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________________ सच्चे संत को पहचानना कठिन हैं 263 'महा अंतरिक्ष के कोने नहीं होते।' आकाश का कोई कोना है ? लेकिन हम अपने घरों में रहने के आदी हैं, और हमारे कमरे का कोना होता है। कोनों के कारण ही हम कह पाते हैं, यह हमारा कमरा है। अगर कोने न हों तो हमारा कमरा खो जाए। लेकिन महा आकाश का कोई कोना नहीं है। इसलिए महा आकाश हमें दिखाई नहीं पड़ता । योग्यता के कोने होते हैं-छोटे-छोटे कमरे । शुद्धता का कोई कोना नहीं होता - महा आकाश! इसलिए शुद्धता हमें दिखाई नहीं पड़ती। जब तक आकाश दीवारों में बंद न हो जाए तब तक हमें उपयोगी नहीं मालूम पड़ता। यह कमरे में हम बैठे हैं। दीवार में तो हम नहीं बैठे हैं, बैठे तो हम आकाश में ही हैं; जो खाली जगह है उसी में बैठे हैं। लाओत्से बार-बार कहता है, मकान का उपयोग दीवार में नहीं, खाली जगह में है। दीवार केवल खाली जगह को घेरती है। लेकिन जब दीवार खाली जगह को घेरती है, हम आश्वस्त हो जाते हैं; हम कहते हैं, भवन निर्मित हो गया। बैठते खाली जगह में ही हैं, बैठते आकाश में ही हैं, लेकिन जब दीवार घेर लेती है तो हम सुरक्षित अनुभव होते हैं। अपना आकाश घेर लिया; लगता है, अब कुछ अपना है। सीमा है तो हमें दिखाई पड़ता है। दीवारें खो जाएं - अभी यहां बैठे-बैठे ऐसा चमत्कार हो कि दीवारें खो जाएं तो आप जहां बैठे हैं वही बैठे रहेंगे, कोई भी फर्क आपको नहीं पड़ेगा। लेकिन आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे, बेचैनी शुरू हो जाएगी। खुले आकाश के नीचे आ गए; अज्ञात के नीचे आ गए। जहां सीमाएं नहीं और कोने नहीं, वहां हमारी पकड़ नहीं बैठती, वहां हम भयभीत हो जाते हैं। आदमी ने मकान सिर्फ इसलिए ही नहीं बना लिया है कि शरीर के लिए सुरक्षा है । वह तो है ही। बड़ी तो मानसिक सुरक्षा है। क्योंकि जो हमें दिखाई पड़ता है उसके हम मालिक मालूम पड़ते हैं। जिसकी हम सीमा बांध लेते हैं उसके हम मालिक मालूम पड़ते हैं। जिसकी कोई सीमा नहीं उसके सामने हम क्षुद्र हो जाते हैं, और वह मालिक होता हुआ मालूम पड़ता है। वहां भय शुरू हो जाता है। 'महा अंतरिक्ष के कोने नहीं होते। महा प्रतिभा प्रौढ़ होने में समय लेती है। ' लोग मुझसे पूछते हैं आकर, ध्यान कितने समय में हो जाएगा ? महीना, दो महीना, तीन महीना ? वे जो भी योग्यताएं जानते हैं, सभी बहुत थोड़ा समय लेती हैं। किसी आदमी को इंजीनियर होना है, कुछ वर्ष में हो जाएगा। किसी को डाक्टर होना है, कुछ वर्ष में हो जाएगा। वे पूछते हैं, ध्यान — समय कितना लगेगा? उपनिषद और वेद कहते हैं, अनंत जन्म लगेंगे। अगर आपसे कहा जाए अनंत जन्म लगेंगे, आप प्रयास ही न करेंगे कि जाने दो। आप प्रयास ही न करेंगे। एक बार बुद्ध एक गांव से गुजर रहे हैं। "रास्ता भटक गया है। संगी-साथी, भिक्षु भूखे-प्यासे हैं। घनी दोपहर हो गई है। जंगल से रास्ता निकलता हुआ मालूम नहीं पड़ता। जिस गांव पहुंचना है, वह कितनी दूर है, कुछ पता नहीं। राह में एक आदमी मिलता है । बुद्ध का शिष्य आनंद उस आदमी से पूछता है, गांव कितनी दूर है? वह आदमी कहता है, बस दो मील, एक कोस । एक कोस निकल जाता है; गांव का फिर भी कोई पता नहीं। फिर एक आदमी मिलता है। आनंद पूछता है, गांव कितनी दूर है ? वह आदमी कहता है, बस एक कोस, दो मील आनंद थोड़ा बेचैन होता है। एक कोस पहले भी था; एक कोस चल चुके, शायद ज्यादा ही चल चुके। लेकिन बुद्ध मुस्कुराते रहते हैं । फिर एक कोस बीत जाता है। लेकिन गांव का कोई पता नहीं। और अब सांझ होने के करीब आने को है । और भूख और प्यास और सब परेशान हैं। और फिर एक आदमी, एक लकड़हारा मिलता है; और उससे पूछते हैं, गांव कितनी दूर है? वह कहता है, बस दो मील, एक कोस । आनंद खड़ा हो जाता है। वह कहता है, यह किस तरह की, यह किस तरह की यात्रा हो रही है? यह एक कोस कितना लंबा है ?
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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