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शक्ति पन भद्रता की विजय होती है
और एक मजा है। आमने-सामने लड़ने में एक रस था; एटम बम फेंकने में कोई रस नहीं है, सिर्फ मूढ़ता है। दो आदमी जब सामने लड़ लेते हैं तो यह बात नैसर्गिक है, इसमें कुछ बहुत अस्वाभाविक नहीं है। यह न होती तो बहुत अच्छा, लेकिन हो तो कुछ बहुत बुरा नहीं हुआ जा रहा है। लेकिन एक आदमी हिरोशिमा पर जाकर बम पटक देता है। वह किन पर बम पटक रहा है, कोई दिखाई नहीं पड़ता। मित्र पर, शत्रु पर, बच्चों पर, स्त्रियों पर-किस पर! बूढ़ों पर, अंधों पर, किस पर बम गिर रहा है, कोई मतलब नहीं है उसे। उसे मतलब ही नहीं है कि यह बम क्या करेगा; उसके अंतिम परिणाम का भी उसे कोई बोध नहीं है। वह एक बटन दबाता है और हवाई जहाज से बम गिर जाता है।
जिस आदमी ने नागासाकी-हिरोशिमा पर बम गिराया और एक रात में तीन, साढ़े तीन लाख लोगों की हत्या का कारण बना-दुनिया के इतिहास में किसी आदमी ने, एक आदमी ने, एक क्षण में इतनी बड़ी हत्या नहीं की-वह रात बड़े आराम से सोया। और जब सुबह उससे अखबार वाले लोगों ने पूछा कि तुम्हें रात नींद आ सकी? क्योंकि तीन लाख आदमियों की हत्या!
आप एक तीन आदमियों की हत्या का तो विचार करके सोचिए! और तीन आदमियों की हत्या करके आप रात भर सो पाएंगे? बहुत मुश्किल है। बड़े से बड़ा हत्यारा भी नहीं कर सकता यह काम। वह भी रात भर बेचैन रहेगा। लेकिन यह आदमी तीन, साढ़े तीन लाख आदमियों की हत्या करके बेचैन नहीं हुआ। क्या यह आदमी पागल है? यह पागल नहीं है। लेकिन संबंध ही नहीं जुड़ता; जो मरे हैं उनसे इसका कोई संबंध नहीं जुड़ता।
उसने तो कहा, मैंने अपनी ड्यूटी पूरी की। एक विशेष जगह पर हवाई जहाज को ले जाकर मुझे बम गिरा देना था; उससे ज्यादा मुझे कोई आज्ञा नहीं थी। उससे ज्यादा मेरा कोई संबंध नहीं था। काम पूरा करके, जैसा आदमी दिन भर का थका रात सो जाता है, ऐसा मैं सो गया। अपना काम पूरा हो गया।
तीन लाख आदमियों को मारने पर भी कोई बेचैनी नहीं होती-शस्त्र यह सुविधा जुटा देते हैं। जब मैं आपके निकट से नाखून से आपको नोचं, तो आप सामने होते हैं, खून सामने बहता है। जिंदगी सामने बनती और मिटती है।
और मैं अपनी जिंदगी भी दांव पर लगाता हूं, तभी आपकी जिंदगी लेने का विचार कर सकता हूं। यह सीधा आमना-सामना है। यह बात प्राकृतिक है। सभी पशु ऐसा कर रहे हैं। आदमी भी पशु है। ऐसा कर सकता है। न करे तो देवता हो जाता है। लेकिन अस्त्र-शस्त्र उसे शैतान बना देते हैं; वह पशु भी नहीं रह जाता। क्योंकि तब कोई सवाल ही नहीं है। आपको मैं देखता ही नहीं; आपकी आंख का मुझे पता नहीं; आपके रोने का पता नहीं; आप जलेंगे, क्या होगा, कुछ पता नहीं।
लाओत्से अस्त्र-शस्त्र के बहुत विपरीत है। वह कहता है कि उन्हें इस जगह डाल दो जहां लोग खोजें भी तो उन्हें न पा सकें। प्रयोजन इतना ही है कि आदमी जितना नैसर्गिक हो, जितना सहज हो, जितना स्वाभाविक हो। निश्चित ही, जीवन में संघर्ष भी हो सकता है। लेकिन वह भी स्वाभाविक होना चाहिए। और दो आदमी आमने-सामने लड़ते हैं, उसमें एक गरिमा भी है, एक गौरव भी है। जब तक लोग आमने-सामने लड़ते थे तब तक लोगों में एक गरिमा थी, एक शान थी।
अब लड़ाई तो चलती है, लेकिन आमने-सामने कोई भी नहीं है। इधर भी यंत्र है, उधर भी यंत्र है, और पूरी मनुष्यता बीच में है। और किसी को किसी से कोई प्रयोजन नहीं है। कौन किसको मार रहा है, इससे कोई संबंध नहीं है। अपनों को मार रहा है तो भी पता नहीं है। अभी वियतनाम के युद्ध में बहुत से अमरीकी अमरीकियों के द्वारा ही मारे गए। क्योंकि नीचे भूल से, उनका ही अड्डा है, और वे बम फेंक आए। अपने ही आदमी मरे, यह भी सुबह जाकर पता चला। अंधेरे में सारी बात हो गई है।
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