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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ जानने को शेष है। ईश्वर उस शेष में छिपा हो सकता है। जब तक एक इंच भी जानने को शेष है तब तक कोई भी ईमानदार आदमी ईश्वर के होने से इनकार नहीं कर सकता; वह यह नहीं कह सकता कि नहीं है। जब हम पूरा ही जान लें, जब जानने को कुछ भी न बचे, एक-एक रत्ती-रत्ती छान ली जाए, सब रहस्य मिट जाएं, तभी कोई कह सकता है कि ईश्वर नहीं है। उसके पहले कोई उपाय नहीं है। इसलिए नास्तिकता परम झूठ है। आस्तिकता झूठ है, क्योंकि आस्तिकता भी कह रही है, उस रहस्य को हमने जान लिया। और नास्तिक भी कह रहा है कि उसको हमने जान लिया, वह नहीं है। उनका फर्क हां और नहीं में है, लेकिन उनके दावे में कोई फर्क नहीं है। उनकी मूढ़ता दोनों की बराबर है। और वे दोनों समान बेईमान हैं। एगनास्टिक का अर्थ है-अज्ञेयवादी का, रहस्यवादी का-कि मुझे पता नहीं; हो भी सकता है ईश्वर, न भी हो। मुझे पता नहीं है। इसलिए मैं किसी भी मत में, किसी भी पक्ष में खड़ा नहीं हो सकता, जब तक कि मैं जान ही न लूं, जब तक कि मेरा अनुभव, मेरा ही अनुभव मुझे साफ न कर दे। किसी के और के भरोसे पर, किसी शास्त्र पर, किसी वेद, कुरान, बाइबिल पर, किसी बुद्ध-महावीर पर, किसी ने जाना है उसके आधार पर उसके आधार पर आपके जानने का कोई मूल्य नहीं है। अज्ञेयवादी, एगनास्टिक का अर्थ है कि मुझे पता नहीं है, और जब तक मुझे पता नहीं है तब तक मैं रुकंगा निर्णय लेने से। इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं खोज बंद कर दूंगा। सच तो यह है कि जब तक आप निर्णय नहीं लेते तभी तक खोज कर सकते हैं। जब निर्णय ले लिया, खोज बंद हो गई। जब आपने कह दिया कि है! दरवाजा बंद हो गया। अब खोजना क्या है? जब आपने कह दिया, नहीं है! खोजने को कुछ बचा नहीं, दरवाजा बंद हो गया। सिर्फ रहस्यवादी का दरवाजा खुला है। वह यह कहता है कि मैं दरवाजा खुला रखुंगा, खोजता रहूंगा, जब तक कि अनुभव न बन जाए, जब तक कि मैं अपने से ही न जान लूं कि क्या है, तब तक मैं कोई घोषणा न करूंगा। यह अघोषित खोज, यह रहस्य में टटोलते हुए चलना, चूंकि बहुत दुस्साहस का काम है, इसलिए अधिक लोग इतनी ईमानदारी का कृत्य नहीं करते। यह बहुत दुस्साहस का काम है। क्योंकि इसका मतलब है कि मैं अंधेरे में खड़ा हं। इसका मतलब है, मेरे पैर के नीचे जमीन है या नहीं, मझे पता नहीं। इसका मतलब है कि जिस तरफ मैं जा रहा हूं वह मंजिल हो सकता है हो भी, और न भी हो। इसका यह मतलब है कि रास्ता हो सकता है सिर्फ वर्तलाकार हो, कहीं न ले जाता हो, सिर्फ भटकाता हो। इसका मतलब यह है कि यह भी हो सकता है कि सत्य जैसी कोई भी चीज न हो। बड़ा साहस चाहिए। निर्णय से बचने के लिए, मत, पक्ष, पक्षपात से बचने के लिए बड़ा साहस चाहिए। क्योंकि सुरक्षा नहीं रहेगी फिर। आस्तिक भी सुरक्षित है; नास्तिक भी सुरक्षित है। उन दोनों के पास शास्त्र है, सिद्धांत है। वे दोनों अपने सिद्धांत के सहारे अकड़ कर खड़े हैं। एगनास्टिक डांवाडोल होगा, उसके पैर कंपेंगे; उसके पास कोई सहारा नहीं है, कोई आधार नहीं है, कोई आलंबन नहीं है। असुरक्षा है। गहन अंधकार है। और गहन अंधकार में वह जानता है कि मेरे पास अभी रोशनी नहीं है। और आंख बंद करके झूठी रोशनी मानने की उसकी तैयारी नहीं है। बड़ी साधना है, रहस्य को रहस्य की तरह स्वीकार करना। और ध्यान रहे, यही निष्ठावान व्यक्ति का लक्षण है कि उतने पर ही हां भरेगा जितना जानता है; उससे आगे न हां कहेगा, न न कहेगा। निर्णय को रोकेगा। मन तो कहेगा, निर्णय ले लो। क्योंकि निर्णय लेते ही झंझट मिट जाती है; खोज खत्म हुई; हम विश्राम कर सकते हैं। आश्वस्त हो गए। इसलिए मन तो कहता है, जल्दी निर्णय लो। जितने कमजोर मन होते हैं उतने जल्दी निर्णय ले लेते हैं। इसलिए दुनिया में इतने आस्तिक हैं। इन आस्तिकों को नास्तिक बनाने में जरा भी दिक्कत नहीं है। रूस में क्रांति हुई। बीस करोड़ लोग आस्तिक थे; बीस करोड़ लोग क्रांति के बाद नास्तिक हो गए। रूस इस 414
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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