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________________ सच्चे संत को पहचानना कठिन हैं 259 लोगों को, इस घटना के आधार पर ऐसी दिशा में ले जाना है जहां लोग हृदय को छोड़ कर संलग्न हो जाएं। फिर वह चाहे राष्ट्रभक्ति का नाम हो, चाहे कोई और नाम हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन नजर यह है कि आदमी सहजता को खो दे, असहज हो जाए। और यह जो असहजता है, बड़ी शक्तिशाली मालूम पड़ेगी। अगर लोकमान्य रोने लगते और आंसू बहने लगते, जाते दफ्तर और केसरी को भूलने जैसा था— और उठ कर दौड़ गए होते पत्नी की तरफ, तो हमको लगता अरे! शायद हम उनको लोकमान्य भी कहना बंद कर देते कि आखिर साधारण आदमी ही सिद्ध हुए। भूल रिझाई जापान में एक फकीर हुआ । उसका गुरु मर गया। और जब गुरु मर गया... तो रिंझाई की बड़ी ख्याति थी, इतनी ख्याति थी जितनी गुरु की भी नहीं थी। गुरु की भी ख्याति रिझाई की वजह से थी कि वह रिझाई का गुरु है रिझाई को लोग समझते थे कि वह निर्वाण को उपलब्ध हो गया, परम ज्ञान उसे हो गया, वह बुद्ध हो गया। लाखों लोग इकट्ठे हुए। जो रिझाई के बहुत निकट थे बड़े चिंतित हो गए, क्योंकि रिझाई की आंखों से आंसू बह रहे हैं। वह सीढ़ियों पर बैठा रो रहा है छोटे बच्चे की तरह। तो निकट के लोगों ने कहा, रिंझाई, यह तुम क्या कर रहे हो ? तुम्हारी प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगेगा। क्योंकि लोग यह सोच ही नहीं सकते कि तुम और रोओ ! तुम तो परम ज्ञान को उपलब्ध हो गए हो। और तुमने तो हमें समझाया है कि आत्मा अमर है, तो कैसी मौत! तो तुम किसलिए रो रहे हो ? रिझा ने कहा कि रोने के लिए भी किसलिए का सवाल है! क्या मैं किसी के लिए उत्तरदायी हूं? क्या मैं रोने के लिए भी स्वतंत्र नहीं हूं? निश्चित ही, आत्मा अमर है। मैं आत्मा के लिए रो भी नहीं रहा। मेरे गुरु का शरीर भी इतना प्यारा था, मैं उसके लिए रो रहा हूं। आत्मा के लिए रो कौन रहा है? मैं तो उस शरीर के लिए रो रहा हूं। अब वह कभी भी नहीं होगा, अब वैसा शरीर कभी भी नहीं होगा। और अगर मेरी प्रतिष्ठा को धक्का लगता हो तो लगने दो। क्योंकि ऐसी प्रतिष्ठा का क्या मूल्य जो गुलामी बन जाए, कि मैं रो भी न सकूं। और रिझाई ने कहा कि मैं तो वही करता हूं जो होता है; अपनी तरफ से तो मैं कुछ करता नहीं। अभी रोना हो रहा है; तो मैं इसे रोकूंगा नहीं। यह रुक जाए तो मैं इसे चलाऊंगा नहीं । बड़े अजीब लोग हैं। हम ऐसे अजीब लोग हैं कि जब रोना चल रहा हो तब उसे रोक लें और जब न चल रहा हो तब रोकर भी दिखा दें। मेरे परिवार की एक महिला की मृत्यु हो गई थी। तो उनके अकेले पति बचे। मैं उनके घर था। तो मैं था, उनके पति थे, और तीन-चार महिलाएं और जो उनकी मृत्यु की वजह से कुछ दिन रहने के लिए आ गई थीं। उनको देख कर मैं बड़ा चकित होता । वे गपशप कर रही हैं, बातचीत कर रही हैं, हंस रही हैं, और कोई बैठने आ जाता — एकदम घूंघट काढ़ कर वे एकदम रोना शुरू कर देतीं। इसमें क्षण भर की देर न लगती। वह आदमी गया, उनके घूंघट उठ जाते, आंसू पुंछ जाते, और फिर वह गपशप जहां टूट गई थी वहां से शुरू हो जाती । मैंने उन महिलाओं को कहा कि तुम्हारी कुशलता अदभुत है, तुम धन्य हो । पर हम यह कर रहे हैं। जहां रोना हो वहां हम रोक सकते हैं; जहां न रोना हो वहां हम रो सकते हैं। हम झूठे हैं। लेकिन यह हमारी शक्ति मालूम पड़ती है। संयम को हम शक्ति कहते हैं। और श्रेष्ठ चरित्र सहज होता है, संयमी नहीं। उसकी सहजता ही अगर संयम बन जाए तो बात अलग है। लेकिन सहज उसका मूल आधार है। संयम हमारा मूल आधार है— कंट्रोल, नियंत्रण । तो जो आदमी जितना नियंत्रण कर सकता है, उसको हम उतना बलशाली, शक्तिशाली, श्रेष्ठ मानते हैं। लेकिन वास्तविक लाओत्से के अनुसार, ताओ के अनुसार जो अंतिम जीवन का लक्ष्य है, वह इतनी सहजता है कि जहां न कोई नियंत्रण है, न कोई नियंत्रण करने वाला है; जो हो रहा है उसे होने दिया जा रहा है। क्योंकि उसके विपरीत कोई भी नहीं है। जब तक विपरीत भीतर है तब तक आप बंटे हुए हैं। कुछ हो रहा है और कुछ रोकने वाला .
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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