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________________ प्रार्थना मांग नहीं, धन्यवाद है रहा हो, कि चीन किसी और से लड़ रहा हो, देश हों, कि जातियां हों, कि व्यक्ति हों, कि समाज हों, सारा क्रोध स्वभाव से च्युत होने का लक्षण है। हम भीतर परेशान हैं। और परेशानी के लिए किसी न किसी को जिम्मेवार ठहराना जरूरी है। और जब भी हम किसी को जिम्मेवार ठहरा लेते हैं, राहत मिलती है। एडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि अगर तुम्हारे राष्ट्र का कोई शत्रु न भी हो, तो भी तुम्हें शत्रु की कल्पना राष्ट्र में बनाए रखनी चाहिए, नहीं तो लोग अति बेचैन हो जाते हैं। और किसी भी राष्ट्र को ठीक से जीना हो तो उसके लिए दुश्मन चाहिए। अगर वास्तविक दुश्मन न हों तो झूठे सही, प्रचारित दुश्मन चाहिए, लेकिन दुश्मन चाहिए। जर्मनी जैसा विचारशील मुल्क, जो कि इधर पिछले सौ वर्षों में अगर किसी भी मुल्क के ऊपर विचार की ठीक-ठीक प्रतिष्ठा हो सकती है, तो वह जर्मन जाति थी, उस विचारशील जाति ने इतना अभद्र और मूढ़तापूर्ण व्यवहार किया दो महायुद्धों में कि विचार पर से हमें संदेह हो जाना चाहिए। विचारशील लोग भरोसे के नहीं मालूम होते। हिटलर ने ऐसी बातें लोगों को समझा दी जो कि बुद्धिहीन से बुद्धिहीन आदमी को दिखाई पड़ सकती हैं कि भ्रांत हैं, लेकिन जर्मनी को दिखाई नहीं पड़ीं। उसके कारण थे। पहले महायुद्ध में जर्मनी हारा। कोई भी मानना नहीं चाहता कि हम अपनी कमजोरी से हारे, कि अपनी भूल से हारे। यह तो कोई मानना ही नहीं चाहता, क्योंकि इससे अहंकार को चोट लगती है। जरूर कोई कारण था बाहर। पूरी जर्मन जाति खोज रही थी कि किस कारण हम हारे। और हिटलर ने कारण बता दिया। उसने बताया कि यहूदियों की वजह से हारे।। यहूदियों का कोई भी संबंध नहीं है। यह संबंध इतना ही है जैसे हिटलर कह देता कि लोग साइकिल चलाते हैं इसलिए हम पहले महायुद्ध में हारे, कि लोग चश्मा लगाते हैं इसलिए युद्ध में हारे। इतना ही संबंध यहूदियों का युद्ध से हारने का है। कोई संबंध न था। लेकिन लोग खोजना चाहते थे कोई दुश्मन, जिसको वे दबा सकें। करोड़ों यहूदी हिटलर ने काट डाले। और पूरी जर्मन जाति राजी थी, क्योंकि दुश्मन को मिटाना जरूरी है। कोई तर्क नहीं है, कोई गणित नहीं है, कोई संबंध नहीं है, लेकिन बात जंच गई। क्योंकि हम सदा बाहर कोई कारण खोजना चाहते हैं। कोई भी कारण चाहिए। अब अगर इस मुल्क में परेशानी बढ़ेगी तो ज्यादा देर नहीं है कि आपको युद्ध में घसीटा जाए। अगर आर्थिक संकट बढ़ता जाए, चीजों के दाम बढ़ते जाएं, लोग मुसीबत में पड़ते जाएं, तो जल्दी ही किसी युद्ध में ले जाना जरूरी हो जाएगा। नहीं तो हिंदुस्तान का नेता आपको क्या जवाब दे कि मुसीबत किसलिए है ? मुसीबत हमारे कारण तो कभी है नहीं। अगर पाकिस्तान से या चीन से कोई उपद्रव शुरू हो जाए, हल हो गया, समस्या का समाधान हो गया कि मुसीबत इनके कारण है। फिर पूरा मुल्क शांत है। फिर हम झेल सकते हैं तकलीफ, क्योंकि कारण कहीं मिल गया। इस तरह के झूठे कारण पूरे इतिहास को युद्धों में ले जाते रहे हैं। जैसे ही हम स्वभाव से च्युत होते हैं वैसे ही तत्काल जरूरत हो जाती है कि बाहर हम कोई कारण खोजें। लाओत्से कहता है, और जब संसार ताओ के प्रतिकूल चलता है, तब गांव-गांव में अश्वारोही सेना भर जाती हैं। तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है। इस सदी में निरंतर सोचा जा रहा है कि युद्धों से कैसे बचा जाए। लेकिन युद्धों से बचा नहीं जा सकता-जैसा आदमी है इसको देखते हुए। इसमें कोई निराशा की बात नहीं है। यह सीधा तथ्य है। आदमी जैसा हमारे पास है, इस आदमी को युद्धों की जरूरत है। चाहे परिणाम कुछ भी हो, चाहे पूरी मनुष्यता मिट जाए, लेकिन जैसा आदमी हमारे पास है, यह आदमी बिना युद्धों के नहीं रह सकता। हर दस वर्ष में युद्ध चाहिए। पिछले तीन हजार, साढ़े तीन हजार वर्षों में केवल सात सौ वर्ष ऐसे हैं जब युद्ध न हुआ हो। साढ़े तीन हजार वर्षों में केवल सात सौ वर्ष छोड़ कर निरंतर 375
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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