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________________ वह पूर्ण हैं और विकासमान भी जाओ; तुम अब फिर उस जगह पहुंच जाओ जब तुम चित्र बनाना बिलकुल भी नहीं जानते थे। और जब चित्रकार बिलकुल भूल जाएगा तब गुरु कहेगा कि अब तुम बनाओ, अब तुमसे कुछ बन सकता है। क्योंकि अब तुम्हारी पूर्णता अपूर्णता जैसी हो गई। अब तुम सरलता से बनाओगे। अब तुम्हारे बनाने में टेक्नीक नहीं होगा। बड़ी कठिनाई है। क्योंकि अक्सर लोग आर्ट और टेक्नीक को एक ही समझ लेते हैं, कला और विधि को एक ही समझ लेते हैं। तो कोई व्यक्ति तूलिका को ठीक से पकड़ना जानता है, रंगों की ठीक समझ है, और वर्षों तक अभ्यास किया है उसने, वह भी चित्र बना सकेगा। कुशल है, तकनीकी दृष्टि से समझदार है; लेकिन उसके चित्र वैसे ही होंगे जैसे किसी तुकबंद की कविता होती है, जो कि ग्रामर से परिचित है, व्याकरण से परिचित है, मात्रा-छंदों से परिचित है और तुकबंदी बना लेता है। उसकी कविता में भूल निकालनी मुश्किल है, लेकिन उसकी कविता में प्राण नहीं होंगे। उसकी कविता बिलकुल ही गणित के हिसाब से सही है, लेकिन पीछे कोई आत्मा नहीं होगी। जैसे एक आदमी की लाश पड़ी हो। शरीर की दृष्टि से बिलकुल पूरी है। एक-एक हड्डी, एक-एक मांस-मज्जा, सब पूरा है। लेकिन फिर भी लाश है; भीतर आत्मा नहीं। टेक्नीक शरीर देता है। टेक्नीक से कोई भी आदमी किसी भी विधा का शरीर निर्मित कर लेता है। लेकिन आत्मा, आत्मा टेक्नीक से पैदा नहीं होती। पर आत्मा को भी प्रकट करना हो तो टेक्नीक तो जानना जरूरी है। कोई सोचता हो कि आप बिना सीखे और पिकासो जैसा चित्र बना सकेंगे तो आप गलती में हैं। पहले सीखना होगा और फिर भूलना होगा; तब आप पिकासो की हालत में आ पाएंगे। आदमी संगीत सीखता है, सितार सीखता है तो वर्षों लग जाते हैं। सारी विधि ठीक से सीख लेगा। अंगुलियां सध जाएंगी, पूरा गणित खयाल में आ जाएगा। लेकिन उससे कोई सितारवादक पैदा नहीं होता। इतना काम तो कंप्यूटर भी कर सकेगा। कंप्यूटर को भी फीड कर दिया जाए, पूरी जानकारी दे दी जाए, तो कंप्यूटर भी सितार बजा देगा-बिलकुल विधिवत, शास्त्रीय ढंग से, जरा भी भूल-चूक नहीं होगी। लेकिन आत्मा पीछे नहीं होगी। कोई व्यक्ति कलाकार तब हो पाता है जब सितार बजाना पूरी तरह सीख लेता है, और फिर इस पूरे तकनीक को भूल जाता है; फिर सरल हो जाता है बच्चे की भांति, जैसे कुछ भी नहीं जानता। फिर उसने जो भी जाना है वह सहज हो गया होता है। उस सहजता से कला का जन्म होता है। इसलिए टेक्नीशियन और आर्टिस्ट में बड़ा फर्क है। हजार टेक्नीशियन होते हैं तो कभी कोई एक आर्टिस्ट होता है। साधारणतः पहचानना भी मुश्किल है। लेकिन फर्क इतना ही होता है कि जो आर्टिस्ट है वह बच्चे की तरह सरल होगा; उसकी पूर्णता अपूर्णता जैसी होगी। टेक्नीशियन बिलकुल परफेक्ट होगा; उसमें अपूर्णता होगी ही नहीं। उससे भूल-चूक हो ही नहीं सकती; रत्ती-रत्ती ठीक होगा। लेकिन आर्टिस्ट, कलाकार से भूल-चूक हो सकती है। वह छोटे बच्चे की भांति होगा। उसकी जो भी जानकारी है वह उसके खून और मांस में मिल कर एक हो गई। वह जानकारी उसके मस्तिष्क में नहीं है, और वह उस जानकारी के माध्यम से नहीं चलता है। कला हो, कि संगीत हो, कि नृत्य हो, या बुद्ध, जीसस के वचन हों, इन सारी दिशाओं में लाओत्से की बात बिलकुल ही सही है-सौ प्रतिशत। बुद्ध के वचन बच्चों जैसे हैं। जीसस के वचन में कोई पांडित्य नहीं है। जीसस के वचन बिलकुल ग्राम्य हैं, जैसे गांव का आदमी बोलता हो; उसमें पंडित की कुशलता बिलकुल नहीं है। न ही शास्त्रों का बोझ है; न कोई तर्क है। जीसस पैरेबल और छोटी-छोटी कहानियां लोगों से कह रहे हैं। छोटी कहानियां, जिनको बच्चे भी समझ लें, और बूढ़ों को भी समझना मुश्किल पड़े। कहानियां, जिनमें बहुत तल हैं, जिनके बहुत अर्थ हो सकते हैं। और जितना गहरा व्यक्ति होगा उतने गहरे अर्थ को पकड़ने में समर्थ हो जाएगा। लेकिन अपने आप में बात बिलकुल सीधी-सादी है। 351
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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