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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ स चूहे मांग लालए उचित यही मारी फैली ग उस गांव के मुखिया ने कहा कि अब हम क्या करें? बिल्लियां भी मर गईं, और यह नई बीमारी फैल गई। और इस नई बीमारी का अभी कोई इलाज नहीं था। यह बात कोई चालीस साल पहले की है। तो जिस मिशन ने यह सेवा की थी गांव की, उन्होंने कहा कि हम पता करते हैं। लेकिन उन बढ़े गांव के पंचायत के लोगों ने कहा कि तुम कब तक पता कर पाओगे, यह बीमारी हमारे प्राण ले लेगी। फिर प्लेग के हम आदी हो चुके थे। और प्लेग के लिए हमने एक प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित कर ली थी। हजारों वर्ष से प्लेग थी; हम उससे लड़ना भी सीख गए थे। इस नई बीमारी से लड़ना भी संभव नहीं है। हमारा शरीर भी प्लेग के लिए सक्षम हो गया था। यह नई बीमारी हमारे प्राण लिए ले रही है, तोड़े डाल रही है। इतनी जल्दी तो नई बीमारी दूर नहीं की जा सकती थी। और गांव के बूढ़ों ने यह भी कहा कि अगर तुम यह नई बीमारी भी दूर कर दो, तो क्या भरोसा है कि तुम और दूसरी बीमारियां पैदा करने के कारण न बन जाओ? इसलिए उचित यही होगा कि पड़ोस के गांव से हम चूहे मांग लें। कोई उपाय नहीं था। पड़ोस के गांव से चूहे मांग लिए गए। चूहों के पीछे बिल्लियां चली आईं। और बिल्लियों के आते ही वह जो बीमारी फैली गई थी, वह विदा हो गई। इकोलाजी का अर्थ है कि जिंदगी एक व्यवस्था है। उसमें जरा सा भी कहीं कोई फर्क, तत्काल पूरे पर फर्क पैदा करता है। और पूरे का हमें कोई बोध नहीं है। पूरे का हमें कोई पता नहीं है। यह बड़े मजे की बात है कि आज जमीन पर सर्वाधिक दवाइयां हैं, और सर्वाधिक बीमारियां हैं। और आज जमीन पर आदमी को सुख पहुंचाने के सर्वाधिक उपाय हैं, और आज से ज्यादा दुखी आदमी जमीन पर कभी भी नहीं था। क्या कारण होगा? कारण एक ही मालूम पड़ता है कि हम एक का इंतजाम करते हैं और दस इंतजाम बिगाड़ लेते हैं। जब तक हम दस का इंतजाम करते हैं, तब तक हम हजार इंतजाम बिगाड़ लेते हैं। अभी-ठीक यह तो बर्मा के गांव में घटी घटना-अभी लास एंजिल्स में, अमरीका में घटना घटी। क्योंकि लास एंजिल्स में कारों की अत्यधिकता के कारण, कारों के एक्झास्ट धुएं के कारण हवा इतनी विषाक्त हो गई है कि चमत्कार मालूम पड़ता है। वैज्ञानिक कहते हैं, जितना विष हवा में सहा जा सकता है, आदमी सह सकता है, उससे तीन गुना विष हवा में हो गया है। फिर भी आदमी जिंदा है। लेकिन जिंदा तो परेशानी में ही होगा। जब तीन गुनी मृत्यु को झेलना पड़ता हो जीवन को तो जीवन मुर्दा जैसा हो जाएगा, कुम्हला जाएगा। तो चेष्टा की गई कि कारें इस ढंग की बनाई जाएं कि उनमें कम एक्झास्ट निकले और पेट्रोल में भी ऐसे फर्क किए जाएं कि इतना विष हवा में न फैले। वे फर्क किए गए। लेकिन तब हवा में दूसरी चीजें फैलीं, जो पहले से भी ज्यादा संघातक हैं। अब क्या किया जा सकता है? और आदमी इतने विष को झेल कर जिंदा रहे तो तनावग्रस्त होगा, बीमार होगा, परेशान होगा। जीएगा जरूर, लेकिन जीने की कोई रौनक और जीने की कोई लय उसके भीतर नहीं रह जाएगी। हमने चांद पर आदमी भेजा। तो हमने पहली दफा, पृथ्वी को जो वायुमंडल घेरे हुए है, उसमें छेद किए-पहली दफा। पर किसी को खयाल नहीं था कि वायुमंडल में भी छेद का कोई अर्थ होता है। करने के बाद ही खयाल हुआ। स्वभावतः कुछ चीजें करने के बाद ही पता चलती हैं। हम ऐसा समझें। जैसे कि अगर सागर है, तो सागर मछलियों के लिए वायुमंडल है। पानी उनके लिए वातावरण है। मछलियां पानी में जीती हैं, पानी के बाहर नहीं जी सकतीं। हम भी हवा में जीते हैं, हवा के बाहर नहीं जी सकते। जमीन को दो सौ मील तक हवा घेरे हुए है। ऐसा समझें कि हम दो सौ मील तक हवा के सागर में हैं। इसके पार होते ही हम जी नहीं सकते, जैसे मछली किनारे पर फेंक दी जाए और जी न सके। आमतौर से हम सोचते हैं कि हम जमीन के ऊपर हैं। बेहतर होगा सोचना कि हम हवा के सागर की तलहटी में हैं। ज्यादा उचित होगा, ज्यादा वैज्ञानिक होगा। जैसे कि कोई जानवर सागर की तलहटी में रहता हो और उसके 310
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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