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________________ ओत्से का जन्म आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व हुआ, लेकिन वे एक ऐसे विलक्षण प्रज्ञापुरुष हैं कि आज उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि कभी भविष्य में उन्हें समझा जा सकेगा। इन पच्चीस सौ वर्षों में उनकी अंतर्दृष्टि उपलब्ध थी, फिर भी उसे आज तक समझा नहीं गया, उसका उपयोग करना तो बाद की बात है। हां, आज बहुत छोटे स्तर पर विश्व में उनके सूत्रों की चर्चा होती है, लेकिन वह कभी मेन स्ट्रीम नहीं बन पाती, वह मुख्य धारा से बहुत दूर है। आने वाले भविष्य में लाओत्से बहुत जगमगाएंगे। इसके दो कारण हैं। एक कारण यह है, जो कि प्रमुख कारण है, कि आने वाले भविष्य में ओशो को सर्वाधिक पढ़ा-सुना जाएगा-भारत ही नहीं, समूचे विश्व में। निश्चित ही लाओत्से भी सदियों के कुहरे से बाहर आएंगे, क्योंकि ओशो के साहित्य में ताओ का स्थान बहुत अद्वितीय है। दूसरा कारण है स्वयं लाओत्से का नैसर्गिक जीवन-दर्शन। आज वैज्ञानिक प्रगति के प्रवाह में जीवन बहुत प्लास्टिक और जटिल हो गया है-आधुनिक मनुष्य प्रकृति से इतना दूर चला गया है कि उसे शुद्ध प्राणवायु मिलनी मुश्किल हो गयी है, और अगर उपलब्ध है भी तो उसे सांस तक लेने का समय नहीं है। मनुष्य अपने मस्तिष्क में इतना अटका है कि अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। यह स्थिति निश्चित ही जीवन के अनुकूल नहीं है और न रसपूर्ण है। आदमी का सारा कार्य टेक्नालाजी कर रही है और आदमी बुरी तरह उस पर आश्रित हो गया है। प्रकृति के प्रतिकूल जीते-जीते आदमी के जीवन में ऐसी अति विकसित बीमारियां आ गयी हैं जिनका कभी पहले नाम भी नहीं सुना गया था। इन बीमारियों की वजह है आदमी का असंतुलित जीवन, उसका स्वयं में स्थित न होना। लाओत्से का जीवन-दर्शन मनुष्य को पुनः स्वस्थ करता है, पुनः उसको प्रकृति से जोड़ता है। जैसे पानी से बाहर आकर मछली पानी के महत्व को समझती है, ऐसे ही आज का मनुष्य, जो प्रकृति से कट गया है, उसके महत्व को आनेवाले समय में निश्चित ही तीव्रता से महसूस करेगा, वह पुनः प्रकृति की रसधारा से जुड़ेगा, अन्यथा आत्मविनाश सुनिश्चित है।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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