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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 'और अहंकार से भी।' क्योंकि अहंकार के कारण ही हम दूसरे जैसे होना चाहते हैं। अगर हमको लगता है कि सम्मान है कृष्ण का, तो हम कृष्ण जैसे होना चाहते हैं। और अगर हमें लगता है कि सम्मान है आइंस्टीन का, तो हम आइंस्टीन जैसे होना चाहते हैं। और हमें लगता है कि सम्मान है किसी अभिनेता का, तो हम अभिनेता होना चाहते हैं। लेकिन कारण क्या है? जिसका सम्मान है, वैसे हम हों, यह हमारे अहंकार की मांग हो जाती है। लेकिन संत अहंकार से बचता है, अपव्यय से और अति से। जो इन तीन से बच जाता है-तीन क्या, एक अर्थ में एक ही बात है जो इससे बच जाता है, वह परम शांति को, निसर्ग को, ताओ को उपलब्ध हो जाता है। वह स्वभाव में गिर जाता है। हस्तक्षेप से बचें-दूसरों के प्रति भी और स्वयं के प्रति भी। आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें। 330
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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