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________________ ताओ उपनिषद भाव ४ मैंने नाव का त्याग कर दिया। आप जानते हैं कि लक्ष्य था उस पार जाना, नाव ले जाती तो.उपयोग कर लेते, नाव नहीं ले गई तो हम तैर कर गए। लेकिन इसका कोई शोरगुल मचाने की जरूरत नहीं है। नाव मूल्यहीन है। जैसे ही कोई व्यक्ति ताओ के अनुसार जीता है, जीवन में जो भी व्यवस्थाएं हैं वे साधन हो जाती हैं। वे साधन ही रहती हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि साधन, भौतिक सुविधा, भौतिक समृद्धि टूट जाएगी। लेकिन उससे पागलपन विदा हो जाएगा। आपके पास जो भी है उसका आप पूरा रस ले पाएंगे, और जो नहीं है उसकी आप चिंता नहीं करेंगे। और जिसके पास जो है अगर वह उसका रस ले तो बढ़ता जाता है। यह समृद्धि का दूसरा ही सूत्र है; अनठा ही सूत्र है। आप जिस चीज में रस लेते हैं वह आपके पास बढ़ती जाएगी। आपका रस बढ़ता जाएगा; रस बढ़ने के साथ चीज बढ़ती जाएगी। घटने का कोई सवाल नहीं है। लेकिन हम तो अभाव में हमारी आंख लगी रहती है। हम देखते रहते हैं, क्या-क्या हमारे पास नहीं है। उसका हम हिसाब लगाए रखते हैं। उससे हम पीड़ित और परेशान होते हैं। और जो हमारे पास है उसे हम भोगने से वंचित रह जाते हैं। अगर ताओ के अनुसार, जो हमारे पास है उसे हम परम धन्यभाग से भोग सकें, तो ईश्वर के प्रति हमारा अनुग्रह बढ़ेगा, घटेगा नहीं। हम सब के मन में कोई अनुग्रह नहीं है ईश्वर के प्रति। हम कुछ भी कहते हों, लेकिन कृतज्ञता का कोई बोध नहीं, कोई ग्रेटीटयूड नहीं है। हो भी कैसे? इतना दुख भोग रहे हैं। तो अगर सचाई से कहें तो उसी की वजह से भोग रहे हैं। तो क्या अनुग्रह का भाव रखें! ईश्वर आपको कहीं मिल जाए तो आप अदालत में मुकदमा चला सकते हैं कि इसी ने हमें जन्मों-जन्मों तक...। क्या जरूरत थी पैदा करने की? मैं एक युवक को जानता हूं जिसने अपने पिता से कहा कि क्या जरूरत थी मुझे पैदा करने की? इसी जीवन के लिए, जिसमें सिवाय दुख के और कुछ भी नहीं है? डी.एच.लारेंस ने लिखा है कि मैं बेटा पैदा नहीं करना चाहूंगा जब तक कि मैं इस जवाब को देने में समर्थ न हो जाऊं-कि अगर वह मुझसे पूछे कि किसलिए मुझे पैदा किया? तो मेरे पास कोई जवाब नहीं है। तो अपने ही बेटे के सामने निरुत्तर होना मैं नहीं चाहता। इसलिए मैं बेटा पैदा नहीं करूंगा। यह तो जवाब मेरे पास होना चाहिए कि अगर बेटा पूछे कि किसलिए मुझे पैदा किया? इसी सब पागलपन, विक्षिप्तता में सम्मिलित होने के लिए? इसी जीवन का दुख झेलने के लिए? अगर आपको परमात्मा मिल जाए तो सच पूछिए, आप क्या पूछिएगा उससे कि किसलिए मुझे पैदा किया? क्या जरूरत थी? क्या बिगाड़ा था तुम्हारा? न होना अच्छा था; इस होने में कुछ भी तो पाया नहीं। इसलिए आप में अनुग्रह का भाव हो नहीं सकता। दुख ही दुख है। और दुख क्यों है? क्योंकि अभाव पर नजर है। जो है, उस पर नजर नहीं है। ताओ का कहना इतना ही है, जो है उसका सहज उपयोग, सरल उपयोग, नैसर्गिक उपयोग। और उससे जितना रस मिल सके, उसका रस का आस्वादन। वह आस्वाद ही प्रभु के प्रति अनुकंपा, वह प्रभु की अनुकंपा का भाव, अनुग्रह का भाव पैदा करेगा। डर बिलकुल मत रखें कि आदिम अवस्था में लौटना पड़ेगा। लौट जाएं तो हर्ज कुछ भी नहीं है। लौटेंगे नहीं। स्वस्थ अवस्था में जरूर लौट जाएंगे। यह जो अवस्था है, अस्वस्थ है। यह सभ्यता अस्वस्थ है। स्वस्थ हो सकती है सभ्यता, अगर हमारे सभ्यता के आधार बुनियादी, नैसर्गिक हो जाएं। अभी सब अप्राकृतिक है। अभी एक बच्चा आपके घर में पैदा हो तो आप उसको अप्राकृतिक होना सिखाना शुरू कर देते हैं। आप उसमें क्या पैदा करते हैं? महत्वाकांक्षा पैदा करते हैं। आप कहते हैं कि देखो, पड़ोसियों के बेटे आगे निकले जा रहे |136]
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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