इसे नहीं कर रहा हूं, कुछ मिला तो है नहीं। तो कुछ कारण छिपा होगा अचेतन गर्भ में; कहीं भीतर अंधकार में कोई जड़ें छिपी होंगी, जिनके कारण यह कृत्य हो रहा है।
लोग मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं, सिगरेट पीना छोड़ना है। मैं उनसे कहता हूं, यह फिक्र मत करो; तुम पहले यह तो समझो कि पीते क्यों हो! और जब जुम यह ही नहीं समझ पाए पी-पीकर कि पीते क्यों हो तो तुम छोड़ कैसे सकोगे? छोड़ना क्यों चाहते हो? तो वे कहते हैं, अखबार में पढ़ लिया कि कैंसर इससे होता है।
छोड़ना चाहते हो ऊपर के कारणों से कि पत्नी पीछे पड़ी है कि मत पीयो; कि मुंह से बदबू आती है; कि घर में छोटे बच्चे हैं, पीते देखेंगे तो वे भी पीएंगे। पर ये सब कारण तो ऊपर-ऊपर हैं। तुमने पीना शुरू क्यों किया? तुमने इसलिए तो पीना शुरू नहीं किया था कि इससे कैंसर नहीं होता, इसलिए पीएं। तो कैंसर होने से छोड़ोगे कैसे?
अमरीका के पार्लियामेंट ने एक कानून पास किया कि हर सिगरेट के पैकेट पर लिखा होना चाहिए कि यह स्वास्थ्य के लिए घातक है। लिख दिया गया। अमरीका में बिकने वाली हर सिगरेट के पैकेट पर लिखा हुआ है कि यह स्वास्थ्य के लिए घातक है। कोई बिक्री में फर्क नहीं है। क्योंकि लोग इसे स्वास्थ्य के लिए पी ही नहीं रहे थे। बिक्री वैसी की वैसी है। पहले तो बहुत घबड़ाए थे सिगरेट बनाने वाले निर्माता कि इसको पैकेट पर लिखना बड़े-बड़े अक्षरों में कि यह स्वास्थ्य के लिए घातक है, बुरा परिणाम लाएगा। क्योंकि लोग बार-बार पैकेट निकालेंगे, बार-बार पढ़ेंगे कि स्वास्थ्य के लिए घातक है, तो बिक्री पर असर पड़ेगा।
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