SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 300 अगर हम अपने भीतर भी झांकेंगे तो हमें समझ में आ जाएगा कि जो हमारे भीतर नहीं है, उसी की पाने की हम कोशिश में लगे हैं। महावीर लात मार सके राज्य को, क्योंकि भीतर का राज्य समझ में आ गया। हम नहीं मार सकते हैं राज्य को लात; हम दीन-दरिद्र हैं, भिखमंगे हैं। बुद्ध भिखमंगे होकर खड़े हो सके, क्योंकि भिखमंगापन भीतर न रहा। हम भिखमंगे होकर खड़े नहीं हो सकते, क्योंकि हम जानते हैं हम भिखमंगे हैं, और अगर बाहर भी भिखमंगे हो गए तो सारी बात ही खुल जाएगी, सारा राज ही खुल जाएगा। बुद्ध खड़े हो सकते हैं भिखमंगे होकर, क्योंकि भिखमंगे होने से कुछ राज नहीं खुलता, बल्कि भीतर का सम्राट पूरी तरह प्रकट हो जाता है। लाओत्से कहता है, हम अयोग्य होने से डरते हैं, क्योंकि हम अयोग्य हैं; अकेले होने से डरते हैं, क्योंकि हम अकेले हैं; अनाथ होने से डरते हैं, क्योंकि हम अनाथ हैं। हम जो हैं उसी से हम डरे हुए हैं। अनाथ का अर्थ है हेल्पलेस, असहाय । लेकिन हम स्वीकार करने में स्वीकार करने से बचना चाहते हैं कि हम असहाय हैं, कि अकेले हैं, कि अयोग्य हैं। और ठीक इससे विपरीत अवस्था पैदा करने की कोशिश में हम जीवन को गंवा देते हैं। लाओत्से कहता है, जो तथ्य है उसे स्वीकार कर लें। तथ्य की स्वीकृति मुक्तिदायी है। और इसका यह मतलब नहीं है कि लाओत्से कहता है तुम अयोग्य रह जाओगे, कि अकेले रह जाओगे, कि अनाथ रह जाओगे । लाओत्से यह कहता है कि जिस दिन तुम समझ गए कि तुम अर्कैले हो, फिर तुम अकेले नहीं हो। यह राल है। जिस दिन तुमने स्वीकार कर लिया कि तुम अकेले हो, यह जीवन का तथ्य है, उसी दिन अकेलापन मिट गया। दूसरे को खोजते थे, इसलिए अकेलापन मजबूती से बना रहता था। अब तुमने स्वीकार कर लिया कि तुम अकेले हो, यह जीवन का तथ्य है; दूसरे की खोज छोड़ दी ! धीरे-धीरे तुम भूल ही जाओगे कि तुम अकेले हो। और जिस दिन तुम भूल जाओगे कि तुम अकेले हो उस दिन दूसरा भी मिट जाएगा, तुम भी मिट जाओगे, और वही रह जाएगा जो स्वभाव है, जो ताओ है, जो सबके भीतर छिपा है। वह कभी अकेला नहीं है। हम अकेले इसलिए हैं कि हम लहर की भांति अपने को अलग मान लिए हैं सागर से, और फिर दूसरी लहरों के साथ एक होने की कोशिश कर रहे हैं; खुद भी क्षणभंगुर लहर हैं, दूसरी क्षणभंगुर एक दूसरी लहर के साथ निकटता बना रहे हैं, ताकि अकेलापन मिट जाए। खुद क्षणभंगुर हैं, दूसरे क्षणभंगुर तत्व से मिल कर अकेलापन मिटा रहे हैं। लाओत्से कहता है कि लहर जिस दिन समझ ले कि अकेली है, यह स्वभाव है, दूसरी लहर की चिंता छोड़ दे, उसी दिन उसे नीचे के सागर का बोध शुरू हो जाएगा। दूसरे पर आंख गड़ी रहे तो भीतर आंख नहीं जाती; दूसरे के कारण ही बाहर भटकती है। इसलिए अगर इस अकेलेपन की गूढ़ता को समझें तो पर्वत पर जाना संसार को छोड़ने के लिए नहीं, सिर्फ अकेले होने के लिए सार्थक है। वह कोई त्याग नहीं है, वह सिर्फ अकेले होने के अनुभव में उतरने की व्यवस्था है। वह दूसरे से भागना नहीं है, वह अपने में उतरने के लिए सिर्फ सुविधा जुटाना है, ताकि मैं अपने अकेलेपन को उसकी पूरी नग्नता में जान लूं। जहां कोई दूसरा न होगा, दूसरे का मैं चिंतन न करूंगा, वहां मैं अपने अकेलेपन को उसकी पूरी नग्नता में, पूरी प्रगाढ़ता में जान लूंगा । और जिस दिन कोई उसे उसकी पूरी प्रगाढ़ता में जान लेता है, स्वीकार कर लेता है, उसी दिन अकेला नहीं रह जाता। उसी दिन मूल स्वभाव में उतर जाता है। फिर कोई दूसरा नहीं है, मैं ही हूं। और जो जान लेता है कि अयोग्यता होगी ही, क्योंकि मैं पूर्ण नहीं हूं। लहर कैसे योग्य हो सकती है ? और लहर कुछ भी पा ले, उसके पाने का कोई मूल्य नहीं है। क्योंकि लहर खुद मिट जाने वाली है; उसका पाया हुआ भी उसके साथ मिट जाने वाला है । लहर कुछ भी उपलब्ध कर ले, उसकी उपलब्धि कोई कीमत नहीं रखती। तो आप कितने ही योग्य हो जाएं, आप ही खो जाएंगे। और जहां आधारशिला खो जाने वाली है वहां जो भवन योग्यता का है, उसका क्या मूल्य है? थोड़ी देर के लिए दूसरों की आंखों में चमक सकते हैं। लेकिन दूसरों की आंखों का क्या मूल्य है ? वे
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy