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________________ ठला प्रश्न: आपने कल संप्रदायों को पगडंडी की संज्ञा दी और धर्म को राजपथ की। लेकिन प्रायः सभी संप्रदाय राजपथ से गुजरने वाले ज्ञानियों के पीछे निर्मित हुए। फिर इन परम ज्ञानियों ने इसकी चिंता क्यों नहीं की कि उनके पीछे संप्रदाय न बनें ? और इसके निवारण के लिए आप क्या कर रहे हैं? पहली बात कि ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति चिंता नहीं करते कि पीछे क्या होगा। पीछे की चिंता अज्ञानी करता है; ज्ञानी कोई चिंता ही नहीं करता। चिंता के विसर्जित हो जाने पर ही तो ज्ञान होता है। ज्ञानी सिर्फ जीता है। जो हो, हो। जो न हो, न हो। ज्ञानी का जीवन कोई आयोजना नहीं है। ज्ञानी का जीवन एक सहज प्रवाह है। ज्ञानी तो ऐसे हो रहता है जैसे पौधे हैं, वृक्ष हैं, पहाड़ हैं। न आगा है कुछ, न पीछा है कुछ। न कुछ बुरा है, न कुछ भला है। तो ज्ञानी तो परम निर्दोषता में जीता है; इसलिए चिंता कर भी नहीं सकता। और चिंता करे भी तो भी संप्रदाय बनने से रुक नहीं सकता। बिना चिंता किए हुए भी ज्ञानी इस ढंग से जीए हैं कि संप्रदाय न बने; फिर भी संप्रदाय बना है। बुद्ध ऐसे ही जीए; नहीं कि चिंता की। क्योंकि चिंता ज्ञानी कर ही नहीं सकता। पर इस ढंग से जीए कि संप्रदाय निर्मित न हो। कहा कि कोई भगवान नहीं है, और कहा कि मुझे भी भगवान मत कहना। कहा कि पूजा का कोई उपाय नहीं है, मेरी भी पूजा मत करना। कहा कि प्रतिमा से कोई लाभ न होगा, और तुम मेरी प्रतिमा मत बनाना। लेकिन इससे कोई फर्क न पड़ा। इससे लोगों का प्रेम और भी उपजा। इसका उलटा ही परिणाम हुआ। जितनी प्रतिमा बुद्ध की बनीं उतनी कभी किसी की न बनी थीं। और बुद्ध को जितने लोगों ने भगवान कहा इतना किसी को भी कभी लोगों ने न कहा था। और बुद्ध की शरण जितने लोग गए, किसी की शरण नहीं गए। संप्रदाय बनेगा ही। बनने का कारण ज्ञानी के जीवन और ढंग में नहीं है; बनने का कारण तो पीछे आने वाले अन्य अज्ञानियों के भीतर है। उसे रोकने का कोई उपाय नहीं है। एक ही उपाय है कि कोई अज्ञानी न हो। वह तो कैसे किया जा सकता है? वह तो अज्ञानी की मर्जी पर निर्भर है कि कब वह ज्ञानी होगा। अज्ञानी तो पीछे आएगा ही। और अज्ञानी पूजा भी करेगा। और अज्ञानी मूर्ति भी बनाएगा। इसलिए दूसरे ज्ञानी हैं जो इसको चुपचाप स्वीकार करके जीए। तो कृष्ण ने नहीं कहा कि मेरी मूर्ति बनाना या मत बनाना। कृष्ण ने नहीं कहा कि मेरी पूजा करना कि नहीं करना। जो करोगे वह तुम करोगे ही। कोई कहे कि करो तो कोई फर्क नहीं पड़ता; कोई कहे कि न करो तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि तुम्हारे अज्ञान में जो हो सकता है वही होगा। ज्ञानी के कहने से तुम चलते नहीं हो; चलो तो तुम अज्ञानी न रह जाओ। 113
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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