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________________ सारा जगत ताओ का प्रवाह है उसकी न कोई महत्वाकांक्षा है, न कोई वासना है, न कोई चित्त है, तो हमें ऐसा लगेगा वह बहुत क्षुद्र है, छोटा है। क्योंकि बड़ा तो हमारे लिए महत्वाकांक्षी मालूम होता है। अगर परमात्मा आपके बीच खड़ा हो तो आप उसे देख भी न पाएं, पहचान भी न पाएं। खड़ा ही है। लेकिन देख भी नहीं पाते, पहचान भी नहीं पाते, क्योंकि कठिनाई है। हम पहचानते उसको ही हैं जो अहंकार की घोषणा करता है और दावा करता है। चाहे धन के कारण दावा करे, चाहे ज्ञान के कारण दावा करे, चाहे पद के कारण दावा करे, जब कोई घोषणा करता है कि मैं कुछ हूं तभी हमें बड़ा मालूम पड़ता है। लेकिन परमात्मा की कोई घोषणा न होने से, लाओत्से कहता है, शायद हमें लगे कि वह तो छोटा है, क्षुद्र है। . "फिर सभी चीजों का, उन पर बिना दावा किए, आश्रय होने के कारण, उसे महान भी समझा जा सकता है।' कोई उसे क्षुद्र समझ सकता है, क्योंकि कोई महत्वाकांक्षा का विस्तार नहीं है। और कोई उसे महान भी समझ सकता है, क्योंकि सब उसी का फैलाव है। और फिर भी सबका आश्रय होने पर भी उसकी कोई मालकियत की घोषणा नहीं। 'और चूंकि अंत तक वह महानता का दावा नहीं करता, उसकी महानता शाश्वत है, उसकी महानता सदा है।' दावे खंडित किए जा सकते हैं। असल में, दावा करता ही वही है जिसे भय होता है। नहीं तो दावे का कोई सवाल नहीं है। जिस चीज का भी आप दावा करते हैं, आपने खयाल किया कि आप भयभीत होते हैं, इसीलिए दावा करते हैं। अगर आपको डर है तो आप दावे से डर को छिपाते हैं। मैंने सुना है कि एक बड़े कुलीन परिवार में एक भोज का आयोजन था। और जो गृहपति था उसने एक प्रतिष्ठित महिला को अपने बाएं हाथ पर भोजन के समय बिठाया हुआ था। उस प्रतिष्ठित महिला को थोड़ी पीड़ा हो रही थी। जिस देश में यह भोज था वहां दाएं हाथ पर बिठाना ज्यादा सम्मानजनक समझा जाता था। तो उस महिला को बेचैनी हो रही थी कि उसे बाएं हाथ पर बिठाला गया; उसे ठीक जितनी प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए भोज में उतनी नहीं मिली। लेकिन कहे भी तो कैसे कहे? तो उसने फिर ढंग से बात की। उसने मेजबान को कहा कि इतने लोग आए हैं भोजन के लिए कि अनेक बार आपको भी असुविधा होती होगी, अड़चन होती होगी, किसको कहां बिठाएं! बिठाने में बड़ी दिक्कत होती होगी; इतने लोग हैं और सभी को उनके सम्मानित पद पर बिठाना अड़चन की बात है। उस गृहपति ने कहा-उसका वचन बहुत मूल्यवान है-उसने कहा, दोज हू मैटर दे डोंट माइंड एंड दोज हू माइंड दे डोंट मैटर। जिनको खलता है उनका कोई मूल्य नहीं और जिनका मूल्य है उनको पता ही नहीं चलता कि उन्हें कहां बिठाया गया है। __ आपको कहां बिठाया गया है, यह आपको पता ही तब चलता है जब आपको भीतर भय है, और आप आश्वस्त नहीं हैं अपने प्रति, कि आपकी जो गरिमा है उस पर आपको खुद भी भरोसा नहीं है। तो आप सुरक्षित करना चाहते हैं। जरा सी बात में आप बेचैन हो जाते हैं। कोई जरा सा हंस दे, और आपको तकलीफ शुरू हो जाती है। क्योंकि आपको खुद ही डर लगा हुआ है कि हालत तो ऐसी है कि लोग हंसने चाहिए। आप जानते हैं कि आपकी दशा कैसी है। उसको छिपाए हैं, सम्हाले हुए हैं। एक पोज है आपका व्यक्तित्व; एक मुद्रा है चेष्टित। उसमें सब तरफ से डर है कि कोई तोड़ न दे। __आप अपने ज्ञान को घोषित किए हुए हैं; आप खुद ही भयभीत हैं, आपको कुछ पता है नहीं। इसलिए कोई अगर जरा सा सवाल उठा दे तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। या कोई जरा सा विरोध कर दे, या कोई खंडन कर दे, तो आप इतने ज्यादा जोर से हमला बोल देते हैं उस पर, सुरक्षा के लिए, क्योंकि डर है कि अगर जरा हमला हुआ ज्यादा तो आपकी रक्षा-पंक्ति टूट जाएगी।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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