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________________ ताओ की भेंट श्रेयस्कर है अस्तित्व तुम्हें कितना क्षमा किए चला जाता है। तुम बार-बार वही भूल करते हो तो भी तुम्हारा जीवन वापस नहीं ले लिया जाता। तुम बार-बार वही उपद्रव खड़ा करते हो तो भी अस्तित्व तुम्हें माफ किए चला जाता है। इससे अगर तुम इतना भी न सीख पाए कि तुम दूसरों को माफ कर दो तो तुम कुछ भी न सीख पाए। और अगर तुम दूसरों को माफ कर दो तो तुम पाओगे, जिसको भी तुम माफ करते हो उसके जीवन में तुम सुधरने का मार्ग खोल देते हो। जितना तुम दंड देते हो बुरों को उतने ही वे बुरे होते जाते हैं। जितना दंड देते हो उतने निष्णात बुरे हो जाते हैं। जितना दंड देते हो उतना ही मजबूती से बुरे हो जाते हैं। क्योंकि तुम्हारे दंड का बदला भी वे फिर लेना चाहेंगे। जब तुम एक बच्चे को मारते हो, या एक अपराधी को, तो कई बातें घट रही हैं। एक बच्चे ने झूठ बोला, तुमने एक चांटा मारा। बच्चे ने क्रोध किया, तुमने एक छड़ी मारी। और तुम चाहते हो कि बच्चा इससे सीख ले, अब झूठ न बोले। लेकिन अब बच्चा इससे कई बातें सीखेगा। एक बात तो यह कि झूठ बोलने पर दंड मिलता है। लेकिन झूठ बोलने के कई फायदे भी हैं। अगर झूठ सफल हो जाए तो तुम्हें पुरस्कार भी मिलते हैं। झूठ का पता न लगे, पकड़ा न जाए, तो लाभ भी होता है। और ऐसे भी झूठ बोलने का एक मजा है। और वह मजा यह है कि तुम दूसरे को धोखा दे रहे हो; तुम होशियार हो। एक अहंता है झूठ बोलने की कि तुमने बाप को धोखा दे दिया। और बाप बड़े बुद्धिमान बने बैठे हैं और पकड़ न पाए। तो बच्चा यह सीखता है कि अब झूठ तो बोलना, लेकिन इस तरह बोलना कि इतनी आसानी से पकड़े न जाओ। और बच्चा यह भी सीखता है कि बाप कितना ही कहे कि झूठ मत बोलना, लेकिन बाप खुद झूठ बोलता है। बाप खुद ही बेटे को कहता है कि अगर कोई बाहर आए तो कह देना कि वे घर में नहीं हैं, बाहर गए हैं। बाप कहता है, क्रोध मत करो, अपने से छोटों को मत मारो। और बाप खुद बेटे को मारता है। और बेटा सोचता है, यह कैसा हिसाब है? मैं अपने छोटे भाई को न मारूं यह तो मुझे समझाया जाता है, और बाप मुझसे इतना बड़ा है, मैं इतना छोटा हूं, मुझे पीटा जा रहा है। तो बच्चा समझ लेता है कि छोटे पीटे तो जा सकते हैं, लेकिन निरंकुश सत्ता चाहिए। बाप मुझे पीट रहा है; कोई बाप के ऊपर नहीं है, इसलिए पीट रहा है। जिस दिन मेरे ऊपर भी कोई नहीं होगा उस दिन मैं भी पीट सकूँगा। इसलिए पूरी कोशिश यह है कि मैं सबके ऊपर हो जाऊं, मेरे ऊपर कोई | . न रहे। अपराध मारने में नहीं है, न पीटने में, न क्रोध करने में; ऊपर होने में कोई अपराध नहीं है। नीचे हो तो अपराधी हो। यह बच्चा सब सीख रहा है। यही अपराधी सीख रहा है। लाओत्से कहता है, क्षमा कर दो। उन्हें भेंट दो अमृत वचनों की। और उन्हें चरित्र का दान दो। और अगर संभव हो सके तो जैसा स्वभाव तुम्हारे पास है उस स्वभाव की थोड़ी सी झलक और स्वाद दो। अगर तुम्हें यह बात समझ में आ जाए कि बांटना है, देना है, भेंट करनी है, तो तुम अपने को बदलने में लग जाओगे। क्योंकि वही दिया जा सकता है जो तुम्हारे पास है। मेरी अपनी समझ यह है और मैं तुमसे कहता हूं, क्योंकि यह तुम्हारे काम पड़ेगी। बहुत से संन्यासी मुझसे आकर पूछते हैं कि अभी हम तो पूरे नहीं हुए, हम दूसरों को बदलने की क्या कोशिश करें! अभी हमने तो पूरा जाना नहीं, तो हम किसको जनाएं! . उनको मैं कहता हूं कि तुम जाओ और दूसरों को जनाओ, तुम जाओ और दूसरों को बताओ और तुम दूसरों को बदलने की फिक्र करो। क्योंकि उनको बदलने की फिक्र में ही तुम पाओगे कि तुमने अपने को बदलने का और भी तीव्रता से आयोजन शुरू कर दिया है। क्योंकि जब भी तुम किसी दूसरे व्यक्ति को सुधारने में लग जाते हो तो तुम्हें साफ दिखाई पड़ने लगता है कि उसे सुधारने के पहले खुद को सुधार लेना जरूरी है। अगर तुम किसी को सुधारने में नहीं लगते तो खुद को सुधारने की जरूरत का भी एहसास नहीं होता है। 335
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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