________________
ताओ उपनिषद भाग ३
लाओत्से आगे जाने को कह रहा है। वह कह रहा है, होशपूर्वक निसर्ग के अनुकूल हो जाओ। होशपूर्वक शांत हो जाओ, मौन हो जाओ। होशपूर्वक सारी विकृति, सारा उपद्रव, सारी कलह छोड़ दो। होशपूर्वक अहंकार को विदा कर दो। होशपूर्वक कलह के बीज मत बोओ। द्वंद्व मत पकड़ो, निर्द्वद्व हो जाओ-अवेयरनेस में, होश में।
तो निश्चित ही, लाओत्से पशु जैसा ही लगेगा। और लाओत्से को एक गाय के पास बिठा देंगे, दोनों की आंखों में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा। उतना ही शांत होगा। लेकिन गाय को उसका पता नहीं, जिसका लाओत्से को पता है। लाओत्से जान रहा है अब; इस निसर्ग में डूबने का जो रस है, इसे पी रहा है।
तो जिन मित्र ने पूछा है कि कहीं निसर्ग के साथ एक होने से मनुष्य पशु जैसा तो नहीं हो जाएगा, वे ध्यान रखें, मनुष्य पशु जैसा हो सकता है, उपाय है बेहोश होना। जितना बेहोश आदमी होता है, उतना पश जैसा होता है। इसलिए जो काम आप बेहोशी में करते हैं, वे पशु जैसे होते हैं। और जो काम आप होश में कर ही नहीं सकते, उनको मत करना; क्योंकि उस वक्त आप पशु हो जाते हैं। और जिन कामों को आप बेहोशी में ही कर सकते हैं, उनको भी होश में करने की कोशिश करना, तो आप पाएंगे, आप उनको कर ही नहीं सकते।
किसी पर क्रोध है आपको; जब आप करते हैं, तो बेहोश हो जाते हैं। बेहोशी में ही कर पाते हैं। आपकी ग्रंथियों से जहर छूट जाता है खून में; शराब ऊपर से नहीं पीते आप, भीतर से पी लेते हैं। अब तो उसकी जांच हो सकती है कि कितनी शराब आपके खून में आपके क्रोध से पहुंच गई।
आपकी ग्रंथियां हैं, जो पायजन इकट्ठा करती हैं, जरूरत के लिए; क्योंकि क्रोध बिना बेहोशी के नहीं हो सकेगा। जब क्रोध का क्षण होता है, तत्काल आपका चेहरा लाल हो जाता है, आंखें सुर्सी से भर जाती हैं, हाथ-पैर कस जाते हैं, दांत बंधने लगते हैं-खून जहर से भर गया। अभी आपका जहर नापा जा सकता है कि कितना जहर आपके भीतर है। इस जहर के प्रभाव में आप किसी की गर्दन दबा देते हैं, किसी का सिर खोल देते हैं।
घड़ी भर बाद जब जहर चुक गया और ऊर्जा क्रोध में बाहर जाकर खो गई, तब आप पछताते हैं और कहते हैं: यह मैंने कैसे किया? यह तो मैं कभी करना नहीं चाहता था। यह मुझसे हो कैसे गया? तब आप सोचते हैं, ऐसा • लगता है कि जैसे किसी भूत-प्रेत ने मुझे पजेस कर लिया हो।
किसी ने आपको पजेस नहीं किया था, आप बेहोश हो गए थे; और ग्रंथि जो जहर छोड़ रही हैं, उनमें आप डूब गए थे। आपको लगता है, यह मैंने नहीं किया! और एक लिहाज से ठीक लगता है; क्योंकि आप थे ही नहीं, . आप बेहोश थे।
क्रोध को होशपूर्वक करें, पूरे होश से भर कर करें, और आप पाएंगे कि क्रोध नहीं कर सकते हैं। जो होशपूर्वक न किया जा सके, समझना वह पाप है। और जो होशपूर्वक ही किया जा सके, समझना वह पुण्य है।
और कोई परिभाषा नहीं है पाप और पुण्य की। जिसे आप होशपूर्वक ही कर सकें, वह पुण्य है। जो बेहोशी में हो ही न सके!
अब इसका बड़ा मजा हुआ। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप दान भी कर रहे हैं और बेहोशी में कर रहे हैं, तो वह पाप है। आपने कभी होशपूर्वक दान किया है? मुश्किल है। कब करते हैं आप दान? जब आप किसी के कारण बेहोश हो जाते हैं। चार लोग आते हैं और कहते हैं, आप जैसा दानी इस गांव में नहीं है!
छाती फूलने लगी आपकी। सोचते तो आप भी थे, लेकिन अभी तक किसी ने कहा नहीं था। और वे लोग कहते हैं कि आपके बिना यह काम नहीं हो पाएगा; आपका हाथ मिला, तो काम की सफलता है। वे आपको चढ़ा रहे हैं, वे आपको जहर दे रहे हैं। अब आपकी ग्रंथियां छोड़ने लगेंगी जहर; आप दान कर जाएंगे—इस बातचीत में, इस प्रभाव में, इस प्रशंसा में, इस दंभ में।
408