SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तित्व में सब कुछ परिपूरक है अंतिम वचन है, 'मणि-माणिक्य की तरह झनझनाने की बजाय चट्टानों की तरह गड़गड़ाना कहीं अच्छा है।' लाओत्से यह कह रहा है कि श्रेष्ठ होने के दंभ में पड़ने की बजाय जीवन की बुनियाद में निकृष्ट होना कहीं अच्छा है। अकड़ से भरे होने की बजाय विनम्र होना कहीं अच्छा है। क्योंकि अकड़ के कारण आदमी अकेला हो जाता है। और अकेले के कारण उसे जीवन की एकता का अनुभव नहीं होता। अकड़ के छूट जाने पर विनम्र हो जाने के कारण आदमी को एकता का अनुभव होता है। वह इतना विनम्र होता है कि उसे लगता है कि मैं हूं ही क्या, सबका दान हूं। मेरा अपना होना कुछ भी नहीं। सबके होने में मैं भी एक तरंग हूं। इस विनम्रता को ध्यान में रख कर लाओत्से कह रहा है, मणि-माणिक्य की तरह झनझनाने की बजाय चट्टानों की तरह गड़गड़ाना कहीं अच्छा है। मणि-माणिक्य भी चट्टानें ही हैं। आदमियों की वजह से वे मणि-माणिक्य हैं। आदमी नहीं था तो वे भी कंकड़-पत्थर थे। कंकड़-पत्थरों ने उनकी कभी कोई फिक्र नहीं की थी। आदमी के अहंकार के कारण आदमी सब जगह हायरेरकी बनाता है। आदमी बहुत अदभुत है। वह खुद ऊंचा-नीचा नहीं खड़ा होता-वह कहता है, तुम नीचे, मैं ऊंचा-ऐसा ही नहीं, कंकड़-पत्थरों में भी तुम नीचे और यह पत्थर ऊंचा। कोई पत्थर ऊंचा-नीचा नहीं है। अगर आप कोहनूर को रख दें एक चट्टान की बगल में, तो चट्टान आंसू नहीं बहाएगी कि हाय, मैं कुछ भी नहीं! चट्टान फिक्र ही नहीं करेगी कोहनूर की। कोहनूर भी अकड़ से चिल्लाएगा नहीं कि देखो मेरी तरफ, मैं कोहनूर हूं! सम्राटों के सरताज में रहा हूं! न तो कोहनूर कोई अकड़ बताएगा, न चट्टान; न कोई चर्चा उठेगी, न कोई बात उठेगी। आदमी खुद ऊंचा-नीचा होता है और सारे जगत को भी ऊंचा-नीचा कर देता है। वह अपने ही ढंग से सारे जगत में भी विषमता निर्मित करता है। लाओत्से कह रहा है, ऊंचे होने की बजाय नीचे होना कहीं बेहतर है। उसका कारण? उसका कारण कुल इतना है कि जितने तुम ऊंचे हो जाओगे, उतने तुम बंद हो जाओगे अपने भीतर, उतना तुम समझने लगोगे कि मैं अलग-थलग, विशिष्ट, और जीवन से तुम्हारे तंतु टूट जाएंगे। तुम दुख भी पाओगे, लेकिन अकड़ की वजह से तुम दुख को भी न छोड़ोगे। जीवन की बुनियाद में, जहां भेद नहीं है, जहां कोई ऊंचा नहीं है, जहां जीवन सहज और सरल है, वहां होना 'बेहतर है। विनम्रता बेहतर है, क्योंकि विनम्रता द्वार बन सकती है। अहंकार खतरनाक है, क्योंकि वह अवरोध है। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, और फिर जाएं। 223
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy