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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ किर्लियान फोटोग्राफी बड़ा काम कर रही है। वह एक खास तरह की फोटोग्राफी है जिसमें मन के छोटे से कंपन भी पकड़ लिए जाते हैं। उस फोटोग्राफी को हम मन का एक्स-रे कह सकते हैं। वह विकसित हो रही है। जल्दी ही आपको बीमार नहीं होना पड़ेगा; बीमार होने के पहले इलाज शुरू हो जाएगा। लेकिन लाओत्से की बात बड़ी विचारणीय है। लाओत्से कहता है, जब स्वर्ग उजागर हो और उस एक की उपलब्धि हो तो पृथ्वी थिर हो जाती है। क्योंकि पृथ्वी के सारे कंपन, देह के सारे कंपन, पदार्थ के सारे कंपन, पदार्थ में नहीं जन्मते, मन में ही जन्मते हैं। जन्म सदा मन में है, स्रोत सदा मन में है; स्रोत सदा चेतना में है; पदार्थ तक झलक आती है। फिर हम पदार्थ का ही उपाय करने में लग जाते हैं। वहां भूल हो जाती है। तब हम संकेतों का इलाज करने लगते हैं, सिम्पटम्स का, और मूल बीमारी अलग पड़ी रह जाती है। जितना चिकित्सा-शास्त्र आज विकसित है, कभी भी नहीं था। लेकिन जितने आदमी आज मरीज हैं, बीमार हैं, उतने कभी नहीं थे। यह कुछ अनूठी बात है कि हम चिकित्सा विकसित करते हैं और मरीज क्यों विकसित होते हैं! इधर हम कानून को नियोजित करते हैं, और उधर अपराधी बढ़ते चले जाते हैं। जो भी इंतजाम हम करते हैं, उससे विपरीत होता है। कोई मौलिक भूल है। शायद हम ऊपुर से चीजों का इलाज करते हैं और भीतर से उनके मूल स्रोत को नहीं छू पाते। आदमी पीड़ित है। पीड़ा के हजार कारण हमें दिखाई पड़ते हैं। कभी गरीबी है, कभी शरीर की बीमारी है, कभी शिक्षा की कमी है, कभी कुछ, कभी कुछ। हम एक-एक को दूर करने में लग जाते हैं। हजार कारण हैं। आज से दो सौ साल पहले लोग सोचते थे-विचारशील लोग–कि जिस दिन पृथ्वी शिक्षित हो जाएगी उस दिन कोई दुख नहीं होगा। आज पृथ्वी करीब-करीब शिक्षित है। दुख घना हो गया। अगर उनकी कब्र खोली जा सकें, जिन विचारकों ने कहा था कि जब लोग शिक्षित हो जाएंगे तो दुख नहीं होगा, तो वे बहुत चौंकेंगे। वे समझेंगे कि उन्होंने महापाप किया। क्योंकि न मालूम कितने लोगों ने अपना जीवन लगा कर आदमी को शिक्षित करने की कोशिश की है। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, आदिवासियों को शिक्षित करना है। मैं उनसे कहता हूं, पहले तुम शिक्षित लोगों को तो देखो। तुम्हारा दिमाग खराब है! अगर तुम शिक्षित लोगों को इस हालत में पा रहे हो कि इन्होंने कोई आनंद पा लिया है तो जरूर आदिवासियों को शिक्षित करो। यह तो पक्का कर लो पहले। तुम्हारी युनिवर्सिटियों में जाओ-जाओ लखनऊ, जाओ बनारस, जाओ हार्वर्ड, आक्सफोर्ड-वहां देखो कि क्या हो रहा है। लखनऊ युनिवर्सिटी जल रही है। तुम आदिवासी को शिक्षित कर रहे हो। तुम कहां तक पहुंचाओगे इसको? वहीं तक जहां युनिवर्सिटी में आग लगती है। ज्यादा से ज्यादा शिक्षित होकर यह यही करेगा। और ध्यान रखना, जब यह शिक्षित होकर उपद्रव करेगा तो इसके उपद्रव का तुम मुकाबला नहीं कर सकते हो। क्योंकि यह कई दिन की उर्वरा भूमि है। ये कई दिन से शांत बैठे हैं। जब इनकी अशांति प्रकट होगी तो विस्फोट होगा। लेकिन अनेक लोग लगे हैं सेवा में आदिवासियों की। वे समझ रहे हैं, सेवा कर रहे हैं। अज्ञानी सेवा भी करे तो खतरे में ही उतार देता है। अज्ञानियों ने पिछले दो सौ वर्षों में सेवा कर-करके आदमी को शिक्षित कर दिया। अभी डी.एच.लारेंस ने मरने के पहले एक वक्तव्य दिया, और उसने कहा कि मेरा सुझाव है, अगर दुनिया में शांति चाहिए हो तो सौ वर्ष के लिए सब स्कूल, सब कालेज, सब विश्वविद्यालय बिलकुल बंद कर देने चाहिए। उसके सुझाव में बुद्धिमत्ता मालूम पड़ती है, यथार्थ मालूम पड़ता है। कोई मानेगा नहीं उसके सुझाव को। क्योंकि आप पागलपन में इतने ज्यादा जा चुके हैं कि सोच भी नहीं सकते। लेकिन मैं मानता हूं कि उसके सुझाव में बड़ी बुद्धिमत्ता है। सौ वर्ष! ताकि यह सब जो समझदारी बढ़ गई है, वह भूल जाए, और एक दफा आदमी फिर वहां से शुरू करे जहां प्रकृति है। 194
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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