SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक साधे सब मधे सारा रूप बदल गया। मंदिर तिरोहित हो गया। वह जहां पत्थर की मूर्ति खड़ी थी वहां चैतन्य का आविर्भाव हो गया। हाथ से तलवार नीचे गिर गई। रामकृष्ण नाच कर-रात भर नाच कर-बेहोश सुबह पाए गए। लेकिन उस दिन के बाद रामकृष्ण दूसरे हो गए। उस दिन के बाद फिर वे पूजा को अक्सर नहीं जाते थे। लोग पूछते भी तो वे कहते, आविर्भाव हो गया; अब सभी जगह वही है। अब जहां मैं बैठा हूं, वहीं पूजा है। अब मंदिर में जाने की कोई जरूरत न रही। मंदिर तो द्वार था; अब द्वार खुल गया। तो अब द्वार पर खड़े रहने की कोई जरूरत न रही। क्या हुआ उस क्षण में जब रामकृष्ण ने तलवार उठा ली? ध्यान रहे, मूर्ति में तो कुछ भी नहीं हो सकता तलवार से। क्या होगा? पत्थर में क्या होगा? लेकिन जब आप तलवार उठा लेते हैं और इतनी त्वरा से भर जाते हैं, इतनी तीव्रता से कि अपना पूरा जीवन दांव पर लगाते हैं, तो आप भीतर एक हो जाएंगे। वहां दूसरा स्वर ही नहीं रह सकता। तीन सेकेंड जहां बचे हों, जीवन जहां समाप्त हो रहा हो, तलवार हाथ में हो, वहां रामकृष्ण में कितनी वासनाएं बची होंगी? सोचा होगा कि कल सुबह क्या करना है? किसको पैसे देने हैं? किससे पैसे लेने हैं? समय मिट गया होगा। कोई पिछला कल नहीं बचा; आगे का कल नहीं बचा। रामकृष्ण उन क्षण में समय के पार हो गए होंगे-कालातीत। मन में क्या वासना बची होगी? जो परमात्मा के लिए जीवन देने को तैयार हो गया, अब कोई वासना नहीं बच सकती। यह आखिरी वासना है, इसके आग फिर कोई वासना नहीं। यह आखिरी पड़ाव है, इसके आगे कोई पड़ाव नहीं। उस क्षण में वे एक हो गए होंगे। उस तलवार के नीचे, जहां मौत निकट थी, जीवन इकट्ठा हो गया होगा। उस इकट्ठपन में एक का आविर्भाव हुआ। मूर्ति खो गई, मंदिर खो गया; एक ही व्याप्त हो गया। ध्यान रहे, घटना भीतर घटती है; बाहर तो उसका सिर्फ अनुभव होता है। इसलिए आप भी मंदिर में बैठे होते तो आपके लिए मंदिर नहीं खो जाता, न मूर्ति खो जाती। आपके लिए सिर्फ अड़चन मालूम पड़ती कि रामकृष्ण को कुछ गड़बड़ हो गई। आपका कहना भी ठीक है। गड़बड़ रामकृष्ण को ही हुई है। कुछ जो हुआ है वह रामकृष्ण . को भीतर हुआ है। लाओत्से कहता है, 'इस एक की उपलब्धि के द्वारा देवता में देवत्व था। इस एक की उपलब्धि के द्वारा घाटियां भरी थीं।' . लाओत्से के प्रतीक हैं। 'घाटी वह कहता है हृदय को। खाली हृदय दुख है; खाली हृदय पीड़ा है। जीवन भर आपका जो कष्ट है, एक शब्द में कहा जा सकता है: खाली हृदय। आपका हृदय एक घाटी है जिसमें कोई भराव नहीं। इसलिए तो प्रेम का इतना पागल आकर्षण है कि कोई भर दे, कोई मुझे पूरा कर दे। खाली हैं, अधूरे हैं। भरने के लिए लालायित हैं: कोई भर दे। लेकिन जिनसे आप भरने की मांग कर रहे हैं वे भी इतने ही खाली हैं। तो धोखा ही होगा। इसलिए सभी प्रेम असफल हो जाते हैं। शुरू में बड़ी आशा बंधती है कि दूसरा मुझे भर देगा। दूसरा भी इसी आशा से आपके पास आया है कि आप उसे भर देंगे। दूसरा समझता है आप भरे हैं; आप समझते हैं दूसरा भरा है। दोनों खाली हैं। कितनी देर चलेगी यह आशा? ये इंद्रधनुष जल्दी ही बिखर जाएंगे, तिरोहित हो जाएंगे। और लगेगा कि दूसरा तो मुझसे भी ज्यादा खाली है, मुझे चूसे जा रहा है। दूसरे को भी यही लगेगा कि तुम धोखेबाज हो। तुमने जो आशा बंधाई थी वह सब ऊपरी थी। भीतर तुम खुद ही भिखमंगे हो। और मैं एक सम्राट के करीब मेरा आना हुआ था; एक सम्राट को देख कर आना हुआ था। सभी प्रेम असफल हो जाते हैं, सिवाय परमात्मा के प्रेम के। इसमें प्रेम की कोई गलती नहीं है। इसमें प्रेम के साथ जो अपेक्षा है वहीं भूल है। खाली जो खुद है वह आपको कैसे भर सकेगा? सिर्फ आश्वासन दे सकता है। लाओत्से कहता है, 'उस एक की उपलब्धि के द्वारा घाटियां भरी थीं।' 197
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy