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________________ 289 'না ओ से एक का जन्म हुआ।' ताओ पर्यायवाची है शून्य का । वेदांत जिसे एक ब्रह्म कहता है, ताओ उससे भी पीछे है। जिसे वेदांत एक ब्रह्म कहता है, अद्वैत कहता है, लाओत्से कहता है, वह भी ताओ से पैदा हुआ। ताओ को एक भी कहना उचित नहीं ताओ है शून्य । ताओ है स्वभाव | इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। स्वभाव ही एकमात्र अस्तित्व है; बाकी सब स्वभाव से पैदा होता है। इस स्वभाव को मानने, स्वीकार करने के लिए कोई विश्वास, कोई शास्त्र आवश्यक नहीं । स्वभाव हमारे भीतर उसी भांति मौजूद है जैसा पूरा अस्तित्व । उसे हम यहीं और अभी, इस क्षण भी जान ले सकते हैं। ब्रह्म एक सिद्धांत है, ईश्वर एक धारणा है; लेकिन ताओ एक अनुभव है। जिससे पैदा हुए, जो तुम्हारे भी पहले था, और तुम जिसमें लीन हो जाओगे और जो तुम्हारे बाद भी होगा। ताओ का कोई व्यक्तित्व नहीं है। जैसे सागर में लहरें उठती हैं ऐसा स्वभाव में अस्तित्व की, व्यक्तित्व की लहरें उठती हैं। यह जो ताओ है इसे कोई धार्मिक-अधार्मिक विभाजन में बांटने की जरूरत नहीं है। नास्तिक भी इसे स्वीकार कर लेगा। ओका अर्थ है इसलिए लाओत्से का विचार नास्तिकता और आस्तिकता का अतिक्रमण कर जाता है। ईश्वर को नास्तिक स्वीकार करने को राजी नहीं होगा । ब्रह्म को शायद अस्वीकार करे; आत्मा के संबंध में विवाद उठाए; लेकिन स्वभाव के संबंध में कोई विवाद नहीं है। विज्ञान जिसको नेचर कहेगा, लाओत्से उसी को ताओ कह रहा है। इस ताओ को एक भी कहना उचित नहीं। क्योंकि हम गणना उसी की कर सकते हैं जिसकी कोई सीमा हो, और एक भी हम भी कह सकते हैं जब दो और तीन होने का उपाय हो । ताओ शून्य ही हो सकता है, जिससे सारी संख्याएं पैदा होती हैं और सारी संख्याएं जिसमें लीन हो जाती हैं। ताओ स्वयं कोई संख्या नहीं है। जहां से संख्या शुरू होती है वहीं से संसार शुरू हो जाता है। इस देश ने तो एक पूरे विचार पद्धति को जन्म दिया; जिसका नाम सांख्य है। सांख्य का अर्थ है, अस्तित्व की संख्या की गणना। जहां से सांख्य शुरू होता है वहां से संसार शुरू हो जाता है। जिसकी हम गणना कर सकें, जिसे हम गिन सकें, जिसकी हम कोई धारणा बना सकें, और जिसकी परिभाषा हो सके, वह हमसे छोटा होगा। जिसका हम अध्ययन कर सकें, मनन कर सकें, सोच-विचार कर सकें, वह हमसे छोटा होगा। हमसे जो विराटतर है, जिससे हम पैदा होते हैं, उसकी कोई गणना नहीं हो सकती, उसकी कोई संख्या नहीं हो सकती। उस संबंध में हम जो भी कहेंगे, वह गलत होगा। उस संबंध में हम सिर्फ चुप और मौन ही हो सकते हैं ।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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