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________________ वह पूर्ण है और विकासमान भी मैं एक सैनिक के संस्मरण पढ़ रहा था। दूसरे महायुद्ध में उसने अपनी डायरी में लिखा है कि जब शुरू-शुरू में युद्ध के मैदान पर गया, जहां बम गिर रहे हैं, गोलियों की बौछार हो रही है, तो जब बमबार्डमेंट शुरू हो, बम गिरना शुरू हों, तो बड़ा मुश्किल होता है-कहां खड़े हो जाओ? क्योंकि कुछ पता नहीं बम कहां गिरेगा। तो पुराने सैनिकों ने कहा, एक बात खयाल में रखो, जहां बम गिर चुका हो वहीं खड़े हो जाओ; वहां दुबारा नहीं गिरेगा। इसकी संभावना सबसे कम है कि वहां दुबारा गिरे। और कहीं भी गिर सकता है, वहां नहीं गिरेगा जहां गिर चुका है। करीब-करीब आपकी हालत ऐसी है कि जहां आप हैं वहां आप नहीं होंगे। वहां तो आप हैं ही। वहां गिर चुके समझिए। कहीं और होंगे, वहां आप नहीं पाए जाएंगे। निश्चित ही, जो आपसे बात कर रहे हैं उनकी हालत तुतलाहट जैसी हो जाएगी। क्योंकि आप वहां मौजूद नहीं हैं। खींच-खींच कर आपको भी लाना पड़ता है। और जो वे कह रहे हैं, उसे भी खींच-खींच कर लाना पड़ता है। इसमें वाणी तुतला जाती है। ___ इसलिए ऋषियों के वचन बच्चों जैसे मालूम पड़ते हैं। जैसे छोटे बच्चे जो भाषा नहीं जानते और पहली दफे भाषा का प्रयोग करना सीख रहे हैं। या छोटे बच्चे, जो चलना नहीं जानते, पहली दफे चल रहे हैं, डगमगा रहे हैं। छोटे बच्चे भी बेहतर हालत में हैं। उस अज्ञात के जगत में जब किसी व्यक्ति का पहले प्रवेश होता है तो वहां पैर बिलकुल नहीं टिकते; वहां अपनी ही बुद्धि पकड़ में नहीं आती; वहां अपने ही सारे संस्थान से बुद्धि के संबंध छुट जाते हैं। और जिसे मौन में जाना हो उसे शब्द में कैसे कहा जाए? इसलिए वाणी कंपती है; इसलिए शब्द तुतलाहट बन जाते हैं। 'जो सर्वाधिक सीधा है, वह टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई पड़ता है। सर्वश्रेष्ठ कौशल अनाड़ीपन जैसा मालूम होता है। सर्वश्रेष्ठ वाग्मिता तुतलाहट जैसी लगती है। गति से ठंडक दूर होती है, लेकिन अगति से गर्मी परास्त होती है।' यह सूत्र साधना के लिए बड़ा जरूरी और उपयोगी है : 'गति से ठंडक दूर होती है।' जब भी आप ठंड से भरे होते हैं तो आप किसी तरह की गति करते हैं। बुखार में आदमी कंपने लगता है। वह कंपना शरीर का इंतजाम है, ताकि कंपने से गति पैदा हो जाए और शरीर को जो ठंड लग रही है वह कम हो जाए। अगर सर्दी जोर से पड़ी हो तो आपके दांत कटकटाने लगते हैं, हाथ-पैर कंपने लगते हैं। वह शरीर का इंतजाम है। ऐसा शरीर कंपन पैदा करके गर्मी पैदा कर रहा है, ताकि ठंडक से लड़ सके। अगर ठंड जोर से पड़ रही हो, बर्फ गिर रही हो, और आपके दांत न कटकटाएं और हाथ न कंपें, तो आप मर जाएंगे; फिर आप बच नहीं सकते। शरीर कंपन पैदा करके शरीर में खून की गति बढ़ जाती है; खून की गति बढ़ने से गर्मी बढ़ जाती है। आप सुरक्षा का उपाय कर लेते हैं। 'गति से ठंडक दूर होती है।' यह सामान्य जीवन का अनुभव है। 'अगति से गर्मी परास्त होती है।' उसका हमें खयाल नहीं है। वह साधक का अनुभव है। आप जैसी हालत में हैं वहां शरीर ही उत्तप्त नहीं है, आपका मन भी उत्तप्त है। उस मन की उत्तप्तता का नाम ही अशांति है। लोग मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं, मन अशांत है, पीड़ा है, बेचैनी है। वह कुछ नहीं है, वह सिर्फ गर्मी है। अति गति का परिणाम है। आप चौबीस घंटे गति कर रहे हैं मन से। शरीर तो कभी बैठ भी जाता है, मन बैठता ही नहीं। रात आप तो सो भी जाते हैं, लेकिन मन नहीं सोता, चलता ही रहता है। आधे तो आप जगे ही रहते हैं। एक मछली होती है पैसिफिक महासागर में। बड़ी अजीब मछली है, मगर आदमी की बिलकुल प्रतीक है। उस मछली के मस्तिष्क की व्यवस्था बड़ी अनूठी है। और किसी दिन अगर वैज्ञानिक इंतजाम कर सके तो आदमी भी वैसी व्यवस्था चाहेगा। वह व्यवस्था यह है कि मछली रात एक आंख बंद करके सोती है और एक से देखती रहती 359
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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