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Chapter 56
BEYOND HONOUR AND DISGRACE
He who knows does not speak He who speaks does not know. Fill up its apertures, Close its doors, Dull its edges, Untie its tangles, Soften its lights, Submerge its turmoil, - This is the Mystic Unity. Then love and hatred cannot touch him. Profit and loss cannot reach him. Honour and disgrace cannot affect him. Therefore he is always the honored one of the world.
अध्याय 56 माना और अपमान के पार
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जो जानता है, वह बोलता नहीं है, जो बोलता है, वह जानता नहीं हैं। इसके छिद्रों को भर दो, इसके द्वानों को बंद करो, इसकीधानों को घिस दो, इसकी गंथियों को निर्मथ करो, इसके प्रकाश को धीमा करो, इसके शोरगुल को चुप करो,
-यही रहस्यमयी एकता है। तब प्रेम और घृणा उसे नहीं छू सकती। लाभ और हानि उससे दूर रहती है। मान और अपमान उसे प्रभावित नहीं कर सकते। इसलिए वह सदा संसार से सम्मानित है।