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________________ शक्ति पन भद्रता की विजय होती है हो! इसलिए लाओत्से उठ कर खड़ा नहीं हुआ। लेकिन समझना बहुत मुश्किल है। आप भी गए होते तो आपको भी लगता कि बेचारा कनफ्यूशियस ठीक है, झुक कर नमस्कार कर रहा है, और यह लाओत्से बिलकुल-बिलकुल गंवार मालूम होता है कि बैठा ही हुआ है। खड़े होकर कम से कम, जब कोई घर में अतिथि आए...। लेकिन लाओत्से कहता है, मछली को गहरे पानी में रहने देना चाहिए। लाओत्से कहता है, विनम्रता को दिखाना क्या! है तो है। वे जड़ें उसकी गहरी छिपी रहें। और जो देख सकता है वह उसको देख लेगा। और जो नहीं देख सकता उसको दिखाने से भी कोई अर्थ नहीं है। सिर्फ उसके अहंकार को रस आएगा, और कुछ भी न होगा। _ 'मछली को गहरे पानी में रहने देना चाहिए।' इस सूत्र को और दृष्टियों से भी समझ लेना कीमत का है। जो भी मूल्यवान है आपके भीतर, और जिसको भी आप चाहते हैं कि बचाना है, उसे गहरे में डाल देना। नष्ट करना हो तो बाहर; बचाना हो तो भीतर। वृक्ष ऊपर दिखाई पड़ता है; जड़ें जमीन में छिपी रहती हैं। जड़ें मूल्यवान हैं। वृक्ष जड़ों को दिखाने बाहर ले आए तो मौत हो जाएगी। वह जो भी गहरा और मूल्यवान है उसे भीतर! उसका किसी को पता ही न चले। इसका यह अर्थ नहीं है कि पता नहीं चलेगा; जितना गहरा होगा उतनी जल्दी पता चलेगा। लेकिन आप पता चलाने की, चलवाने की कोशिश मत करना। क्योंकि आपकी कोशिश बताती है कि गहरा नहीं है। लाओत्से से जब उसके शिष्यों ने पीछे पूछा कि आप बैठे रहे! आपने ऐसा क्यों किया? तो लाओत्से ने कहा, मैं सोचता था कि कनफ्यूशियस अगर थोड़ा भी गहरा होगा तो समझ जाएगा, देख लेगा। लेकिन वह इतना ही देख सका कि मैं बैठा हुआ हूं, खड़ा नहीं हुआ। बस उसे आकार दिखाई पड़ा, उसे और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। तो वह सिर्फ आकार में जी रहा है। नियम, व्यवस्था, शासन, औपचारिकता, शिष्टाचार, सभ्यता, संस्कृति, उसमें ही जी रहा है। धर्म का उसे कोई पता नहीं है। अगर उसे पता होता तो उसे दिखाई पड़ जाता कि मैं तो झुका ही हुआ हूं; बैलूं, या खड़ा होऊं, या न होऊं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह झुका हुआ होना मेरा स्वभाव है। एक पहाड़ तो झुक भी सकता है, लेकिन एक गड्ढा कैसे झुकेगा? एक पहाड़ झुक सकता है, लेकिन एक गड्ढा कैसे झुकेगा? लाओत्से गड्ढे की तरह है, अब झुकने का भी क्या उपाय है। जो अकड़ा है, वह झुक भी सकता है; लेकिन जो अकड़ा ही नहीं है, वह कैसे झुकेगा? लेकिन हम भी नहीं पहचान पाते। हमें भी कनफ्यूशियस पहचान में आ जाता। क्योंकि हम भी कनफ्यूशियस की ही परंपरा में खड़े हैं। दुनिया में सौ में से निन्यानबे आदमी कनफ्यूशियस के पीछे खड़े हैं। कभी कोई एकाध 'आदमी समझ पाता है। अन्यथा हम सब उपचार समझते हैं, ढंग समझते हैं, नियम समझते हैं। 'मछली को गहरे पानी में ही रहने देना चाहिए।' धर्म को, ध्यान को, विनम्रता को, सादगी को, सरलता को जितने गहरे रहने दें उतना अच्छा। क्योंकि जितनी होगी गहरी उतना ही उसके द्वारा रूपांतरण आपकी आत्मा का होगा। आपकी विनम्रता दूसरे को दिखाने के लिए नहीं है; आपकी विनम्रता आपको ही बदलने के लिए है। आपकी सादगी कोई बाजार में प्रदर्शन नहीं है; आपकी सादगी आपकी ही आत्मा का रूपांतरण है। वह आपके ही लिए है। सूफी फकीर कहते हैं कि जब सब सो जाएं, सारी दुनिया सो जाए, तब चुपचाप अपनी प्रार्थना कर लेना। मस्जिद में जाकर मत करना; क्योंकि वहां डर है कि शायद तुम प्रार्थना करने नहीं जा रहे, तुम सिर्फ दिखाने जा रहे हो कि तुम भी प्रार्थना करते हो। वह जो भीड़ इकट्ठी होती है, वे जो लोग इकट्ठे होते हैं, उन्हें तुम भी दिखाना चाहते हो कि तुम भी धार्मिक हो। एक रिस्पेक्टबिलिटी धर्म से मिलती है, एक आदर मिलता है कि यह आदमी भला है, आदमी ईमानदार है, यह आदमी सादा है, धार्मिक है, ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहता है। ईश्वर की प्रार्थना, सूफी फकीर 97
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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