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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ एक कसौटी खयाल रखनी चाहिए कि मौत में मेरे साथ क्या बच रहेगा? जिन मित्र ने पूछा है कि पिरामिड की ममीज में मुर्दो के पास हीरे-जवाहरात, रोटी, खाने का सामान रख दिया है, वह उनके साथ तो जाएगा नहीं! आपने अपने चारों तरफ क्या इकट्ठा किया है? वह आपके साथ जाएगा? मुर्दो के साथ नहीं जाएगा, छोड़ दीजिए; आपके साथ जाएगा? आपने क्या इकट्ठा किया है अपने चारों तरफ? नहीं आपसे कह रहा हूं कि उसे छोड़ दें; सिर्फ यही कह रहा हूं कि आप यह समझ लें कि वह आपके साथ जाने वाला नहीं है। उसकी भी तलाश कर लें जो साथ जा सकता हो। और अगर ऐसी हालत हो कि साथ जो जा सकता हो, और जो साथ नहीं जा सकता, उसके कुछ छोड़ने से उसकी उपलब्धि होती हो, तो सौदा कर लेने जैसा है। सौदा छोड़ देने जैसा नहीं है। लेकिन भय बड़े अजीब हैं। और आपको पता ही नहीं है कि जो आप कर रहे हैं, वह आप कर रहे हैं या दूसरे आपसे करवा रहे हैं। आपका पड़ोसी एक कार खरीद कर आ जाता है। कल तक आपको इस कार को खरीदने का कोई खयाल नहीं था। अब यह पड़ोसी कार खरीद लाया, अब आपको भी यह कार खरीदनी ही है। क्यों? कार की शायद जरूरत नहीं थी; नहीं तो कल भी आप सोचते कि खरीदनी है। लेकिन पड़ोसी ले आया; अब पड़ोसी से अहंकार की टक्कर है। और हो सकता है, पड़ोसी किसी और अपने दफ्तर में किसी आदमी की कार देख कर झंझट में पड़ा हो। अब आप यह कार लेकर रहेंगे। इसके लिए आप शांति खो सकते हैं, स्वास्थ्य खो सकते हैं, नींद खो सकते हैं, प्रेम खो सकते हैं, सब खो सकते हैं। यह कार चाहिए। और कार पाकर आपको क्या मिलेगा? जो आपने खो दिया है, उसे दुबारा पाना मुश्किल हो जाएगा। और जो आपने पा लिया है, वह कुछ भी नहीं है। पड़ोसी के सामने अकड़! लेकिन पड़ोसी भी मिट जाने वाला है और आप भी मिट जाने वाले हैं। ये कारें खड़ी रह जाएंगी और आप खो जाएंगे। और जो आपने इनके लिए खोया था, उसे लौटाना मुश्किल होता चला जाएगा। बहुत आश्चर्य की बात आदमी के साथ यही है कि उसे ठीक-ठीक यह भी पता नहीं है कि वह जो कर रहा है, वह खुद कर रहा है या दूसरे उससे करवा रहे हैं। चारों तरफ की भीड़ आपसे करवा रही है। जो कपड़े आप पहने हुए हैं, वे किसी ने आपको पहना दिए हैं। जिस मकान में आप रह रहे हैं, वह किसी ने आपको लिवा दिया है। जो आप वाणी बोल रहे हैं, वह किसी ने आपको सिखा दी है। आप बिलकुल उधार हैं। यह जो उधार व्यक्तित्व है, यह आपकी आत्मा नहीं है। लाओत्से, निसर्ग के अनुकूल होने का यही प्रयोजन है उसका कि आप अपनी आत्मा की तलाश कर लें, अपने स्वभाव की तलाश कर लें। आप उसकी फिक्र में लग जाएं, जो आपका है। एक मित्र ने पूछा है कि लाओत्से कहता है कि हम निसर्ग के अनुकूल हो जाएं, तो हम पशु जैसे न हो जाएंगे? अभी आप क्या हैं? पशु जैसे नहीं हैं? क्या है जो पशु से आप में भिन्न है? क्या है आप में जो पशु से भिन्न है? क्रोध वही है, मोह वही है, घृणा वही है, काम वही है, लोभ वही है। क्या है जो पशु से भिन्न है? । हां, एक बात है कि पशुओं के पास कारें नहीं हैं, बंगले नहीं हैं, तिजोड़ी नहीं हैं, बैंक-बैलेंस नहीं हैं। ये आपके पास ज्यादा है। लेकिन अगर आप यह देखें कि पशु आपसे गहरे सो पाते हैं, ज्यादा प्रसन्न मालूम होते हैं, जिंदगी ज्यादा निर्भार मालूम होती है, तो ये कारें और मकान महंगा सौदा मालूम पड़ता है। पशु कम से कम सो तो सकते हैं। माना कि उनके पास बिस्तर आप जैसे नहीं हैं हैं ही नहीं। मगर बिस्तर को क्या करिएगा, अगर बिस्तर मिले और नींद खो जाए? पशु आकाश के नीचे सो रहे हैं। आपके पास मकान है पत्थर की दीवारों का। मगर क्या 406
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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