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________________ वह पूर्ण हैं और विकासमान भी लेकिन मेरे देखे, लाओत्से के इस वचन को ठीक से समझें और फिर जीसस को सोचें, श्रेष्ठतम पूर्णता अपूर्णता के समान है। श्रेष्ठतम पूर्णता दावा नहीं करेगी पूर्ण होने का। यही असाधारण घटना है कि जीसस साधारण मनुष्य की तरह मर गए। उनकी जगह कोई भी होता तो थोड़ा-बहुत कुछ करने की कोशिश करता। कोई मदारी भी होता तो थोड़ा-बहुत कुछ करता। जीसस ने कुछ भी न किया। यह पूर्णता, यह असाधारणता बड़ी साधारण आदमी जैसी थी। "श्रेष्ठतम पूर्णता अपूर्णता के समान है, और इसकी उपयोगिता कभी कम नहीं होती।' निश्चित ही, अगर आप पूर्ण ही हो गए हों और फिर से अपूर्णता को आप जी न सकें, तो आप मर गए। वैसी पूर्णता मृत्यु होगी। पूर्ण पूर्णता मृत्यु होगी। क्योंकि उसके आगे फिर कोई अंकुरण नहीं हो सकता। बुद्ध को ज्ञान हुआ, फिर भी वे चालीस वर्ष जीवित थे। ज्ञान के बाद इन चालीस वर्षों में निरंतर फूल खिलते ही चले गए। यह पूर्णता मुर्दा पूर्णता नहीं है, यह पूर्णता विकसित हो सकती है। यह पूर्णता और पूर्णतर होती चली जाती है। और इसका कोई अंत नहीं है; इसकी उपयोगिता का कोई अंत नहीं है। अगर मेरी बात समझ में आए तो मैं निरंतर ऐसा ही जानता हूं कि बुद्ध जहां भी होंगे अभी भी पूर्णतर होते जा रहे हैं। वह फूल खिलना बंद नहीं हो सकता। बुद्धत्व फूल की तरह कम और खिलने की तरह ज्यादा है। वह खिलना होता ही रहेगा। इस पृथ्वी पर नहीं, कहीं और; इस देह में नहीं, कहीं और; रूप में नहीं, कहीं और। लेकिन वह खिलना तो जारी ही रहेगा। अस्तित्व से उस खिलने की घटना के खोने का कोई उपाय नहीं है। लाओत्से कहता है, 'और इसकी उपयोगिता कभी कम नहीं होती।' बुद्ध अभी भी हो रहे हैं। विकास, उत्क्रांति अस्तित्व का स्वभाव है। लेकिन हम आमतौर से ऐसा ही सोचते हैं कि कोई व्यक्ति पूर्ण हो गया, बात समाप्त हो गई। अब क्या बचा होने को! बढ़ेंड रसेल ने इस पर व्यंग्य किया है। और व्यंग्य करने जैसा है। रसेल ने कहा है कि हिंदू और हिंदुओं का जो मोक्ष है उससे मुझे डर लगता है। क्योंकि वहां सब पूर्ण हो गए हैं; वहां कुछ करने को नहीं बचा। वहां क्या हो रहा होगा? जैनों का मोक्ष, वहां सारे सिद्ध-पुरुष सिद्ध-शिलाओं पर बैठे हुए हैं। वहां कुछ नहीं हो रहा। वहां हवा भी नहीं चल सकती। वहां कोई कंपन भी नहीं हो सकता, क्योंकि जो भी हो सकता था वह हो चुका। रसेल कहता है कि वैसी अवस्था तो बड़ी बोर्डम की हो जाएगी, बड़ी ऊब की हो जाएगी। आत्यंतिक ऊब पैदा होने लगेगी। और यह कोई एक-दो दिन का मामला नहीं है, यह शाश्वत होगा। क्योंकि मोक्ष से लौटने का उपाय नहीं है। मुक्त हो गए, तो बंधन से तो छुटने का उपाय है, मुक्ति से छुटने का कोई उपाय नहीं है। वहां से वापस नहीं आ सकते; वहां से आगे नहीं जा सकते। फांसी लग गई। और वहां कुछ भी नहीं होगा, क्योंकि होता तभी है जब कुछ कम हो। सब पूरा हो गया। रसेल कहता है, ऐसा मोक्ष तो आत्मघात मालूम होगा। अगर ऐसा ही मोक्ष है तो आत्मघात है। तब संसार ज्यादा जीवंत है, और तब नरक भी चुनने जैसा है। लेकिन मोक्ष फिर सिर्फ वे ही लोग चुनेंगे जिनके पास बुद्धि नाममात्र को भी नहीं है। मोक्ष सिर्फ वे ही चुनेंगे जो जड़ हैं, क्योंकि यह पूर्णता जड़ता के समान हो जाएगी। इस पूर्णता में और जड़ता में क्या फर्क होगा? लेकिन लाओत्से कहता है कि पूर्णता, अंतिम पूर्णता अपूर्णता की भांति होती है। काश, रसेल को कोई लाओत्से की खबर दे पाता। मोक्ष में भी विकास जारी रहेगा, क्योंकि विकास होने का अनिवार्य लक्षण है। इसका कोई संबंध संसार से नहीं है। यह आपके होने का ढंग है। इसमें खिलना होता ही रहेगा, और उसका कोई अंत नहीं है। वह शाश्वत है। शाश्वतता कोई एक जड़ता की स्थिति नहीं है, बल्कि विकास का अपरंपार फैलाव है। 353/
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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