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मार्ग है बोधपूर्वक निमर्ग के अनुकूल जीना
हरिदास मुसलमान हो गया; हरिदास गांधी से वह हो गया अब्दुल्ला गांधी। गांधी को बड़ा सदमा पहुंचा। और उन्होंने कहा अपने मित्रों को कि मुझे बहुत दुख हुआ। जब हरिदास को पता लगा तो उसने कहा, इसमें दुख की क्या बात है? हिंदू-मुसलमान सब एक हैं! - यह आप देखते हैं? यह बाप ने ही धक्का दे दिया अनजाने। और हरिदास ने कहा, जब दोनों एक हैं, तो फिर क्या दुख की बात है? हिंदू हुए कि मुसलमान, अल्ला-ईश्वर तेरे नाम, सब बराबर, तो हरिदास गांधी कि अब्दुल्ला गांधी, इसमें पीड़ा क्या है?
मगर पीड़ा गांधी को हुई।
गांधी स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन अपने बेटों पर बहुत सख्त थे, और सब तरह की परतंत्रता बना रखी थी। तो जो-जो चीजें गांधी ने रोकी थीं, वह-वह हरिदास ने की। मांस खाया, शराब पी, वह-वह किया। क्योंकि अगर स्वतंत्रता है तो फिर इसका मतलब क्या होता है स्वतंत्रता का? यह मत करो, यह मत करो, यह मत करो-और स्वतंत्रता है?
तो यह तो बात वैसी ही हो गई, जैसे हेनरी फोर्ड कहा करता था। हेनरी फोर्ड के पास पहले काले रंग की ही गाड़ियां थीं, कारें थीं। और कोई नहीं थीं। पर वह अपने ग्राहकों से कहता था, यू कैन चूज एनी कलर, प्रोवाइडेड इट इज़ ब्लैक। कोई भी रंग चुनो, काला होना चाहिए बस।
क्या मतलब हुआ? स्वतंत्रता है पूरी और सब तरह की परतंत्रता नियम की बांध दी–इतने बजे उठो, और इतने बजे सोओ, और इतने वक्त प्रार्थना करो, और इतने वक्त...। और यह खाओ और यह मत पीयो। सब तरफ से जाल कस दिया, और स्वतंत्रता है पूरी! तो हरिदास ने, जो-जो गांधी ने रोका था, वह-वह किया।
अगर कहीं कोई अदालत है, तो उसमें हरिदास अकेला नहीं फंसेगा। कैसे अकेला फंसेगा? क्योंकि उसमें जिम्मेवार गांधी भी हैं, बाप भी है।
ध्यान रखना, अगर बेटा आपका फंसा, तो आप बच न सकोगे। इतना ही कर लो कि बेटा ही अकेला फंसे, तुम बच जाओ, तो भी बहुत है। हटा लो हाथ अपने दूर और बेटे को कह दो, जो तुझे लगे, जो तुझे ठीक लगे! अगर तुझे दुख भोगना ही ठीक लगता है, तो ठीक है, दुख भोग! अगर तुझे पीड़ा ही उठाना तेरा चुनाव है, तो तुझे स्वतंत्रता है, तू पीड़ा ही उठा! हमें पीड़ा होगी तुझे पीड़ा में देख कर, लेकिन वह हमारी तकलीफ है। उससे तुझे क्या लेना-देना है! वह हमारा मोह है, उसका फल हम भोगेंगे; उससे तेरा कोई संबंध नहीं है। - अगर मुझे दुख होता है कि मेरा बेटा शराब पीता है, तो यह मेरा मोह है कि मैं उसे मेरा बेटा मानता हूं, इसलिए दुख पाता हूं। इसमें उसका क्या कसूर है? मेरा बेटा जेल चला जाता है तो मुझे दुख होता है; क्योंकि मेरे बेटे के जेल जाने से मेरे अहंकार को चोट लगती है। लेकिन यह मेरा कसूर है, इसमें उसका क्या कसूर है? उससे कह दें कि हम दुखी होंगे, हो लेंगे। वह हमारी भूल है, वह हमारा मोह है; लेकिन तू स्वतंत्र है। .
और आप अपने को बदलने में लगें। जिस दिन आप बदलेंगे, उस दिन आपका बेटा ही नहीं, दूसरों के बेटे भी आपके पास आकर बदल सकते हैं।
बहुत से प्रश्न और हैं। फिर दोबारा जब बैठक होगी, तब उन्हें ले लेंगे। अब कीर्तन करें। आज इतना ही।
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