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________________ अस्तित्व अबस्तित्व से घिरा है ही ताकत एकमात्र ताकत बच रहेगी। आज रूस में संत होना मुश्किल है। असंभव है। और संत भी होना हो तो कोई चोरी से ही हो सकता है, छिप कर ही हो सकता है। किसी को पता भी नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि रूस पूरा का पूरा मुल्क तीसरी कोटि के आदमियों के हाथ में पड़ गया है। जो तृतीय कोटि की बुद्धि का, निकृष्ट बुद्धि का मनुष्य था, जिसको हम शूद्र कहते थे, उस शूद्र के हाथ में ताकत है पूरी। सारी दुनिया में उसके हाथ में ताकत बढ़ रही है। सारी दुनिया में उसके हाथ में ताकत बढ़ रही है। क्योंकि उसको आंकड़े का पता चल गया। उसको अब तक पता नहीं था कि संख्या में ताकत है। अब तक सब तरह की ताकत थी; इस बार पहली दफा दुनिया में संख्या की ताकत, दि पावर ऑफ नंबर्स, पहली दफा आया। वह तो एक स्कूल की क्लास में भी जो प्रथम है वह एक है; जो द्वितीय कोटि के हैं वे दो-चार हैं; जो तृतीय कोटि के हैं वे बड़ी संख्या में हैं, वे चालीस हैं, पचास हैं। वह तो उनको अभी पता नहीं है कि क्लास में भी यह नंबर एक जिसको गोल्ड मेडल मिलता है, यह भी शोषण कर रहा है। क्योंकि वे पचास खड़े होकर कह सकते हैं कि हम पचास हैं। अभी उन तीसरी कोटि के लड़कों को क्लास में पता नहीं है कि संख्या की भी ताकत है। पर उनको भी धीरे-धीरे पता चल रहा है; वे सब जगह उपद्रव कर रहे हैं। ये जो सारी दुनिया के विश्वविद्यालयों में उपद्रव हो रहे हैं, वह तीसरी कोटि की बुद्धि का लड़का कर रहा है। जो गोल्ड मेडल नहीं पा सकता, जो प्रथम नहीं आ सकता, जिसके पास कोई प्रतिभा नहीं है, वह सारे उपद्रव कर रहा है। तो वह दूसरे को प्रथम नहीं आने देगा; तो वह दूसरे को गोल्ड मेडल नहीं मिलने देगा। वह परीक्षा ही नहीं होने देगा। उसकी चेष्टा यह है कि परीक्षा के बिना ही उत्तीर्ण होना चाहिए। और अगर लोकतंत्र जीतेगा तो वह जीतने वाला है। परीक्षा की क्या जरूरत है? जब ज्यादा लोग चाहते हैं कि परीक्षा नहीं होनी चाहिए। तो अल्पमत को बहुमत पर अपना विचार थोपने की कौन सी सामर्थ्य है? वह बहुमत बगावत कर रहा है; वह कह रहा है, बिना परीक्षा के। क्योंकि वह बिना परीक्षा के ही बहुमत उत्तीर्ण हो सकता है। परीक्षा हटनी चाहिए, क्योंकि परीक्षा से कोटियां निर्मित होती हैं। और परीक्षा से ब्राह्मण निर्मित होते हैं। क्योंकि वे जो प्रथम आ जाते हैं वे ब्राह्मण हो जाते हैं; जो छूट जाते हैं वे शूद्र हो जाते हैं। रूस में संत होना असंभव हो गया है। संतत्व एक तरह की अयोग्यता है। अयोग्यता ही नहीं, एक तरह का 'अपराध है। क्या कर रहे हो मौन में बैठ कर? श्रम करो। ध्यान से क्या होगा? ध्यान विलास है। बुर्जुआ धारणा है। श्रम! कुछ पैदा करो! ऐसा खाली आंख बंद करने से क्या होगा? यह आलस्य है। समाधि में लीन भी हो गए तो क्या फायदा, जब तक समाज को फायदा न मिले? तुम्हें अगर आनंद भी मिल गया तो वह आनंद एक स्वप्न है। उसको साकार करो समाज के लिए। फैक्ट्री चलाओ, बड़े मकान बनाओ, बड़े यंत्र खोजो, जिससे लोगों को लाभ हो। तुम्हारे लाभ का कोई सवाल नहीं है। तुम सिर्फ एक आंकड़े हो, तुम सिर्फ एक इकाई हो। और तुम्हारी इकाई रिप्लेस की जा सकती है। तुम नहीं रहोगे, दूसरा यंत्र चलाएगा। लेकिन ये ध्यान और समाधि खतरनाक हैं; इनसे निजता पैदा होती है, इनसे व्यक्ति पैदा होता है। . आप बुद्ध को रिप्लेस नहीं कर सकते; एक इंजीनियर को रिप्लेस कर सकते हैं, एक डाक्टर को रिप्लेस कर सकते हैं। दूसरा डाक्टर आपरेशन करेगा, तीसरा डाक्टर आपरेशन करेगा, चौथा डाक्टर आपरेशन करेगा। लेकिन बुद्ध को आप कैसे स्थानांतरित कर सकते हैं? दूसरे को कैसे बिठा सकते हैं? बुद्ध की जगह खाली होगी तो खाली रहेगी। सदियां बीत जाएंगी; उस जगह बैठना मुश्किल होगा। क्योंकि निजता की गहराई इतनी आसान नहीं है भर देना। तो रूस में संतत्व एक अयोग्यता है, एक अपराध है। और अगर कम्युनिस्टों ने कभी दुनिया का इतिहास लिखा तो वे बुद्ध को, महावीर को, जीसस को अपराधी घोषित करेंगे। क्योंकि इन लोगों ने लोगों की दृष्टि समाज से मोड़ी, लोक-कल्याण से मोड़ी। और इन लोगों ने लोगों को एक गलत बात सिखाई कि आंख बंद करो और अपने में 241
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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