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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ कितने लोग संसार में आए, कितना करके दिखा गए, क्या फल है? और न जिन्होंने करके दिखाया, कौन सी असुविधा हो गई है? करके भी क्या दिखाइएगा? लेकिन चिंता पैदा हो जाती है। चिंता सारे के सारे मस्तिष्क को ग्रसित कर लेती है। फिर एक-एक कदम हिलाना मुश्किल हो जाता है। शतपदी की हालत हो जाती है। आज आदमी करीब-करीब चीनी कहानी के शतपदी की हालत में है। उसे कुछ नहीं सूझता कि क्या करे, क्या न करे? कैसे करे? सब अस्तव्यस्त हो गया है। हो जाएगा। क्योंकि जड़ों से हमने सब छीन लिया है। और उनमें ही सब छिपा है। सब मस्तिष्क में रख लिया है। और लाओत्से के अनुयायी कहते हैं, खोपड़ी से सोचने से बचना! लाओत्से से अगर आप जाकर पूछते कि तुम्हारा मस्तिष्क कहां है? तो वह अपने पेट पर हाथ रखता; वह कहता, यहां पेट में है। बेली इज़ माई माइंड। वह कहता कि कहां खोपड़ी में, इतनी दूर स्रोत से कहां जाना? बहुत दूर निकल गए ये। क्योंकि मां से बच्चा जुड़ा होता है नाभि से। वह पहले अस्तित्व की शुरुआत है। नाभि स्रोत है। और नाभि के निकट अस्तित्व है। खोपड़ी, तो बहुत दूर निकल गए, शाखाओं में चले गए, जड़ों से बहुत दूर चले गए। - आदमी की जड़, आपको पता है, नाभि है। वहीं से, मां से जड़ जुड़ी होती है। उसकी मां की जड़ नाभि से जुड़ी थी। इस सारे संसार में मनुष्यों की जड़ें खोजें तो नाभि में वे फैली हुई मिलेंगी। यों तो प्रत्यक्ष, ऊपर से भी नाभि से जुड़ी होती हैं, लाओत्से कहता है, अप्रत्यक्ष भीतर की जड़ें नाभि से ही फैली होती हैं। इसलिए लाओत्से कहता है, खोपड़ी की फिक्र छोड़ो, नाभि की फिक्र करो। नाभि मजबूत हो, जड़ें गहरी हों प्रकृति में, तो तुम कहीं पहुंचे या न पहुंचे, इससे फर्क नहीं पड़ता। पहुंचे तो, न पहुंचे तो, हर हालत में आनंद है। और अगर तुम मस्तिष्क से जीए, पहुंचे तो, न पहुंचे तो, हर हालत में दुख है। इसलिए वह कहता है, 'एक अकेला मैं भिन्न हूं अन्यों से; क्योंकि देता हूं मूल्य उस पोषण को, जो मिलता है सीधा माता प्रकृति से।' आज इतना ही। फिर हम कल बात करेंगे। बैठें पांच मिनट, कीर्तन करें।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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