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________________ सच्चे संत को पहचाबबा कठिन है हो गए थे। अगर वे डाकू होते तो हमें पता नहीं चलता, हम कभी न कहते कि योग्य हैं। लेकिन उनका निशाना तब भी अचूक होता, क्योंकि हाथ उनका हिलता नहीं। वह जो डाकू की योग्यता थी, सर्जन की योग्यता बन गई। लेकिन आदमी का क्या संबंध है? आदमी तो वहीं का वहीं खड़ा है। आदमी की योग्यता शुद्ध योग्यता है; बाकी कुशलताएं हैं। तो आप अच्छे सर्जन हो सकते हैं, अच्छे शिक्षक हो सकते हैं, अच्छे राज हो सकते हैं, अच्छे चित्रकार, अच्छे कवि हो सकते हैं, साहित्यकार हो सकते हैं, राजनीतिज्ञ हो सकते हैं; ये सब योग्यताएं नहीं हैं, ये उपयोगिताएं हैं, कुशलताएं हैं, एफीशिएंसीज हैं। शुद्ध योग्यता क्या है? शुद्ध योग्यता शुद्ध मनुष्य होना है। बड़ा कठिन है लेकिन, हम शुद्ध योग्यता को पहचान ही नहीं सकते। अगर एक आदमी ऐसा है जिसमें कोई सामाजिक उपयोगिता नहीं है, आप उसको कहेंगे, बेकार। न सर्जन है, न चित्रकार है, न मूर्तिकार है, न राजनीतिज्ञ है, कुछ भी नहीं है; कवि तक नहीं है। कम से कम तुकबंदी करता; वह भी नहीं कर सकता, खाली बैठा है। बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे हुए। कौन सी योग्यता है उनमें, बताइए? क्या कर सकते हैं? कुछ भी नहीं कर सकते हैं। एक साइकिल का पंक्चर नहीं जोड़ सकते। किस मतलब के हैं? बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे हुए शुद्ध योग्यता में हैं; जहां योग्यता किसी दिशा में नहीं जाती; जहां योग्यता का कोई व्यवहार नहीं है; जहां योग्यता की सिर्फ उपस्थिति है। और जब सभी दिशाओं से योग्यता हट कर भीतर बैठ जाती है तो शुद्धता का जन्म होता है, शुद्ध मनुष्य का जन्म होता है। भीतर की मनुष्यता का कोई भी उपयोग एक अर्थ में अशुद्धि है। क्योंकि उपयोग में अशुद्ध होना ही पड़ेगा; पदार्थ में उतरना पड़ेगा। तो लाओत्से कहता है, 'शुद्ध योग्यता दूषित मालूम पड़ती है।' हम कितनी ही पूजा बुद्ध की करें, भीतर हमें लगता ही है कि यह आदमी कुछ कर नहीं रहा; किसी काम का नहीं है। मेरे घर में ऐसा हुआ कि मुझे धीरे-धीरे घर के लोग ही समझने लगे कि मैं किसी काम का नहीं हूं। ऐसा भी हो जाता कभी कि मैं घर में बैठा हूं और मेरी मां मेरे ही सामने कहती कि यहां कोई दिखाई नहीं पड़ता, सब्जी लेने किसी को भेजना है। मैं सामने बैठा हूं; कहती कि यहां कोई दिखाई नहीं पड़ता, किसी को सब्जी लेने बाजार भेजना है। मैं सुन रहा हूं। मगर उसका कहना ठीक है, वहां सच में कोई नहीं है। सब्जी लेने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है। एक दफा भेज कर वह भूल में पड़ गई, फिर उसने दुबारा मुझे नहीं भेजा। एक बार उसने मुझे भेजा सब्जी लेने। आम का मौसम था और मुझे कहा, आम ले आओ। मैं गया। मैंने दुकानदार से पूछा कि सबसे श्रेष्ठ आम कौन सा है? मेरी शक्ल देख कर ही वह समझ गया और मेरे पूछने के ढंग को देख कर समझ गया कि इस आदमी ने आम कभी खरीदे नहीं हैं। जो रद्दी से रद्दी आम था, उसने कहा कि यह सबसे श्रेष्ठ आम है। और दाम उसने सबसे ज्यादा उसके बताए। तो मुझे लगा कि ठीक ही है, जब दाम इसके सबसे ज्यादा हैं तो सबसे श्रेष्ठ होना ही चाहिए। शक तो मुझे होता था कि वह सड़ा-गला दिखता था, लेकिन मैंने सोचा कि जब मैं खुद उससे पूछ ही लिया हूं और जितने दाम मांगता है उतने देने को राजी हूं तो धोखा देने का कोई कारण नहीं है। लेकर आम मैं घर आ गया। मेरी मां ने तो देख कर आंख बंद कर लीं। पड़ोस में एक बूढ़ी भिखारिन रहती थी, मुझसे कहा कि यह जाकर उसको दे आ। उस बूढ़ी भिखारिन ने मुझसे कहा कि कचराघर पर फेंक दो। बस फिर मेरी बाजार जाने की यात्रा बंद हो गई। कुशलता पहचानी जाती है, दिखाई पड़ती है। उसका उपयोग है। शुद्धता का क्या उपयोग हो सकता है? निरुपयोगी है। उसका आर्थिक जगत में कोई मूल्य नहीं है, उसकी कोई कीमत नहीं है। और ध्यान रहे, जिस चीज में हमें कोई कीमत न दिखाई पड़े उसमें मूल्य भी कैसे दिखाई पड़े? जब कीमत ही नहीं है तो मूल्य भी हमारे लिए नहीं 261]
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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