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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ जाए और इस आयोजन के बाद ही कोई शिखर पर पहुंचे। सत्ता तब हाथ में आए जब व्यक्ति बिलकुल शांत हो। शांति उसकी कसौटी हो। तो लाओत्से कहता है, 'आर्यत्व की शक्ति के बिना राजा और भूमिपति पतित हो जाएंगे।' आर्य का अर्थ है आंतरिक शुद्धता, आर्यत्व, आंतरिक श्रेष्ठता। इस आंतरिक श्रेष्ठता का अहंकार से कोई संबंध नहीं है। इस आंतरिक श्रेष्ठता का एक अनिवार्य तत्व तो विनम्रता है। बुद्ध एक गांव में आए हैं। तो उस गांव के सम्राट ने, जैसे ही खबर मिली, अपने वजीरों को बुलाया और कहा कि तैयारी करो स्वागत की, और मैं राज्य की सीमा पर बुद्ध का स्वागत करूंगा। उसके वजीर ने कहा, आप खुद ही स्वागत करने जाएंगे? बुद्ध तो एक भिखारी हैं। एक सम्राट उनके स्वागत को जाए? सम्राट के मन में भी यह बात तो चलती थी कि एक सम्राट भिखारी का स्वागत करने जाए! लेकिन सम्राट डरता था, क्योंकि और सम्राटों ने स्वागत किया था आस-पास। तो जब वजीर ने यह कहा तो सम्राट ने कहा कि बात तो तुम्हारी ठीक है, एक भिखारी के स्वागत को सम्राट के जाने का क्या प्रयोजन! वजीर हंसने लगा और उसने कहा कि मेरा इस्तीफा स्वीकार कर लें। क्योंकि जो सम्राट बुद्ध जैसे भिखारी के स्वागत को नहीं जाता वह सम्राट होने के । योग्य ही नहीं है। मैंने तो इसीलिए सवाल उठाया था कि देखें, भीतरी अवस्था क्या है। और ध्यान रहे, तुम सम्राट हो, बुद्ध भिखारी हैं; लेकिन उनका भिखारीपन तुमसे आगे है। वे सम्राट थे, सम्राट रह सकते थे; उसे छोड़ कर वे भिखारी हैं। इसलिए उनके भिखारी की जो गरिमा है वह तुम्हारे साम्राज्य और तुम्हारे सिंहासन से बड़ी है। इस देश में बड़े से बड़ा सम्राट भी गरीब से गरीब ब्राह्मण के चरण छुएगा। छूता था। ब्राह्मण के पास कोई सत्ता नहीं थी। ब्राह्मण सदा का फकीर था, दीन-हीन था। उसके पास कुछ भी नहीं था जिसको हम बाह्य ताकत कह सकें। लेकिन बड़े से बड़ा सम्राट उसके चरण छुएगा। वह इस बात की खबर थी कि हम शक्ति से शांति को ज्यादा मूल्य देते हैं। और सम्राट का आर्यत्व, उसकी श्रेष्ठता इसमें है कि वह विनम्र हो। वह इतना विनम्र हो कि उसके पास कोई अहंकार ही न हो। लेकिन अहंकार सिंहासन पर बैठने की चेष्टा करता है। और हम चाहते थे कि सिंहासन पर वह बैठे जो निरहंकारी हो। वह प्रयास असफल हुआ। पर बड़ा महाप्रयास था। और छोटे प्रयास सफल हो जाएं तो भी ठीक नहीं; महाप्रयास असफल भी हो जाएं तो भी ठीक है। चेष्टा की, यह भी क्या कम है! लाओत्से कहता है, 'आर्यत्व की शक्ति के बिना राजा और भूमिपति पतित हो जाएंगे।' वह एक सब का आधार है। उस एक का अनुभव हो गहन तो इतनी घटनाएं घटेंगी-स्वर्ग उजागर होगा; पृथ्वी थिर होगी; देवता में देवत्व होगा; घाटियां भरी होंगी; सभी चीजें वृद्धि और जीवन पाएंगी; राजा और भूमिपति सहज आदृत होंगे। ऐसा न हो तो स्वर्ग हिलने लगेगा; पृथ्वी डोल उठेगी; देवता नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगे; घाटियां खंड-खंड हो जाएंगी; सभी चीजें नष्ट हो जाएंगी; राजा और भूमिपति पतित होंगे; सिंहासन धूल-धूसरित हो जाएंगे; वह जो श्रेष्ठ है, निकृष्ट के साथ एक हो जाएगा। लेकिन एक का अनुभव हो तो सभी चीजें भिन्न होंगी; जीवन ऊर्ध्वगामी होगा। और उस एक से संबंध टूट जाए तो जीवन अधोगामी हो जाता है। पांच मिनट कीर्तन करें और फिर जाएं। 204
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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